Move to Jagran APP

किसान आंदोलन की आड़ में बड़ी साजिश, जानिए- करनाल से लखीमपुर तक आंदोलनकारियों के प्रेरणास्रोत कौन?

Lakhimpur Kheri Violence उत्तर प्रदेश के लखीमपुर प्रकरण के बाद यह आरोप एक बार फिर पुष्ट और प्रमाणित हुआ है। पुलिस चाहे हरियाणा की हो या उत्तर प्रदेश की वह भी ऐसे लोगों के विरुद्ध कार्रवाई नहीं करती।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Tue, 05 Oct 2021 07:07 PM (IST)
Hero Image
महेंद्र सिंह टिकैत के बजाय भिंडरावाला के झंडे, टी शर्ट पर आपत्ति नहीं होती।
जगदीश त्रिपाठी, पानीपत। Lakhimpur Kheri Violence तीनों कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे उग्र आंदोलन के आरंभ होने से अब तक, करनाल से लेकर लखीमपुर तक आंदोलनकारियों के प्रेरणास्रोत कौन हैं? दीनबंधु छोटूराम, जो किसानों के मसीहा कहे जाते हैं? नहीं। बाबा महेंद्र सिंह टिकैत, जिनके आह्वान पर लाखों किसान दिल्ली घेर लेते थे? नहीं। हरियाणा में किसानों के हक के लिए झंडा बुलंद करने वाले घासीराम नैन? नहीं। भले ही जरनैल सिंह भिंडरावाला किसान नेता न रहे हों। किसानों के लिए कोई आंदोलन न किया हो, लेकिन हरियाणा-दिल्ली का कुंडली बार्डर हो या टीकरी बार्डर।

हर जगह आपको भिंडरावाला के चित्र वाले झंडे मिल जाएंगे। भिंडरावाले की तस्वीर पहने लोग मिल जाएंगे। दिल्ली-उत्तर प्रदेश के गाजीपुर बार्डर पर भिंडरावाले के भक्तों की कमी नहीं है। यद्यपि अब तीनों प्रमुख धरनास्थलों पर भीड़ कम है तो खालिस्तान समर्थक भी कम हो गए हैं, लेकिन दबदबा उन्हीं का है। बीते 27 सितंबर को जब आंदोलनकारियों ने भारत बंद का आह्वान किया था करनाल में बाजार बंद कराने वाले कुछ लोगों के हाथ में भिंडरावाले के चित्र वाले झंडे थे तो लखीमपुर में जो लोग गाड़ियों पर पत्थर और लाठियां बरसा रहे थे उनमें कई की टी शर्ट पर भिंडरावाले छपे थे।

गौरतलब है कि आंदोलन के सबसे चर्चित नेता राकेश टिकैत हैं। भारतीय किसान यूनियन जिसकी स्थापना उनके पिता महेंद्र सिंह टिकैत ने की थी, उन महेंद्र सिंह टिकैत के चित्र कहीं नहीं दिखते। यह बात अलग है कि जिस भारतीय किसान यूनियन की स्थापना महेंद्र सिंह टिकैत ने की थी, वह अब कई खंडों में विभक्त हो चुकी है। लेकिन महेंद्र सिंह टिकैत की यूनियन पर सर्वमान्य दावेदारी उनके पुत्रों नरेश टिकैत और राकेश टिकैत की है। राकेश टिकैत आंदोलन के अग्रणी नेता हैं। फिर भी उन्हें महेंद्र सिंह टिकैत के बजाय भिंडरावाला के झंडे, टी शर्ट पर आपत्ति नहीं होती।

गुरनाम चढ़ूनी। फाइल फोटो

उलटे वह कहते हैं कि यदि भारतीय जनता पार्टी वाले हमें खालिस्तानी कहेंगे तो हम उन्हें तालिबानी कहेंगे। हरियाणा में भारतीय किसान यूनियन की दो स्वतंत्र इकाइयां प्रभावशाली हैं। एक का नेतृत्व स्वर्गीय घासीराम नैन के पुत्र जोगेंद्र नैन करते हैं तो दूसरी का नेतृत्व गुरनाम चढ़ूनी। तीसरी इकाई भूपेंद्र सिंह मान की है जो आंदोलन के विरोध में है। जोगेंद्र नैन ने भी कभी भिंडरावाले भक्तों को लेकर कुछ नहीं कहा। वह एक बार टीकारी बार्डर पर स्थित धरनास्थल पर मंच संचालन समिति से निलंबित भी किए जा चुके हैं। निलंबित तो पंजाब के एक अन्य नेता रुलदू सिंह मानसा भी किए जा चुके हैं, लेकिन मानसा इकलौते ऐसे नेता हैं, जिनका निलंबन खालिस्तानियों की आलोचना के कारण हुआ था। किसी अन्य नेता ने इसपर आपत्ति नहीं की।

यद्यपि आंदोलनकारी संगठनों के लोग आफ द रिकार्ड यह स्वीकार करते हैं कि प्रदर्शनों में हिंसा भड़काने में खालिस्तान समर्थकों का ही हाथ होता है, लेकिन खुलकर कोई नहीं बोलता। खुफिया एजेंसियां भी उनपर नजर नहीं रखतीं। गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में हुई हिंसा के बाद भी सचेत नहीं हुईं। यदि वे ऐसा करतीं तो हिंसा की घटनाओं की पुनरावृत्ति न होती।

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।