दिल में निरंकार का वास, जीविका के लिए बच्चों को पढ़ाती है कुरान, विरोध के बाद भी सत्संग में रम गईं रबीना
निरंकारी मिशन से जुड़कर शेख रबीना के जीवन में खुशहाली लौट आई है। तीन साल की उम्र में लकवाग्रस्त हुई रबीना ने अपने माता-पिता को भी खो दिया था। निरंकारी मिशन से जुड़ने के बाद उन्हें जीवन का सच्चा अर्थ मिला। अब वह 25 सालों से निरंकारी समागम में भाग ले रही हैं। ऐसा करने से उनके मन को सुकून मिलता है।
धर्म देव झा, समालखा (पानीपत)। कर्नाटक के कलबुर्गी के गांव रबवाना की 35 वर्षीय शेख रबीना मुस्लिम है, लेकिन उसके दिल में निरंकार वास है। वह घर पर जीवन यापन के लिए मुस्लिम बच्चों को कुरान की शिक्षा देती है, लेकिन निरंकारी सद्गुरु माता-पिता में उसे रब दिखाई देता है। मिशन से जुड़ने के बाद उसके जीवन में खुशहाली लौट आई है।
रबीना कहती है कि तीन वर्ष की उम्र में वह लकवा (पक्षाघात) की शिकार हो गई। कुछ दिन बाद उसके पिता का देहांत हो गया। दस वर्ष की हुई तो माता परलोक सुधार गई। इसी दौरान दोस्तों के संगत में रहने से उसका जुड़ाव निरंकारी मिशन से हुआ। उसे निरंकारी मिशन को समझने का अवसर मिला।
रबीना के मन को मिलता है सुकून
मिशन के उद्देश्य को समझने के बाद वह इसमें लीन हो गई। अब वह 25 वर्षों से निरंकारी समागम में भाग लेने आ रही है। रबीना गांव से दस किलोमीटर दूर होने वाले निरंकारी सत्संग में भाग लेने नियमित रूप से जाती है। इससे उसके मन को सुकून मिलता है। परिवार की बाधाएं भी दूर हो गई हैं।परिवार-समाज के लोग करते थे विरोध
रबीना कहती है कि शुरू में उसे परिवार और समाज का भारी विरोध सहना पड़ा, लेकिन उसने हार नहीं मानी। लोगों के ताने सुने। विरोध का प्रतिकार किया। अब परिवार के विरोध करने वाले भैया, भाभी और दीदी को वह खुद माता का दर्शन करने अपने साथ लेकर आई है। हालांकि, भैया और भाभी मिशन से जुड़े नही हैं, लेकिन उसका विरोध भी नहीं करते हैं।
जीवन यापन के लिए बच्चों को पढ़ाती है
रबीना कहती है कि उसने स्कूली शिक्षा नहीं ली है। घर पर ही पढ़ी-लिखी है। उसे उर्दू, कन्नड़, हिंदी और अंग्रेजी का ज्ञान है। वह जीवनयापन के लिए घर पर 15 से 20 बच्चों को कुरान पढ़ाती है। इससे होने वाली आय से उसका गुजारा चलता है।सहेलियों के साथ उसका अच्छा व्यवहार है। स्वयं सहायता ग्रुप बनाकर वह छोटा व्यवसाय भी करती है। परिवार वालों से अलग रहती है।
बता दें कि संत निरंकारी मिशन के 77वें वार्षिक समागम में देश भर से दिव्यांग अनुयायी भी पहुंचे हैं। इनमें कोई देख नहीं पाता है, कोई खुद चल नहीं तो कोई बोल नहीं पाता है। लेकिन दिव्यांगता पर भारी उनकी आस्था और सतगुरु के प्रति उनका विश्वास उन्हें सैंकड़ों किलोमीटर दूर से भी खींच लाता है।यह भी पढ़ें- हरियाणा विधानसभा: महंगाई-गरीबी, खाद और डेंगू पर हंगामे के आसार, मंगलवार को भी चलेगा सत्र, दो बिल वापस लेगी सरकार
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