Indian Army Day: भारतीय सेना में नए अध्याय का आरंभ बना 'विजयंत', जानें भारत-पाक युद्ध के बेमिसाल नायक की कहानी
Indian Army Day भारतीय सेना में वीर जवानों के साथ शानदार टैंकों ने भी अहम भूमिका निभाई है। 1971 के भारत - पाकिस्तान युद्ध में विजयंत टैंक ने एक नायक की भूमिका निभाई थी। भारतीय सेना दिवस पर जानें विजयंत टैंक की कहानी।
By Sunil Kumar JhaEdited By: Updated: Sat, 15 Jan 2022 06:30 PM (IST)
करनाल, [पवन शर्मा]। Indain Army Day: आज यानि 15 जनवरी को भारतीय सेना दिवस है। वीर सैनिकों के साथ शानदार टैंकों ने भी भारतीय सेना को गौरव बढ़ाया है। ऐसे में सैनिकाें की शौर्य गाथा के साथ उस टैंक का स्मरण करना भी आवश्यक है, जिसने सेना के इतिहास में नए अध्याय का सूत्रपात किया। विजयंत टैंक के सेना में 1966 में शामिल होने के साथ ही स्वदेशी टैंक युग का भी शुभारंभ हुआ। विजयंत की मारक क्षमता ऐसी थी कि दुश्मन के होश उड़ जाते थे। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में इस विजयंत टैंक ने शत्रु सेना को तहस-नहस कर दिया था। अब यह बेमिसाल नायक हरियाणा के करनाल के कुंजपुरा सैनिक स्कूल में भावी सेनानियों को प्रेरित कर रहा है।
1971 की भारत-पाक जंग में इसी टैंक ने निभाई थी नायक की भूमिकाविजयंत ने छम्ब खेमकरण और शंकरगढ़ जैसे स्थानों पर भीषण जंग लड़कर नया आयाम स्थापित किया था। इसके अलावा कारगिल युद्ध में भी यह भारतीय सेना के लिए काफी मददगार साबित हुआ था। इसकी सफलता ने आयुद्ध निर्माण करने वाली स्वदेशी एजेंसियों का उत्साह बढ़ाया तो भीष्म, अर्जुन समेत नई पीढ़ी के स्वदेशी टैंक भी भारतीय सेना को मिले। करनाल के कुंजपुरा सैनिक स्कूल परिसर में स्थित विजयंत टैंक मेन ब्लाक की शान है, जिसे देख विद्यार्थी ही नहीं, बल्कि आगंतुक भी अलग ही रोमांच की अनुभूति करते हैं।
स्वेदशी टैंक युग की शुरुआत का श्रेयविजयंत टैंक से भारतीय प्रतिरक्षात्मक शक्ति में आशातीत वृद्धि हुई। इसके साथ ही स्वदेशी टैंक युग का श्रीगणेश भी हुआ। 39 से 85 टन तक भारी और 30 मिलीमीटर मोटी सतहयुक्त यह टैंक विश्र्व के सबसे भारी टैंकों में एक है। इसकी लंबाई 7.527 मीटर, चौड़ाई 3.168 मीटर और जमीन से ऊंचाई तीन से पांच मीटर तक है। इसकी मुख्य तोप का व्यास 105 मिमी, लंबाई पांच मीटर और भार 1287 किलोग्राम है।
इस श्रेणी के टैंकों में यह सबसे भारी तोप है। यह 360 डिग्री घूमकर शत्रु के निशाने को निष्फल कर सकती है। इससे 6400 मीटर तक गोला फेंका जा सकता है और प्रति मिनट यह आठ गोले फेंक सकता है। इस टैंक का संचालन करने वाले दल में एक-एक कमांडर, चालक, आपरेटर और तोपची के रूप में चार लोग शामिल होते हैं। 30 डिग्री तक की सीधी चढ़ाई में सक्षम यह टैंक आठ फुट तक गहरे गढ्डे या खाई आसानी से पार कर सकता है।
करनाल के कुंजपुरा सैनिक स्कूल स्थित मेन ब्लाक में रखा है यह टैंक, 1998 में लाया गया 1971 के युद्ध में विजयंत टैंक ने छम्ब खेमकरण व शंकरगढ़ जैसे स्थानों पर दुश्मन के छक्के छुड़ाए। कुंजपुरा सैनिक स्कूल के प्रवेश द्वार से कुछ आगे बढ़ते ही इस टैंक की पहली झलक मिलती है, जहां इसे भूपेंद्र सिंह हुड्डा मेन ब्लाक के बिल्कुल बाहर रखा गया है। 30 मई 1998 को भारतीय सेना के गौरवशाली इतिहास से जुड़े इस विशाल टैंक को यहां वीर चक्र विजेता मेजर जनरल विनोद भनोट ने स्थापित किया था। 222 नंबर के इस टैंक को देखकर बखूबी महसूस होता है कि 1971 के जंग में विजयंत ने दुश्मनों के खेमे में किस तरह तबाही मचाई होगी। सैनिक स्कूलों के पूर्व छात्रों की एसोसिएशन 'द कुंजियंस' के राष्ट्रीय महासचिव राजेश सांगवान बताते हैं कि इस टैंक ने 1971 की जंग में नायक की भूमिका निभाई थी।
