World Cancer Day 2021: कैंसर का नाम सुनते ही टूट जाता है हौसला, इस युवती ने सांसे टूटने पर भी हिम्मत नहीं हारी
26 साल की इस लड़की ने चौथी स्टेज के कैंसर को हराया। जनवरी 2019 को कैंसर होने की पुष्टि हुई थी। चंडीगढ़ पीजीआइ के चिकित्सकों ने भी थोड़े दिन का मेहमान बताया था। एक बार सांस टूट चुकी थी। इसके बावजूद जिंदगी की जंग जीती।
By Anurag ShuklaEdited By: Updated: Thu, 04 Feb 2021 05:04 PM (IST)
कुरुक्षेत्र, [विनीश गौड़]। World Cancer Day 2021: कैंसर का नाम सुनते अच्छे से अच्छे व्यक्ति का हौसला टूट जाता है। मगर 26 साल की दीपिका अपने अटल विश्वास से कैंसर की चौथी स्टेज को भी मात देकर वापस लौट आई। उपचार के दौरान एक बार दीपिका की सांसें करीब-करीब टूट ही चुकी थी। मगर मां की पुकार ने उन्हें फिर से इस बीमारी से लडऩे की ऐसी शक्ति प्रदान की। इसके बाद उसने सिर्फ अपने दिलोदीमाग में ठीक होने की बात ही बैठा ली।
दीपिका ने पूरे एक साल तक कैंसर की असहनीय पीड़ा को झेला। चंडीगढ़ पीजीआइ विशेषज्ञों ने भी दीपिका की हालत को देखते हुए उसे कुछ दिन की मेहमान बता दिया था और परिवार घर वापस लौटा आया था। एलएनजेपी अस्पताल के कैंसर रोग विशेषज्ञ डा. रमेश सभ्रवाल ने उसे मौत से पहले जीवन नहीं हारने का धैर्य बंधाया। इसके बाद उसका इलाज शुरू हुआ और अब वह बिल्कुल स्वस्थ है। दीपिका एक फिजियोथैरेपी सेंटर में फिजियोथैरेपिस्ट असिस्टेंट के तौर पर कार्यरत हैं।
जनवरी 2019 को कैंसर की हुई थी पुष्टि
दीपिक ले बताया कि उसे आठ जनवरी 2019 को कैंसर होने का पता चला। वह पहले बिल्कुल स्वस्थ थी। उसको पेट के निचले हिस्से में बहुत दर्द होने लगा। वह पहले तो दर्द की दवाएं लेती रहीं, इसके बाद उनको दर्द इंजेक्शन लगवाने के बाद भी बंद नहीं हुआ तो उन्होंने जांच कराई। इसमें भी कुछ स्पष्ट नहीं हुआ। उसने चंडीगढ़ पीजीआइ में जांच कराई। इसके बाद वह दर्द के चलते बेसुध हो गई।उसे पीजीआइ रेफर कर दिया गया। जहां चिकित्सकों ने उसे कैंसर होने की पुष्टि की। इसके बाद भी जांच चलती रही। उसकी हालत दिन प्रतिदिन बिगड़ती चली गई। पीजीआइ में चिकित्सकों ने पहले सर्जरी करने की बात कही, लेकिन जब कैंसर लीवर तक पहुंचने की बात सामने आई तो उन्होंने सर्जरी करने से भी मना कर दिया। परिवार के लोग उसे घर वापस ले आए। उनका खाना पीना सब बंद हो गया। वह एक वैद्य से उपचार कराया। उसने फिर खाना पीना शुरू कर दिया, लेकिन कैंसर अभी भी अंदर पनप रहा था।
डाक्टर ने दी कैंसर से लडऩे की प्रेरणा
उसने बताया कि वह एक दिन अपनी मां के साथ एलएनजेपी अस्पताल में कैंसर रोग विशेषज्ञ डा. रमेश सभ्रवाल से मिली। उन्होंने उन्हें आखिरी सांस तक कैंसर से लडऩे के लिए प्रेरित किया। उसने कीमो थैरेपी शुरू की। एक दिन कीमो देते वक्त उसकी सांसे भी थम गई थी। आमतौर पर एक या दो कीमो में ही कैंसर ठीक होने लग जाते हैं, लेकिन उसको आठ कीमो भी बेअसर रहे। ऐसे में उसको नौ कीमो दी। इसके बाद भी उसे सर्जरी करानी पड़ी।
इन्होंने दिया कैंसर से उभारने का काम दीपिका ने बताया कि उसकी मां सिलाई कर घर का गुजारा करती है। उसे कैंसर का पता चला तो परिवार का पहाड़ टूट गया। उसकी अंजू बाला ने उसको संभाला। इसके अलावा समाजसेवी राजेश ङ्क्षसगला, जन सहयोग संस्था के सदस्य मास्टर जितेंद्र, डा. हिमांशु और डा. रमेश सभ्रवाल ने उनकी व उनके परिवार की हर संभव मदद की।
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