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LokSabha Election 2019: सोशल मीडिया इफेक्ट, पल-पल हो रही प्रत्याशियों की घोषणा

सोशल मीडिया पर टिकट बंटवारे को लेकर चल रही पोस्ट से लोग भ्रमित हो रहे हैं। लोगों को समझ में नहीं आ रहा कि किसे प्रत्याशी समझें या किसे नहीं। हर कोई अपना-अपना दावा करने में जुटा है।

By Anurag ShuklaEdited By: Updated: Thu, 28 Mar 2019 12:28 PM (IST)
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LokSabha Election 2019: सोशल मीडिया इफेक्ट, पल-पल हो रही प्रत्याशियों की घोषणा
पानीपत/करनाल, [मनोज ठाकुर]।  मोबाइल खुलते ही धड़ाधड़ टिकट टिकट फाइनल होने की पोस्टें गिरने लगती हैं। परसो कोई चौधरी साहब करनाल से कमल के निशान पर चुनाव लड़ रहे थे तो आज भाटिया जी का फाइनल हो गया है। रात होते-होते पंडित जी के हाथ में टिकट दे दी गई।

कार्यकर्ता और जनता भी टिकट बंटवारे पर यकीन करते हुए अपनी राय बनानी शुरू कर देती हैं। लेकिन जैसे ही सोशल मीडिया पर एक पोस्ट पुरानी होकर उसकी जगह दूसरी आती है तो फिर उन्हें नए सिरे से  दिमागी कसरत करनी पड़ रही है। अलबत्ता पार्टी के नेता सोशल मीडिया पर चल रही टिकट बांट से इत्तेफाक नहीं रखते। वह कहते हैं कि समझ नहीं आता कि सुबह कौन टिकट देता और फिर दोपहर और रात होते होते यह कई लोगों को फाइनल कर देती है। 

सोची-समझी रणनीति से सोशल मीडिया को बनाते हैं हथियार
सोशल मीडिया पर टिकट को लेकर चल रहे खेल को समझना कोई मुश्किल नहीं है। टिकट की रेस में खुद को कायम रखने और अपना नाम दूसरों से आगे दिखाने के फेर में सोशल मीडिया पर पोस्ट जारी करवाई जाती है। इसके लिए नेता जी सोशल मीडिया के जानकार की मदद लेते हैं और इसकी एवज में उसे फीस अदा करते हैं। या फिर अपने घर या कार्यालय में एक कर्मचारी इसलिए नियुक्त किया हुआ है कि वह समय समय पर फेसबुक, ट्वीटर व वाटसएप्प सहित सोशल मीडिया के अन्य माध्यमों पर यह प्रचारित करता रहे हैं कि उनकी टिकट फाइनल हो चुकी है। कहीं दूसरे नेता का नाम आगे जाता दिखे तो उसकी एक दो कमियों को भी पोस्ट करते हुए तुलना कर दी जाए और अपने ही लोगों से तुरंत उस पर कमेंट लिखा दें। ताकि पोस्ट पढऩे वालों को लगे कि यही नेता टिकट लेगा और यही दूसरों से बेहतर भी है।

सोशल मीडिया नहीं, पार्टी का संसदीय बोर्ड करता है टिकट फाइनल
भाजपा के प्रदेश महामंत्री एडवोकेट वेदपाल मानते हैं कि सोशल मीडिया भ्रमित करता है। टिकट फाइनल कर देने की सूचनाएं से निश्चित तौर पर लोग व कार्यकर्ता भ्रमित होते हैं। इन रिपोर्ट को कतई विश्वसनीय नहीं माना जा सकता। पार्टी का संसदीय बोर्ड टिकट फाइनल करेगा। इससे पहले यदि सोशल मीडिया पर कोई टिकट फाइनल होने का दावा करता है तो उससे भ्रमित नहीं हों। 

सोशल मीडिया को लेकर बननी चाहिए नियमावली
भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष अशोक सुखीजा ने कहा कि यही वजह है कि सोशल मीडिया से लगातार विश्वास कम होता जा रहा है। निश्चित तौर पर सोशल मीडिया लोगों को जागरूक करता है, लेकिन इसके गलत इस्तेमाल से लोग भ्रमित तेजी से होते हैं। इसी तरह से लोकसभा टिकटों को लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है। सोशल मीडिया को लेकर नियमावली बनाए जाने की जरूरत महसूस की जा रही है।

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