होती है गर्व की अनुभूति : कर्नल राणासैनिक स्कूल के प्रिंसिपल कर्नल विजय राणा बताते हैं कि भारतीय सेना के स्वर्णिम सफर में कुंजपुरा सैनिक स्कूल ने मील के पत्थर की भूमिका निभाई है। यहां कच्ची मिट्टी को फौलाद में ढाला जाता है। स्कूल परिसर में रखे विजयंत टैंक को देखकर राष्ट्रभक्ति और गर्व की अनुभूति होती है। स्कूल से निकले वीर सेनानियों की लंबी फेहरिस्त है। अंबाला एयरबेस पर राफेल लाने वाली टीम में शामिल विंग कमांडर मनीष कुंजपुरा स्कूल के पूर्व छात्र हैं तो इसी टीम के जाबांज रोहित कटारिया के पिता कर्नल सतबीर सिंह यहां शिक्षक रहे।
1971 की जंग में स्कूल के छात्र रहे लेफ्टिनेंट विजय प्रताप सिंह पूर्वी कमान में 22 वर्ष की आयु में शहीद हुए तो पूर्व छात्र लेफ्टिनेंट नवनीत स्वराज ने छम्ब सेक्टर में प्राण न्यौछावर किए थे। 24 जुलाई 1961 को तत्कालीन रक्षा मंत्री वीके कृष्णा मेनन ने इसकी स्थापना की थी।स्कूल ने दिए कई अनमोल रत्नइस संस्थान ने सशस्त्र सेनाओं को कई रत्न दिए हैं। इनमें सेवानिवृत्त सेना अध्यक्ष जनरल दीपक कपूर, एयर मार्शल पीएस भंगू, शिक्षाविद् लेफ्टिनेंट जनरल डीडीएस संधू, लेफ्टिनेंट जनरल पीएस भल्ला, स्कूल ओल्ड ब्वायज एसोसिएशन के अध्यक्ष मेजर जनरल विशंभर दयाल, पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और विज्ञापन गुरु प्रह्लाद कक्कड़ सरीखी हस्तियां प्रमुख हैं।
पहले बैच में पढ़े थे पूर्व सेना अध्यक्षसैनिक स्कूल कुंजपुरा 1961 में शुरू हुआ था। पूर्व सेना अध्यक्ष जनरल दीपक कपूर इसके पहले वर्ष के छात्रों में शामिल रहे हैं। उन्होंने स्कूल के पहले ही बैच में कक्षा नौ में दाखिला लिया था। जनरल कपूर 1963 में पास आउट होकर नेशनल डिफेंस एकेडमी में चले गए थे। तब देश में सिर्फ सात सैनिक स्कूल थे जबकि आज इनकी संख्या 30 हो चुकी है। स्कूल के पहले ही बैच में लेफ्टिनेंट जनरल डीडीएस संधू उनके सहपाठी रहे, जिन्हें आज सुविख्यात शिक्षाविद् की पहचान भी हासिल है। चंद रोज पहले ही कुंजपुरा सैनिक स्कूल में आयोजित पूर्व छात्रों के मिलन समारोह में दोनों सहपाठियों की मुलाकात हुई थी तो वे भावुक हो गए थे।
शहीद विजयंत से भी जुड़ी यादेंसैनिक स्कूल कुंजपुरा के प्रिंसिपल कर्नल विजय राणा बताते हैं कि विजयंत टैंक के साथ भारतीय सेनानियों की बहादुरी के भी अनेक किस्से हैं। 1971 की जंग में इसने मुख्य बैटल टैंक की भूमिका निभाई थी। इसने पाकिस्तानी सेना के कई बंकरों को तबाह करने के बाद कई किलोमीटर तक खदेड़ दिया था। इस टैंक की यादें करगिल युद्ध के शहीद कैप्टन विजयंत थापर से भी जुड़ी हैं। दरअसल, उनके पिता रिटायर्ड कर्नल वीएन थापर ने अपने बेटे का नाम विजयंत टैंक के ही नाम पर रखा था। इसका मतलब आखिर में जीत होता है। शहीद विजयंत की यूनिट 2-राजपूताना राइफल्स का सूत्र वाक्य भी यही था।
रेड ईगल का दिया था साथरिटायर्ड कैप्टन मिलन चटर्जी बताते हैं कि 1971 की जंग में भारतीय सेना की रेड ईगल डिवीजन के जवान मोर्चे पर अग्रणी पंक्ति में पूरी ताकत के साथ डटे थे। प्रयागराज की इस डिवीजन ने युद्ध में तेजी से आगे बढ़ते हुए पूर्वी पाकिस्तान में मधुमती नदी के पार एक बड़े इलाके पर कब्जा कर लिया था। तब स्वदेश निर्मित विजयंत टैंक ने ही सेना का भरपूर साथ दिया था और कवर फायर से लेकर दुश्मनों पर हमला बोलने तक में बेहद अहम भूमिका निभाई थी।
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