Pandit Deendayal Updadhyaya Death Anniversary: पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने कैथल से दिया था जनसंघ मजबूती का मूलमंत्र
Pandit Deendayal Updadhyaya Death Anniversary आज पंडित दीनदयाल उपाध्याय की पुण्यतिथि है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय का हरियाणा से गहरा नाता रहा है। वर्ष 1956 में नगर पालिका चुनाव के बाद कैथल में जनसंघ कार्यकर्ता बाबू बिहारी लाल के निवास पर आए थे।
By Anurag ShuklaEdited By: Updated: Thu, 11 Feb 2021 12:36 PM (IST)
कैथल, [पंकज आत्रेय]। राष्ट्रवादी सोच की एक बानगी पंडित दीनदयाल उपाध्याय के इन शब्दों से मिल जाती है कि देह से बढ़कर देश होता है। देश को सर्वोपरि रखकर ही जीवन के उद्देश्य को सार्थक किया जा सकता है। वर्ष 1956 में कैथल में हुए नगर पालिका के चुनाव के बाद वे पहली बार यहां आए थे और जनसंघ कार्यकर्ता बाबू बिहारीलाल के निवास पर कार्यकर्ताओं की बैठक ली थी। इसी बैठक में उन्हाेंने कार्यकर्ताओं को देशप्रेम का यह संदेश दिया था। तब के कांग्रेसी नेता राममूर्ति सेठ के बेटे डा.शशिपाल सेठ इस बैठक में मौजूद थे। दैनिक जागरण से यह संस्मरण साझा करते हुए उन्होंने बताया कि नगर पालिका के इस चुनाव में शहर के वार्ड नंबर नौ से कांग्रेस की चुनाव चिन्ह दो बैलों की जोड़ी पर उनके पिता राममूर्ति सेठ और जनसंघ के निशान दीपक पर बाबू बिहारी लाल आमने-सामने थे। इस वार्ड में 570 वोट थे और इस चुनाव में राममूर्ति सेठ के 570 रुपये ही खर्च हुए थे। जनसंघ के बाबू बिहारी लाल को उन्होंने करीब पौने 200 वोटों से हराया था। चुनाव जीतने के बाद जब समर्थक विजयी जुलूस निकाल रहे थे तो सेठ राममूर्ति ने इसमें शिरकत करने से मना कर दिया और सीधे बाबू बिहारी लाल के घर चले गए। बोले कि भले ही वे विरोधी पार्टी के रहे हों, लेकिन वह एक अच्छे इंसान हैं। उनको गले से लगाकर कहा कि वे उनके आदर्श स्वरूप रहेंगे।
राममूर्ति सेठ को ज्वाइन करवाया जनसंघचुनाव के बाद पंडित दीनदयाल उपाध्याय बाबू बिहारी लाल के निवास पर पहुंचे। हालांकि वह यहां कार्यकर्ताओं की बैठक लेने आए थे, लेकिन इसमें चुनाव के बारे में भी चर्चा शुरु हो गई। डा. शशिपाल सेठ ने बताया कि तब पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने उनके पिता को इस बैठक में बुलाया और जनसंघ में ज्वाइन करवाया। यहां उन्हाेंने जो बात कही, वह जनसंघ के कार्यकर्ताओं के लिए मूलमंत्र बन गई। उन्होंने कहा, आप नारे लगाकर, जुलूस निकालकर, धरने देकर लोगों को कांग्रेस से तो हटा देंगे, लेकिन क्या हमने अपने घर में इतनी जगह बना ली है कि आपके यहां आकर उनका समावेश हो सके। यह जगह हमारे चरित्र से बनेगी। जब तक हमारी खुद की जड़ें मजबूत नहीं होंगी, तब तक मजबूत राष्ट्र के निर्माण में हमारा योगदान सार्थक नहीं होगा। पंडित दीनदयाल के इन शब्दाें का राममूर्ति सेठ पर गहरा असर हुआ और जीवन पर्यंत वे इसका वर्णन करते रहे। राममूर्ति सेठ बाल्यकाल से ही आर्य समाजी रहे और उनके पास दायित्व भी थे, लेकिन पंडित दीनदयाल उपाध्याय के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उन्होंने जनसंघ ज्वाइन कर लिया था।
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दिल्ली में मिला था प्रतिनिधिमंडल
आरएसएस के वरिष्ठ कार्यकर्ता श्याम सुंदर बंसल ने बताया कि उनकी मुलाकात पंडित दीनदयाल उपाध्याय से वर्ष 1966 में एक प्रांत शिविर में हुई थी। इसकी यादें आज भी उनके जहन में ताजा है। पंडित दीनदयाल की दमदार आवाज, वार्तालाप शैली और भाषण विधा के सब कायल थे। उस वक्त पंजाब और हरियाणा एक ही प्रांत थे, लेकिन उनका हरियाणा के हिस्से से लगाव स्पष्ट झलक रहा था।
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