मंदिर के साथ आस्था के केंद्र हैं पीपल के पेड़ और तालाब
चुलकाना धाम स्थित श्याम बाबा मंदिर के आगे लगे पीपल के पेड़ और तालाब भक्तों की आस्था के केंद्र हैं। तालाब में पैर हाथ धोने के बाद जहां वे बाबा का दर्शन करते हैं। वहीं पीपल के पेड़ के पास दीप जलाकर परिक्रमा करते हैं। धागा बांधकर मन्नत मांगते हैं।
By JagranEdited By: Updated: Mon, 18 Mar 2019 08:07 AM (IST)
जागरण संवाददाता, समालखा : चुलकाना धाम स्थित श्याम बाबा मंदिर के आगे लगे पीपल के पेड़ और तालाब भक्तों की आस्था के केंद्र हैं। तालाब में पैर हाथ धोने के बाद जहां वे बाबा का दर्शन करते हैं। वहीं पीपल के पेड़ के पास दीप जलाकर परिक्रमा करते हैं। धागा बांधकर मन्नत मांगते हैं।
पेड़ की शाखाओं की छटाई से हरियाली हुई गायब पीपल के पेड़ की फरवरी में कमेटी ने छटाई करा दी थी, जिससे उसकी रौनक गायब हो गई। वह सूखे पेड़ की तरह दिखाई दे रहा था। इसके बावजूद भक्त उसकी पूजा अर्चना में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे। ग्रामीण रोशन लाल छौक्कर, कंवर सिंह, सूरजमल गोस्वामी, रमेश, राजेंद्र छौक्कर आदि का कहना है कि मंदिर के निर्माण के समय से ही तालाब और पीपल के पेड़ का अस्तित्व है। पेड़ के पत्ते की खासियत है कि इसके सभी पत्तों में छेद होता है। कोई भी पत्ता बगैर छेद का नहीं होता। मान्यता है कि तालाब में पैर हाथ धोने और स्नान करने से दुखियों के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।
यह है मान्यता-
श्याम बाबा मंदिर को लोग महाभारत काल से जोड़कर देखते हैं। इसकी मान्यता पांडव पुत्र भीम के पौत्र बर्बरीक से जुड़ी है। कथा के अनुसार वीर बर्बरी ने अपनी माता से महाभारत युद्ध देखने की इच्छा जाहिर की थी। कौरव के 100 और पांडव के पांच यौद्धाओं के बीच युद्ध से उसकी मां को लगता था कि पांडव हार जाएंगे। उसने बर्बरी को आशीर्वाद दिया था कि बेटा जो हारे उसी का साथ देना। भगवान कृष्ण को यह उसकी वीरता और मां के आशीर्वाद का पता था। उसने ब्राह्मण वेश में उनसे शीश मांग लिया तो उसने उसे दान कर दिया। कहा जाता है कि बर्बरी का शीश चुलकाना में है, जहां समाधि बनी है। उस समय से बर्बरी को शीश का दानी कहा जाता है। कृष्ण ने उन्हें वर दिया था कि कलयुग में जो खाटू श्याम की पूजा करेगा उनकी मनोकामनाएं पूरी होंगी।
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