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Kedarnath Flood 2013 : केदारनाथ त्रासदी में खोए अपनों का अभी भी इंतजार, अनाथालय को बना लिया परिवार

केदारनाथ .त्रासदी को अभी भी लोग भूल पाए हैं। करनाल का एक परिवार इस त्रासदी में खो गया। करनाल की बुजुर्ग महिला कमला ने आठ वर्ष पूर्व आए सैलाब में पति बेटे-बहू और पोतों को खोया। अब निराश्रित बच्चों में अपनों का अक्स देखती हैं बुजुर्ग कमला।

By Anurag ShuklaEdited By: Updated: Fri, 18 Jun 2021 11:21 AM (IST)
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करनाल की बुजुर्ग महिला कमला जिसने अपना परिवार केदारनाथ त्रासदी में खोया।
करनाल, [पवन शर्मा]। 2013 में उत्तराखंड की केदारनाथ त्रासदी में करनाल की बुजुर्ग महिला कमला का सब कुछ उजड़ गया। उनका पूरा परिवार सैलाब की भेंट चढ़ गया। बेटे-बहू और दोनों पोते काल कवलित हो गए तो पहाड़ सरीखे गम के बोझ से दुखी पति की भी कुछ समय बाद हार्ट अटैक से मौत हो गई। इसके बावजूद कमला का मन नहीं मानता कि वह पूरा परिवार खो चुकी हैं।

अनाथालय में रह रही यह महिला हर बच्चे में अपने पोतों का अक्स देखती हैं। उनके साथ समय गुजारती हैं। पढ़ाती हैं, कुदरत से जोड़ती हैं, प्रेरक कहानियां सुनाती हैं और कभी एहसास नहीं होने देतीं कि दुनिया में उनका कोई नहीं...। उन्होंने कोरोना काल में जरूरतमंदों के लिए प्रशासन को आर्थिक मदद भी दी। यकीनन, जीना इसी का नाम है।

वह 2013 का साल था, जब कमला का सब कुछ लुट गया। इससे पहले उनके घर-आंगन में खुशियों का संगीत गूंजता था। पति धर्मचंद नगर निगम में सफाई दरोगा थे और इकलौता बेटा मुकेश सरकारी शिक्षक। बहू ममता केंद्रीय विद्यालय में पढ़ा रही थी और दोनों पोते 12 वर्षीय वासुदेव व सात वर्षीय देवेश दयाल सिंह स्कूल में पढ़ते थे। वह खुद निगम में चपरासी थीं। हांसी रोड स्थित ब्रहमनगर में हंसी-खुशी भरा वक्त बीत रहा था। सौ गज का पुराना मकान था, जिसे 2013 में ही तुड़वाकर नए सिरे से बनवाया था।

स्वजनों को तस्वीरों में निहारतीं कमला बताती हैं कि बमुश्किल तीन माह नए घर में रहने के बाद बच्चों ने कहा कि चार धाम यात्रा पर जाना चाहते हैं। उन्हें भी अच्छा लगा और खुशी-खुशी सबको विदा किया। किसे पता था, यह उनका आखिरी सफर होगा। 10 जून 2013 को बेटा, बहू और बच्चे अपने वाहन से निकले। 14 जून को देहरादून पहुंचने पर बताया कि केदारनाथ जा रहे हैं। तब तक सब ठीक था।फिर, केदारनाथ में जो हुआ, उसमें सब बिखर गया। जुबां खामोश हो गई। बेटे, बहू व पोतों से बिछुड़ने के सदमे में 15 माह बाद हार्ट अटैक से पति भी गुजर गए। इसके बावजूद मन स्वीकारने को तैयार नहीं कि वह पूरा परिवार खो चुकी हैं। जब कोई अपना न रहा तो सब कुछ छोड़कर कर्णताल स्थित श्रद्धानंद अनाथालय में रहने लगीं।

घर अनाथालय को दान, कोरोना फंड में भी मदद

श्रद्धानंद अनाथालय में प्रवेश करते ही कमला यहां बसे बच्चों के साथ किसी न किसी काम में तल्लीन नजर आती हैं। उनसे पौधों में पानी डलवाती हैं। अक्सर संदेशप्रद कहानियां सुनाती हैं। उन्होंने बताया कि कोरोना महामारी का पता चला तो महसूस हुआ कि दीन-दुखियों की मदद के लिए कुछ करें। हरिद्वार में बसे अपने गुरुजी की प्रेरणा से उन्होंने एक लाख रुपये की जमा-पूंजी डीसी कार्यालय पहुंचकर कोरोना रिलीफ फंड में जमा करा दी। हांसी रोड स्थित पुश्तैनी मकान बहुत पहले ही अनाथालय को दान कर दिया था। तभी से अनाथालय में बच्चों संग जीवन बिता रही हैं। कहती हैं-जो कुछ है, समाज के लिए है। किसी दुखी-परेशान इंसान के चेहरे पर सुकून देख असीम सुख मिलता है। आगे भी जो कुछ बन पड़ेगा, जरूर करेंगी।

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