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Kisan Andolan: जानें- कैसे राकेश टिकैत, योगेंद्र यादव व गुरनाम सिंह चढूनी ने बढ़ाई राजस्थान और हरियाणा के लोगों की मुसीबत

Haryana Kisan Andolan जब 13 दिसंबर 2020 को योगेंद्र यादव ने अपने गृह जिला रेवाड़ी से सटे अलवर जिले की सीमा में दिल्ली-जयपुर हाईवे पर धरना शुरू किया तब किसी को यह अनुमान नहीं था कि कृषि कानून विरोधियों के साथ-साथ आम लोगों की भी इतनी अधिक परेशानी झेलनी पड़ेगी।

By Jp YadavEdited By: Updated: Sun, 13 Jun 2021 06:29 AM (IST)
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Kisan Andolan: जानें- कैसे राकेश टिकैत, योगेंद्र यादव व गुरनाम सिंह चढूनी ने बढ़ाई रेवाड़ी के लोगों की मुसीबत
नई दिल्ली/रेवाड़ी [महेश कुमार वैद्य]। Haryana Kisan Andolan: दिल्ली-जयपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित जयसिंहपुर खेड़ा-शाहजहांपुर बॉर्डर (हरियाणा-राजस्थान की सीमा) पिछले छह माह से कृषि कानून विरोधियों का अहम ठिकाना बना हुआ है। बेशक यहां पर सिंघु बॉर्डर व टीकरी बॉर्डर की तरह का हुजूम एकत्रित नहीं हुआ, मगर राकेश टिकैत, योगेंद्र यादव व गुरनाम सिंह चढूनी जैसे विभिन्न किसान संगठनों के प्रमुख पदाधिकारी समय-समय पर यहां पहुंचकर हौसला बढ़ाते रहे। इसके चलते यहां पर हल्का-फुल्का ही सही धरना-प्रदर्शन जारी है।

छह माह से सुगम आवाजाही बाधित

कहा जाता है कि जब 13 दिसंबर 2020 को योगेंद्र यादव ने अपने गृह जिला रेवाड़ी से सटे अलवर जिले की सीमा में दिल्ली-जयपुर हाईवे पर धरना शुरू किया, तब किसी को यह अनुमान नहीं था कि कृषि कानून विरोधियों के साथ-साथ आम लोगों की भी इतनी अधिक परेशानी झेलनी पड़ेगी। आज हालात यह है कि कृषि कानून विरोधियों का यह धरना लोगों को बुरी तरह अखरने लगा है। जिस दिल्ली-जयपुर हाईवे पर सरपट वाहन दौड़ते थे, उस पर अब छह माह से सुगम आवाजाही बाधित है। हाईवे रोकना उन लोगों को नागवार गुजर रहा है, जिनका सामान्य कामकाज प्रभावित हो रहा है। वाहन चालकों के लिए जहां दिल्ली-जयपुर के बीच आने-जाने का समय बढ़ गया है, वहीं ट्रांसपोर्टरों को समय के साथ-साथ धन की मार भी झेलनी पड़ रही है। दिल्ली-जयपुर के बीच उन्हें जितना किराया पहले मिलता था उतना ही अब मिल रहा है, जबकि उनका डीजल अधिक खर्च हो रहा है। 

राजस्थान की कांग्रेस सरकार की शह

हरियाणा की सीमा में लगे विशाल बैरिकेड्स यह बताने के लिए काफी हैं कि कृषि कानून विरोधियों का राजस्थान की ओर से दिल्ली की ओर कूच करना आसान नहीं है, मगर यह भी हकीकत है कि धरने पर बैठे लोग भी राजस्थान की सीमा से आगे बढ़ने के लिए तैयार नहीं दिखते। धरना दे रहे लोगों को राजस्थान में सत्तासीन अशोक गहलोत सरकार की पूरी शह मिल रही है, लेकिन छह माह का लंबा समय होने के कारण अलवर व आसपास के जिलों के राजस्थान के लोग भी गहलोत सरकार से नाराज हैं। प्रबुद्ध लोगों को आंदोलन के तौर तरीकों पर घोर आपत्ति है। 

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सड़कों का कचूमर, जाम हुआ आम

हरियाणा-राजस्थान की सीमा पर स्थित सांझापुर, मोहनपुर व कई अन्य गांवों की संपर्क सड़कें बदहाल हो चुकी है, क्योंकि हाईवे का यातायात इन गांवों से होकर भी गुजर रहा है। बार्डर के आसपास की कई सड़कों का कचूमर निकल चुका है। आसपास के पेट्रोल पंपों पर सन्नाटा पसरा है। दिल्ली से जयपुर की ओर जाने में परेशानी कम है, मगर जयपुर से दिल्ली की ओर आते समय एक से चार घंटे तक जाम में फंसना आम है। इससे लोगों में गुस्सा है। किसान संगठनों से जुड़े पदाधिकारियों को छोड़कर आम लोग इन्हें आंदोलनकारी नहीं बल्कि कुछ संगठन प्रतिनिधियों की जिद मान रहे हैं। जाम में फंसे रेवाड़ी के एक कैंटर चालक ने कहा कि छह-छह महीने रास्ता रोककर बैठना लोकतंत्र नहीं बल्कि लट्ठ तंत्र है।

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किसान नेता योगेंद्र यादव का कहना है कि मुझे यह मानने में कोई झिझक नहीं है कि छह महीने तक मुख्य सड़क रोककर बैठना उचित नहीं है, मगर इसके लिए केवल किसानों और उनके प्रतिनिधियों को जिम्मेदार बताना व समझना गलत है। यह सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह संवाद शुरू करे, मगर केंद्र ने संवाद का रास्ता जानबूझ कर बंद किया हुआ है। लोकतंत्र में जब सरकार सुनना बंद कर दे तब सड़क पर आना पड़ता है।  

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