ऐसे थे मोहक मुस्कान वाले रोहित सरदाना, कभी टूटे न झुके...थामी थी राष्ट्रवाद की पताका
हरियाणा ने अपना स्टार बेटा रोहित खो दिया। कोरोना संक्रमण की वजह से कमजोर हुए हार्ट अटैक से निधन। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्ता के बेटे को घर में मिली राष्ट्रवाद की शिक्षा। टेलीविजन पत्रकारिता में दिल्ली की चुनौतियों को अपनी मुस्कान से हराया। राष्ट्रवाद से समझौता नहीं किया।
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Wed, 05 May 2021 02:11 PM (IST)
जगदीश त्रिपाठी, पानीपत। रोहित सरदाना टेलीविजन पत्रकारिता के अपने स्टार बेटे के जाने से हरियाणा सदमे में है। कुरुक्षेत्र की गलियों में खेलने वाले मस्तमौला मिजाज के बालक ने एक हरियाणा के एक छोटे से शहर से निकलकर पत्रकारिता में स्थापित उन मठाधीशों को चुनौती दी जो एक विशेष विचारधारा द्वारा पालित-पोषित थे। उन्हें कोई ऐसा युवक क्यों स्वीकार्य होता जो राष्ट्रवाद की पताका बुलंद करने का दृढ़ संकल्प लिए हुए था। तमाम प्रहार हुए। रोहित सरदाना न टूटे न झुके। न हारे। लेकिन काल ने बजरिये कोरोना उनको जिंदगी की जंग में हरा दिया और कुरुक्षेत्र के ख्यातिलब्ध शिक्षक रत्नचंद सरदाना के घर पैदा हुआ पत्रकारिता जगत का सूर्य अस्त हो गया। रोहित के पिता रत्नचंद सरदाना शिक्षक हैं। सेवानिवृत्त। लेकिन समाज-सेवा से निवृत्त नहीं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता। पथ से कभी न डिगने की प्रेरणा रोहित को उनसे ही मिली। हिसार में गुरु जंभेश्वर विश्वविद्यालय में अपनी पत्रकारिता की पढ़ाई के दौरान अपने मित्रों से इसकी चर्चा करते रहते थे। हिसार से निकलकर रोहित टीवी पत्रकारिता करने दिल्ली पहुंचे। वहां से हैदराबाद और फिर वापस दिल्ली पहुंचे। दिल्ली लौटे तो ऐसे लौटे कि छा गए। उनके निधन पर पूरा देश शोक संतप्त हुआ। हरियाणा तो शायद ही इस सदमे से उबर पाए, लेकिन वह इस सदमे को दिल समाए लड़ रहा है कोरोना से। यह संकल्प लेकर कि कोरोना को पराजित करना, उसके चंगुल में फंसी हजारों जिंदगियों को बाहर निकालना ही रोहित को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने वरिष्ठ पत्रकार रोहित सरदाना के निधन पर शोक जतायायह हरियाणा ही है जो कोरोना के लिए संसाधनों की कमी जैसा कोई रोना नहीं रो रहा है। पूरी शिद्दत से लड़ रहा है। खुद मुख्यमंत्री मनोहर लाल जिलों-जिलों में जाकर अधिकारियों से फीडबैक ले रहे हैं। राजनीतिक दलों के नेता और उनके समर्थक पीड़ितों की मदद कर रहे हैं। विपक्ष के एकाध नेताओं छोड़ दें, जो इस आपद काल में सरकार को चिट्ठी लिखने व्यस्त हैं, तो लगभग हर राजनीतिक व्यक्ति इस जंग में अपना सौ प्रतिशत दे रहा है। हां, दो तीन नामी गिरामी शख्सियतें ऐसी भी हैं, जो परिदृश्य से गायब हैं। लेकिन उनकी चर्चा क्या करना और क्यों करना? चर्चा तो प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ की होनी चाहिए, जो आक्सीजन कन्संट्रेटर मंगाने पर अपने को कन्संट्रेट किए हुए हैं और उनके प्रयास से, उनके आग्रह से प्रभावित होकर सैकड़ों कन्सट्रेटर प्रदेश में आ चुके हैं। चर्चा तो इनेलो के स्टार अभय चौटाला की होनी चाहिए, जिन्होंने अपना अस्पताल कोविड संक्रमितों के इलाज के लिए सौंप दिया है। और हां सबसे ज्यादा चर्चा तो प्रदेश के उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला की होनी चाहिए, जिनकी पार्टी जननायक जनता पार्टी ने कोविड संक्रमितों की सेवा-चिकित्सा के लिए जननायक सेवादल का गठन किया है। यह दुष्यंत चौटाला ही हैं, जिन्होंने केंद्र सरकार से आग्रह कर आक्सीजन कन्संट्रेटर से वस्तु एवं सेवा कर हटवा दिया और इसका लाभ पूरे देश के कोविड पीड़ितों को मिल रहा है।
कोरोना से इस जंग को जीतने के लिए आम हरियाणवी ने खुद को कैसे झोंक रखा है, इसका अनुमान आप इसी से लगा सकते हैं कि हर शहर में लोग पीड़ितों के लिए भोजन से लेकर आक्सीजन-दवा पानी आदि की व्यवस्था में लगे हैं। पानीपत की तीन महिलाएं तो भाटिया सिस्टर्स के नाम से मशहूर हो चुकी हैं। इनमें एक हैं किरण भाटिया। दूसरी हैं उनकी देवरानी रचना भाटिया और तीसरी हैं रचना की बड़ी बहन भारती भाटिया। जेठानी किरण और देवरानी रचना तो एक ही घर में रहती हैं। भारती भाटिया का घर उनके घर से थोड़ी दूरी पर है। तीनों कोरोना संक्रमितों के लिए अपने घर में भोजन बनाती हैं। प्रभु के सामने रखकर भोग लगाती हैं। आरती करती हैं। जो भोजन ग्रहण करे, उसे स्वस्थ करने के लिए प्रभु से प्रार्थना करती हैं और फिर स्वयं सावधानी पूर्वक भोजन को पैक कर संक्रमित परिवारों के घर के बाहर रख फोन से उन्हें बता देती हैं। दूर खड़ी देखती हैं। जब परिवार का कोई सदस्य भोजन ले लेता है तो स्कूटी स्टार्ट कर अगले परिवार को भोजन देने निकल पड़ती हैं। भाटिया सिस्टर्स जैसी सैकड़ों नहीं, हजारों बहनें और भाई इस तरह के पुनीत कार्य में लगे हैं।
कोरोना से जंग में प्रदेश के उद्यमियों का योगदान भी अप्रतिम है। संक्रमितों के लिए उनसे जो बन पड़ रहा है, वह तो कर रहे हैं, उन्होंने प्रवासी कामगारों को आश्वस्त कर रखा है कि जो भी सहायता होगी, हम करेंगे। इस बार किसी को घर नहीं जाना है। यहीं रहना है। काम करना है। लाकडाउन भी अलग तरह का है। औद्योगिक गतिविधियां ठप नहीं है। यही कारण है कि इस बार प्रवासी कामगारों के मन में आश्वस्ति भाव है। सड़कों पर पैदल जाती भीड़ नहीं दिख रही है। रेलगाड़ियां खाली हैं। और ये तब तक खाली रहेंगी, जब तक उनमें जाने वाले कोरोना से यह जंग जीत नहीं लेते। उसके बाद जब प्रवासी कामगार उनपर सवार होकर अपने गांव जाएंगे तो योद्धा वाली फीलिंग के साथ बताएंगे कि हम हरियाणा से भागकर नहीं आए हैं, कोरोना को हरियाणा से भगाकर आए हैं।
[स्टेट डेस्क प्रभारी हरियाणा]
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