National Handloom Day: उस्ताद नंदलाल को जाता है पानीपत को हैंडलूम सिटी बनाने का श्रेय, पढ़ें संघर्ष की कहानी
National Handloom Day विभाजन के बाद पाकिस्तान के हैदराबाद से हैदराबादी बिरादरी के लोग भारत पहुंचे। इनमें से सैकड़ों लोगों को रोहतक के लालिया गांव के कैंप में ठहराया गया। इस बिरादरी के लोग खड्डी चलाना जानते थे। पर रोहतक में खड्डी नहीं थी।
पानीपत, जागरण संवाददाता। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी हथकरघा से आत्मनिर्भर बनने की वकालत करते थे। कहते थे, अपने हाथ से सूत कातो। अपने हाथ से बनाओ। लघु उद्योग से ही देश के विकास का रास्ता खुलेगा। ऐसा ही करके भी दिखाया पानीपत ने। ये संभव हुआ, उस्ताद नंदलाल, मदनलाल शास्त्री जैसे हैदराबादी बिरादरी के उन मेहनतकश लोगों की वजह से, जो अपने हाथ से चादर, दरी और खेस बना लेते थे।
रोहतक के गांव में लगाया था कैंप
दरअसल, विभाजन के बाद पाकिस्तान के हैदराबाद से हैदराबादी बिरादरी के लोग भारत पहुंचे। इनमें से सैकड़ों लोगों को रोहतक के लालिया गांव के कैंप में ठहराया गया। इस बिरादरी के लोग खड्डी चलाना जानते थे। पर रोहतक में खड्डी नहीं थी। कुछ काम नहीं कर पा रहे थे। तब नंदलाल, जिन्हें लोग उस्ताद कहकर ही बुलाते थे, वह और उनके साथी मदनलाल दिल्ली के लिए रवाना हुए। दिल्ली में उन्होंने महात्मा गांधी से बात की।
उन्हें बताया कि वे खड्डी चलाना जानते हैं। हाथ से चादर, दरी और खेस बना सकते हैं। उन्हें ऐसी जगह बसाया जाए, जहां पर काम मिल सके। उस्तादनंद लाल ने यह तक कह दिया, वे हाथ से कमाकर खाएंगे, भीख नहीं चाहिए। तब कुछ लोगों को सोनीपत भेजा गया। ये पता लगाया गया कि क्या वहां पर खड्डी चलाने जैसे हालात हैं। वहां भी संतोषजनक जगह न मिली तो पानीपत पहुंचे। यहां पर नई और पुरानी खड्डियां देखकर हैदराबादी बिरादरी के लोगों के चेहरे चमक उठे। दिल्ली के नजदीक पड़ता था पानीपत शहर।
इस तरह से बसा पानीपत
साथ ही व्यापारी लोग पहले से ही यहां आते रहते थे। आखिरकार निर्णय हुआ कि इस बिरादरी को यहां पर रहने के लिए बसाया जाएगा। कच्चा कैंप, सनौली रोड और माडल टाउन की तरफ इस बिरादरी के लोगों ने अपने घर बनाए। आज इन्हीं एरिया से सबसे ज्यादा एक्सपोर्टर निकले हैं, जो दुनिया में पानीपत का नाम रोशन कर रहे हैं। तब महात्मा गांधी अगर सूझबूझ से इन्हें यहां न बसाते तो पानीपत एक टेक्सटाइल सिटी न बन पाता।