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एमए और एमटेक की डिग्री...फिर भी इन 5 युवतियों ने शिवलिंग पर वरमाला डाल क्यों किया जीवन समर्पित?

ब्रह्मकुमारी बनने का मार्ग अपनाते हुए हरियाणा और उत्तर प्रदेश की पांच युवतियों ने सांसारिक बंधनों को त्याग दिया। सिरसा के ब्रह्मकुमारीज आनंद भवन में आयोजित समारोह में उन्होंने शिवलिंग पर वरमाला डालकर अपना जीवन मानव सेवा और ईश्वर को समर्पित करने का संकल्प लिया। आइए जानें इन युवतियों की प्रेरणादायक यात्रा और ब्रह्मकुमारी बनने की प्रक्रिया के बारे में।

By Jagran News Edited By: Sushil Kumar Updated: Sun, 24 Nov 2024 09:14 PM (IST)
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इन 5 युवतियों ने अपनाया अध्यात्म का मार्ग।
जागरण संवाददाता, सिरसा। हरियाणा की रुहानी, सुनीता, अंजू, धन वर्षा और उत्तर प्रदेश की सिद्धि ने रविवार को सांसारिक बंधनों को त्यागकर अब ब्रह्मकुमारी का मार्ग अपना लिया है। सिरसा में हिसार रोड स्थित ब्रह्मकुमारीज आनंद भवन में हुए समारोह में पांच युवतियों ने शिवलिंग पर वरमाला डालकर अपना जीवन मानव सेवा और प्रभु को समर्पित करने का संकल्प लिया।

हरियाणा के रोहतक जिले की रहने वाली रुहानी स्नातक, सुनीता बीकाम और अंजू 12वीं पास व आईटीआई में डिप्लोमाधारक हैं। सिरसा निवासी धन वर्षा ने एम टेक की पढ़ाई की हुई है और कर चुकी हैं। उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिला स्थित तिलकवा गांव की सिद्धि एमए तक शिक्षित हैं। सिद्दी पंजाब के मानसा जिला के कस्बा झुनीर में ब्रह्मकुमारी आश्रम में कार्यरत हैं।

आंखों की समस्या हो गई दूर

किसान परिवारों में जन्मीं अब ये पांचों बहनें ब्रह्मकुमारीज कहलाई जाएंगी। रूहानी ने बताया कि वे शुरू से ही अध्यात्म की ओर जाना चाहती थी। पढ़ाई के साथ-साथ ब्रह्मकुमारी आश्रम में भी जाया करती थी। उनकी आंखों में थोड़ी समस्या हुई, जिसका उपचार करवाने पर ज्यादा फायदा नहीं हुआ। केंद्र के संपर्क में आने के बाद उन्होंने ध्यान करना शुरू किया और उन पर गहरा असर हुआ और धीरे-धीरे उनकी आंखों की समस्या भी अपने आप दूर हो गई।

इस तरह होता है ब्रह्मकुमारी का निर्माण

ब्रह्मकुमारीज बनने के लिए संस्था की एक प्रकिया निर्धारित है, जो सभी के लिए लागू होती है। संस्था प्रवक्ता के अनुसार इच्छुक साधक को राजयोग मेडिटेशन कोर्स के बाद छह माह तक नियमित सत्संग व राज योग ध्यान के अभ्यास के बाद केंद्र प्रभारी दीदी द्वारा सेवा केंद्र पर रहने की अनुमति दी जाती है।

पांच साल तक सेवा केंद्र पर रहने के दौरान संस्थान के दिनचर्या और गाइडलाइन का पालन करना होता है। बहनों का आचरण, चाल चलन, स्वभाव, व्यवहार देखा परखा जाता है। इसके बाद ट्रायल के लिए मुख्यालय शांतिवन के लिए माता-पिता का अनुमति पत्र भेजा जाता है।

ट्रायल पीरियड के दो साल ब्रह्मकुमारी के रूप में समर्पण की प्रक्रिया पूरी की जाती है। समर्पण के बाद फिर बहनें पूर्णत: सेवा केंद्र के माध्यम से ब्रह्मकुमारी के रूप में अपनी सेवाएं देती हैं। अब तक 50 हजार से ज्यादा ब्रह्मकुमारी बहनें विश्व भर में समर्पित होकर प्रभु की सेवा कर रही हैं।

जो कि तन-मन-धन के साथ समाज सेवा, विश्व कल्याण और सामाजिक आध्यात्मिक सशक्तिकरण के कार्य में जुटी हैं।

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