यह बात भी सामने आई है कि चीन के उत्पादों से कई देशों में ग्राहकों का विश्वास उठ चुका है। इससे चीन के उद्योगों पर मंदी का संकट आ गया है। वहां के कई उद्योग बंद हो गए हैं।
भारत के 95 उद्यमी हुए थे चीन की नौ दिसवसीय कार्यशाला में शामिल
पिछले दिनाें भारत के करीब 95 उद्यमी चीन के शेंडांग प्रांत के वेफांग शहर में नौ दिवसीय कार्यशाला और प्रदर्शनी में शामिल हुए थे। पानीपत से करीब 20 उद्यमियों इनमें शामिल थे। वहां से लौटने के बाद उद्यमियों ने दैनिक जागरण चीन के उद्योगों की हालत और वैश्विक बाजार की स्थिति साझा की।पानीपत से इंडस्ट्रियल एसोसिएशन के प्रधान सरदार प्रीतम सिंह सचदेवा ने बताया कि उनकी टीम ने वेफांग की आठ औद्योगिक इकाइयों का दौरा किया। छह फैक्ट्रियां मंदी की मार नहीं झेल सकी और बंद हो गई। सिर्फ दो औद्योगिक इकाइयां चलती मिलीं।
चीन की औद्योगिक कंपनियों के मुनाफे में 2023 के पहले चार महीनों की समय अवधि में भारी गिरावट आई । यह लगातार जारी रही है। इसके पीछे वैश्विक पटल पर चीन के उद्योगों की ओर से गुणवत्ता से समझौता बड़ा कारण माना जा रहा है। पिछले कई वर्षो से 500 भारतीय उद्यमी इस कार्यक्रम में हिस्सा लेकर भारतीय उत्पादों की प्रदर्शनी लगाते थे।
भारतीय उद्योगों को मिलेगा लाभ
उद्यमियों का कहना है कि चीन की फैक्ट्रियों में उत्पादन अब पहले से काफी कम हो चुका है। वहां पहले के बजाय अब सिर्फ 25 प्रतिशत उत्पादन किया जा रहा है। उनका दावा है कि चीन की फैक्ट्रियों के बंद होने का लाभ भारतीय उद्योग को मिला है।
इसका परिणाम यह रहा कि विदेश के बाजार में भारतीय उत्पादन की बेहतर गुणवत्ता से 20 प्रतिशत अधिक डिमांड बढ़ गई है। बता दें कि पानीपत में मिंक कंबल बनाने के 125 उद्योग हैं। इनमें हर रोज 1250 टन धागे की खपत है। इसका वार्षिक कारोबार 6050 करोड़ रुपये का है।
भारत में टेक्सटाइल का कारोबार
भारत दुनिया में कपास का सबसे बड़े उपभोक्ताओं और उत्पादक देशों में से एक है। भारत टेक्सटाइल घरेलू कपड़ा और परिधान उद्योग 2021 में 152 बिलियन डॉलर का था जो 12 प्रतिशत की सीएजीआर से बढ़कर 2025 तक 225 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। भारत में कपड़ा और परिधान उद्योग के पास फाइबर, धागा, कपड़े से परिधान तक पूरी वैल्यू चेन में बड़ी ताकत है।
चीन में घरेलू कपड़ा उद्योग
चीन में अक्टूबर, 2023 में लगभग 2.66 बिलियन मीटर कपड़े का उत्पादन किया गया। पिछले एक साल में मासिक कपड़ा उत्पादन की मात्रा लगातार तीन अरब मीटर के आसपास रही। वर्ष 2021 में चीन में परिधान की लगभग 23.5 बिलियन इकाइयों का उत्पादन किया गया था। 2021 में विश्व कपड़ा निर्यात में चीन की हिस्सेदारी 41 प्रतिशत से अधिक रही, इसके बाद यूरोपीय संघ और भारत का स्थान रहा।
पानीपत के कंबल की विशेषता
औद्योगिक नगरी के कंबल कारोबारियों का दावा है कि विश्व स्तरीय क्वालिटी कम दाम में उपलब्ध करवाने में कामयाब हुए हैं। पानीपत में निर्मित फ्लैनो कंबल का यूएसए, आस्ट्रेलिया, यूके में निर्यात किया जा रहा है। चीन से बेहतर क्वालिटी होने के कारण पानीपत का फ्लैनो कंबल विदेशों में अधिक पसंद किया जा रहा है।
