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Air Pollution: कितना खतरनाक है 'स्मॉग'? मेमोरी लॉस, हार्ट अटैक-ब्रेन स्ट्रोक जैसी बीमारियों के लिए बजी खतरे की घंटी

Air Pollution इन दिनों वातावरण में प्रदूषण तेजी के साथ फैल रहा है। स्मॉग एक खतरनाक प्रदूषण है जो सांस और दिमाग पर बुरा असर डालता है। यह याददाश्त कमजोर कर सकता है और डीएनए में भी बदलाव ला सकता है। गर्भवती महिलाओं और बच्चों के लिए यह बहुत खतरनाक है। पढ़ें स्मॉग से कैसे बचें और इसके क्या नुकसान हैं।

By Vinod Joshi Edited By: Prince Sharma Updated: Wed, 20 Nov 2024 07:43 PM (IST)
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इस दौरान वातावरण में तेजी के साथ प्रदूषण बढ़ रहा है (जागरण फाइल फोटो)
विनोद जोशी, रोहतक। उत्तर भारत में खतरनाक स्तर पर पहुंच गए प्रदूषण को लेकर चिकित्सक भी चिंतित हो गए हैं। रोहतक के पीजीआइएमएस (पंडित भगवत दयाल शर्मा पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेज) के विशेषज्ञों का दावा है कि स्मॉग जानलेवा है।

सांस के साथ फेंफड़ों के अंदर तक जहरीले हवा घुलकर खून में मिश्रित हो रही है। युवाओं के मस्तिष्क पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है।

याददाश्त (स्मृति लोप) तक हो रहा है। गर्भवती महिलाओं के पेट में पल रहे शिशु के दिव्यांग होने से लेकर प्रसव भी पूर्व में होने का खतरा बढ़ गया है। डीएनए(डीआक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड) में भी भारी बदलाव संभवावित है।

प्रदेश की एकमात्र रोहतक के पीजीआइएमएस के डीन एकेडेमिक अफेयर्स डॉ. ध्रुव चौधरी के मुताबिक, यहां स्मॉग से प्रभावित मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है।

सांस व मस्तिष्क संबंधित मरीजों की संख्या इनमें सर्वाधिक है। इसलिए लोगों को घरों में एयर प्यूरीफाई व ऑक्सीजन गैस सिलेंडर रखने का सुझाव दिया है। डॉ. चौधरी के मुताबिक, स्मॉग में मिश्रित जहरीली गैस गर्भवती महिलाओं व होने वाले शिशु के लिए बेहद खतरनाक होता है।

डीएनए में भी बदलाव की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। इसीलिए गर्भवती महिलाएं मुंह पर मास्क अनिवार्य रूप से लगाएं। इसी तहर से व्यक्ति जब आराम की स्थिति में होता है तब एक व्यक्ति औसतन मस्तिष्क को प्रति मिनट करीब 49 मिलीलीटर ऑक्सीजन की जरूरत होती है।

यह शरीर की कुल ऑक्सीजन का करीब 20 प्रतिशत होता है। जोकि मस्तिष्क में शरीर के वजन का सिर्फ दो प्रतिशत होता है। लेकिन यह शरीर की ऑक्सीजन आपूर्ति का करीब 20 प्रतिशत ही इस्तेमाल करता है।

स्मॉग में घुल रहीं खतरनाक गैस व धुआं

डॉ. ध्रुव चौधरी के का कहना है कि सर्दी के दस्तक के साथ वातावरण में नमी, कोहरे के रूप में प्रदूषण (स्माग) की परत नुकसानदेह है। उच्च रक्तचाप के मरीजों को ब्रेन स्ट्रोक (लकवा) व दमा रोगियों को हार्ट अटैक का खतरा रहता है। गर्भवती महिलाओं के लिए स्मॉग बेहद घातक है।

स्मॉग में कई बेहद खतरनाक गैस व धुंआ वातावरण की नमी (कोहरा) के मिश्रण से तैयार होता है। यही जहरीला मिश्रण श्वांस के साथ आंखों और फेफड़ों तक पहुंचता है। स्मॉग कई मायनों में स्मोक और फाग से ज्यादा खतरनाक है।

वाहनों और कारखानों से निकलने वाले प्रदूषण के कारण स्मॉग का स्तर हर साल बढ़ता ही जा रहा है। इसलिए बीमार व्यक्तियों, बुजुर्गों, गर्भवती महिलाओं और बच्चों को ऐसे मौसम में घर से बाहर बहुत कम निकलना चाहिए।

नंबर गेम:

  • 35 प्रतिशत सांस के मरीजों में बढ़ोतरी
  • 130 के करीब रोजाना फेफड़ों संबंधित मामले आ रहे
  • 8 हजार के करीब पहुंची ओपीडी

मस्तिष्क: कार्बन डाईआक्साइड अंदर सोखने से हार्ट अटैक का खतरा

मस्तिष्क में स्मॉग में कार्बन मोनोऑक्साइड की मात्रा अधिक होती है, जो श्वास के जरिये सीधा शरीर में प्रवेश करती है। यह खून में मिश्रत होकर ऑक्सीजन को बाहर निकालने लगती है और कार्बन डाइआक्साइड को अंदर ले लेती है।

इससे शरीर में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है और फिर इसका असर सीधा मस्तिष्क पर होता है, जिससे ब्रेन हेमरेज व हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है। मस्तिष्क को कुछ पलों के लिए भी ऑक्सीजन न मिले व्यक्ति कोमा में भी जा सकता है। याददाशत भी जाने का खतरा बना रहता है।

एक्सपर्ट व्यू: 35 प्रतिशत सांस के अतिरिक्त मरीज बढ़े

पीजीआआइ की चेस्ट एंड टीबी स्पेशलिस्ट जूनियर रेजिडेंट्स डॉ. गरिमा नरवाल के अनुसार इमरजेंसी के सी ब्लाक में 35 प्रतिशत तक सांस के मरीज सबसे ज्यादा आ रहे है और इसमें 50 वर्ष से अधिक आयु के लोग शामिल है। इसमें अचानक से तो कोई संक्रमित लक्षण नहीं आते, लेकिन अगर समय पर उपचार नहीं हुआ तो इंफेक्शन होने का खतरा बना रहता है।

जानिए...मस्तिष्क को ऑक्सीजन की ज़रूरत क्यों होती है?

  • मस्तिष्क में न्यूरान्स को शक्ति देने के लिए ग्लूकोज की जरूरत होती है।
  • ऑक्सीजन के बिना, मस्तिष्क की कोशिकाएं ग्लूकोज का चयापचय नहीं कर पातीं
  • मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी से मस्तिष्क की कोशिकाओं को ऊर्जा नहीं मिल पाती और मस्तिष्क की कोशिकाएं मरने लगती हैं।
  • मस्तिष्क को ऑक्सीजन की कमी होने पर सिरदर्द, थकान, चक्कर आना जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

नोट : यह जानकारी डीन एकेडमिक अफेयर्स डॉ. ध्रुव चौधरी द्वारा दी गई है।

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