पाकिस्तान में सबकुछ लुटाकर आए एक परिवार रेवाड़ी में बना मिसाल, 300 परिवार को दे रहे रोजगार
Nandlal Taneja बटवारे के बाद ठाकुर दास तनेजा और उनके छोटे भाई नंदलाल तनेजा का परिवार पहले अमृतसर और उसके बाद रेवाड़ी पहुंचा था। यहां पर एक दुकान से कारोबार की शुरुआत की और आज 300 परिवार को पेट पाल रहे हैं।
By Jp YadavEdited By: Updated: Sat, 13 Aug 2022 03:21 PM (IST)
रेवाड़ी [अमित सैनी]। विभाजन की त्रासदी ने घर और देश को तो छुड़ा दिया लेकिन पुरुषार्थ की जो लकीरें विधाता ने हाथों में खींची थी उसने खाली पेट आए तनेजा परिवार को इस काबिल बना दिया है कि वह 300 से ज्यादा परिवारों की रोजी रोटी का माध्यम बने हुए हैं।
वर्ष 1947 में विभाजन के दौरान पाकिस्तान के लायलपुर से चलकर किसी तरह से ठाकुर दास तनेजा और उनके छोटे भाई नंदलाल तनेजा का परिवार पहले अमृतसर और उसके बाद रेवाड़ी पहुंचा था। यहां पर एक छोटी सी किराना की दुकान से अपने कारोबार की शुरूआत की थी। आज इनके बच्चे शहर में गाड़ियों से लेकर दोपहिया वाहनों तक के बिक्री केंद्रों को चला रहे हैं।
मेहनत से हासिल किया मुकाम
शहर निवासी दिलीप तनेजा और उनके छोटे भाई प्रदीप तनेजा जब विभाजन के दौरान हुई घटनाओं को याद करते हैं तो उनकी आंखों से आंसू छलक जाते हैं। दिलीप तनेजा बताते हैं कि लायलपुर में उनका किराने का काम था। भरा पूरा परिवार सुख शांति से जीवन व्यतीत कर रहा था। 1947 में जब विभाजन की चिंगारी जली तो पाकिस्तान में रह रहे हिंदू परिवारों पर तो जैसे आफत टूट पड़ी थी।
एक कमरे में करता था पूरा परिवार गुजारा
पिताजी बताते थे कि उस समय घर की महिलाओं को पाकिस्तान से बचाकर हिंदस्तान लाना सबसे मुश्किल था। ट्रेन में किसी तरह से छिपते छिपाते पूरा परिवार पहले अमृतसर पहुंचा था तथा वहां से सरकार ने रेवाड़ी भेज दिया। रेवाड़ी में एक कमरे का मकान उनको दिया गया था। पूरा परिवार उसी में गुजारा करता था।2007 में आई कंपनी की डीलरशिप
ताऊजी ठाकुर दास तनेजा ओर पिताजी नंदलाल तनेजा ने रेलवे रोड पर किराने की दुकान से ही कारोबार की शुरूआत की थी। धीरे-धीरे काम आगे बढ़ा और परिवार के लोगों ने कारोबार को भी बढ़ाना आरंभ किया। वर्ष 1991 में सबसे पहले स्कूटर की डीलरशिप लेकर आए। 2007 में एक नामी कार कंपनी की भी डीलरशिप उनके पास आ गई। एक अन्य दोपहिया वाहन कंपनी की भी डीलरशिप भी उनके ही पास है। दिलीप तनेजा बताते हैं कि 300 से ज्यादा कर्मचारियों को उनके पास रोजगार मिला हुआ है।
राष्ट्र की उन्नति में योगदान है मकसद दिलीप तनेजा का कहना है कि 75 साल हो गए हमारे परिवार को भारत आए हुए। हाथ और पेट दोनों खाली थे लेकिन हमारे ताऊजी और पिताजी ने हार नहीं मानी। ताऊजी और पिताजी अंतिम समय तक कारोबार को आगे बढ़ाते रहे। हम लोगों ने भी उनकी परंपरा को कायम रखा। अब हमारे बच्चे भी उसी राह पर आगे बढ़ रहे हैं। प्रयास यही है कि हम राष्ट्र की उन्नति में ज्यादा से ज्यादा योगदान दे सकें। विभाजन के कष्ट आज भी हमारे जख्मों को हरा कर देते हैं लेकिन हमने जीवन में आगे बढ़ना सीख लिया है।
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