चीन के पालिएस्टर वाले कंबल को नकारा
चीन के फ्लैनो कंबल में पालिएस्टर की मात्रा अधिक होती है जबकि कॉटन (कपास) कम होता है। ऐसे में चीन से आयात करने में कारोबारियों को नुकसान अधिक होने की चिंता सताने लगी। चीन से आयात करने वाले कारोबारियों को कस्टम, डीआरआइ विभागों की परेशानी अलग से झेलनी पड़ती थी।लगत कम करने के लिए चीनी कंपनियों ने पालिएस्टर का प्रयोग अधिक करना शुरू कर दिया, जिससे गुणवत्ता बिगड़ गई, इसका बाजार में ऐसा दुष्प्रभाव रहा कि निर्यातकों को आर्डर कम मिले।
यह है पानीपत और चीन निर्मित कंबलों में अंतर
चीन से मिंक कंबल अधिक तैयार कर भेजे जाते हैं। इसमें पॉलिएस्टर की मात्रा अधिक होती है। ऐसे में इसकी गुणवत्ता अच्छी नहीं हाेती है। पानीपत में तैयार फ्लैनो कंबल में कॉटन और ऊन का इस्तेमाल होता है और इसकी क्वालिटी व गर्माहट अच्छी होती है।पानीपत से भी मिंंककंबल तैयार किए जाते हैं, लेकिन चीन की अपेक्षा इसमें पॉलिएस्टर की कम मात्रा इस्तेमाल की जाती है। पानीपत के मिंक कंबल में पॉलिएस्टर कम और कॉटन ज्यादा होता है। इस कारण चीन के कंबल की अपेक्षा पानीपत में तैयार मिंक कंबल की गर्माहट अधिक होती है।
ये भी पढ़ें- नशा तस्करी के 24 मामलों में दोषियों को 10 से 15 साल तक कैद, राज्य की NCB ने दर्ज किए 141 केसचीन के कंबलोें की अपेक्षा पानीपत में निर्मित कंबलों की डिजायनिंग भी बेहतर और आकर्षक होती है। इसके साथ ही चीन में मंदी के कारण वहां कच्चा माल और श्रमिक महंगा हो गए। इस कारण वहांं तैयार कंबल महंगा भी होता है।
कोविड के बाद से टूटा भरोसा
कोविड-19 के बाद से ही चीन के उत्पाद से विदेश में कारोबारियों का ट्रस्ट लेबल (भरोसा) टूट गया। आज इसी का परिणाम है कि चीन के उत्पाद विश्व के बाजार में अपनी पैठ नहीं बना पा रहे। दूसरा सबसे बड़ा कारण यह है कि कोरोना महामारी के बाद चीन में मंदी का दौर है।
चीन में 3.5 डॉलर में प्रति किलो दर से मिंक कंबल
चीन में तैयार होने वाले मिंक कंबल 3.5 डॉलर प्रति किलो की दर से विदेश के बाजार में पहुंचते हैं। जबकि वही मिंक कंबल भरत 3 डॉलर प्रति किलो के भाव से आपूर्ति करता है। कम दाम में चीन से अच्छा उत्पाद भारत विश्व के बाजार में उतारने में सफल हुआ है, जिसकी वजह से बाजार में पैठ और भी गहरी हो रही है।\
भारत टेक्सटाइल बाजार में चीन से आगे निकला
आज भारत का टेक्सटाइल उद्योग में चीन से आगे निकल चुका है। भारतीय उद्यमियों को अपनी इस बढ़त को बनाए रखना होगा। कोरोना महामारी की वजह से चीन के उत्पाद का विश्व स्तर के कारोबारियों ने बॉयकाट किया।
इस वजह से चीन में मंदी का दौर चला। मंदी की वजह से चीन के उत्पाद की लागत अधिक आने लगी। लागत अधिक होने पर विदेश में चीन के प्रोडक्ट महंगे दाम पर पहुंचने लगे। जबकि वही प्रोडक्ट भारत चीन से कम दाम में दे रहा है। इसका सीधा लाभ भारतीय कारोबार को मिला है।
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