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Haryana Politics: जयचंद की एंट्री ने किया केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह का मजा किरकिरा

Haryana Politics केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह (Union Minister Rao Inderjit Singh) ने हरियाणा विधानसभा चुनाव 2019 (Haryana Assembly Elections 2019) में अपने चहेते नेता सुनील मुसेपुर का विरोध करने वाले भाजपाइयों को जयचंद क्या कहा था।

By Jp YadavEdited By: Updated: Tue, 23 Aug 2022 10:02 AM (IST)
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Haryana Politics: जयचंद की एंट्री ने किया केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह का मजा किरकिरा

रेवाड़ी [महेश कुमार वैद्य]। केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह के लिए बीते सोमवार की सुबह मिठास लेकर आई थी। इसकी वजह थी कार्यकर्ता अजय पाटौदा के यहां जलपान में जुटी चाहने वालों की उम्मीद से अधिक भीड़, मगर कार्यकर्ता सम्मेलन में बदले इस कार्यक्रम में राव इंद्रजीत सिंह ने विधानसभा चुनाव में अपने चहेते सुनील मुसेपुर का विरोध करने वाले भाजपाइयों को जयचंद क्या कहा, मानो आफत ही आ गई। उनके तमाम विरोधी सक्रिय हो गए। बयानबाजी ने शाम होते-होते राव इंद्रजीत सिंह का जायका बिगाड़ दिया। तीन दिन की मेहनत पर पानी फिर गया। जिला परिषद चुनावों के बहाने राव इंद्रजीत सिंह ने 14 से लेकर 16 अगस्त तक बड़ी संख्या में अपने इंसाफ मंच के पुराने व उनके माध्यम से आए नए कार्यकर्ताओं को जोड़ने का पूरा प्रयास किया था, मगर जैसे ही हरको बैंक के चेयरमैन अरविंद यादव ने जयचंद को लेकर चुप्पी तोड़ी, वैसे ही बयानबाजी का ऐसा दौर शुरू हुआ जो आजतक जारी है।

क्यों टूटा अरविंद का मौन?

पक्का 'एंटी राव' बनने के लिए कुछ नेताओं में यह बताने की होड़ लगी है कि राव इंद्रजीत सिंह ने उसे ही जयचंद कहा था। हालांकि राव ने किसी का नाम नहीं लिया, मगर हरको बैंक के चेयरमैन अरविंद यादव से इसकी कड़ी इसलिए जुड़ी, क्योंकि पटौदा की अपनी रैली में राव इंद्रजीत ने बिना नाम लिए उनको इनामी जयचंद कहा था। अरविंद इसलिए निशाने पर हैं, क्योंकि विस चुनावों में टिकट वितरण के बाद उनके कुछ समर्थकों ने राव इंद्रजीत पर असहज करने वाले सवाल दागे थे। अरविंद ने इसे शुभचिंतकों की स्वाभाविक प्रतिक्रिया बताया था, जबकि राव इंद्रजीत सिंह ने इसे साजिश माना था। अब सवाल यह है कि राव इंद्रजीत की हर टिप्पणी पर चुप रहने वाले अरविंद का इस बार मौन क्यों टूटा? छनकर आ रही खबरों के अनुसार मौन इसलिए टूटा ताकि जयचंद के टाइटल से परमानेंट मुक्ति व 'एंटी राव' के पद पर नियुक्ति पा सके।

कापड़ीवास की घर वापसी का मामला

पूर्व विधायक रणधीर कापड़ीवास मौका मिलते ही राव इंद्रजीत सिंह के विरोध में जुट जाते हैं। वह यह बता रहे हैं कि उन्होंने और उनके परिवार ने राव का पूरा साथ दिया, मगर टिकट कटने का दर्द नहीं छुपा पाते। टिकट न मिलने पर वर्ष 2019 का विस चुनाव निर्दलीय लड़े कापड़ीवास ने राव के चहेते भाजपा उम्मीदवार को तो हरा दिया था, मगर खुद नहीं जीत पाए। फायदा कांग्रेस ले गई। यही राव इंद्रजीत का गुस्सा है। राव इंद्रजीत सिंह को यह मलाल है कि निष्कासित होने के बावजूद कई वरिष्ठ नेता कापड़ीवास से गलबहियां करते रहे हैं। इसी आधार पर नई चर्चाएं चली है। कहते हैं कापड़ीवास की भाजपा में फिर एंट्री संभव थी, मगर राव इंद्रजीत सिंह ने जयचंद वाला बयान देकर उनकी राह में उसी तरह कांटे बिछा दिए हैं, जैसे भेडि़यों को पार्टी में नहीं घुसने देने का बयान देकर चुनाव पूर्व जगदीश यादव की राह रोकी थी।

नारनौल में हाथ थामने कौन आएगा

कांग्रेसी नेता व पूर्व मंत्री नरेंद्र यादव को अहीरवाल का विन्रम नेताजी कहा जाता है। अपने स्वभाव की बदौलत ही वह लंबे समय से राजनीति में जगह बनाए हुए हैं। विधानसभा चुनाव अभी दूर हैं, मगर उनके नारनौल या अटेली से विधानसभा चुनाव लड़ने पर बहस शुरू हो गई है। माना जा रहा है कि इस बार विनम्र नेताजी का मूड अटेली की ओर है। इसी कारण उन्होंने अटेली में सक्रियता बढ़ाई हुई है। इस मामले की गहराई में जाएं तो कुछ दिन पहले अटेली से पिछली बार कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़े अर्जुन सिंह का एक बयान आया था। पूर्व सीएम राव बिरेंद्र सिंह के पौत्र अर्जुन ने कहा था कि वह कोसली में सक्रिय होंगे। तब बाद से ही कुछ चीजों को राजनीति में स्पष्ट माना जा रहा है। अब सवाल यहहै कि अगर नरेंद्र यादव नारनौल से अटेली आएंगे तो फिर नारनौल में हाथ थामने कौन जाएंगे।

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