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मुझे नहीं पता था कि हाकी होती क्या है, मेरे दादा चाहते थे कि मैं हाकी खेलूं : सविता पूनिया

भारतीय हाकी टीम की कप्तान सविता पूनिया ने कहा कि जब उसने खेलना शुरू किया था तो उसे किसी भी खेल का कोई ज्ञान नहीं था और शरुआत में पता भी नहीं था कि हाकी होती क्या है। उन्होंने बताया कि उन्हें कोई भी गेम्स पसंद नहीं था लेकिन गेम खिलाने के लिए परिवार ने निर्णय लिया।

By JagranEdited By: Updated: Mon, 22 Aug 2022 11:22 PM (IST)
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मुझे नहीं पता था कि हाकी होती क्या है, मेरे दादा चाहते थे कि मैं हाकी खेलूं : सविता पूनिया

जागरण संवाददाता, सिरसा : भारतीय हाकी टीम की कप्तान सविता पूनिया ने कहा कि जब उसने खेलना शुरू किया था तो उसे किसी भी खेल का कोई ज्ञान नहीं था और शरुआत में पता भी नहीं था कि हाकी होती क्या है। उन्होंने बताया कि उन्हें कोई भी गेम्स पसंद नहीं था लेकिन गेम खिलाने के लिए परिवार ने निर्णय लिया। उनका कहना है कि खासकर मेरे दादा रणजीत सिंह चाहते थे कि मैं हाकी खेलूं। पूरे परिवार ने खेल के प्रति प्रेरित किया और खेलने के लिए भेजा। हर समय साथ खड़े रहे। सविता पूनिया रेलवे स्टेशन पर पत्रकारों से बातचीत कर रही थीं। रेलवे विभाग के टीआइ अजय गौतम, स्टेशन मास्टर नरेंद्र कुमार व वालीबाल कोच मुकेश कासनिया ने उनका रेलवे स्टेशन पहुंचने पर स्वागत किया।

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इतने सालों से टीम में बना रहना आसान नहीं

भारतीय महिला हाकी टीम की कप्तान सविता पूनिया ने कहा कि अब जिस मुकाम पर हूं, उस तक पहुंचने के लिए बहुत साल मेहनत की है। 2003 में हाकी खेलना शुरू किया था और 2007 से भारतीय टीम का हिस्सा हूं। टीम में इतने सालों से बना रहना छोटी बात नहीं है। इसके लिए हर दिन बहुत मेहनत करनी पड़ती है। हमारी टीम और कोच बहुत अच्छे हैं। भारतीय महिला हाकी टीम को बुलंदियों पर पहुंचाने में कोच जैनेके शापमैन की विशेष भूमिका है। क्योंकि वो खुद एक ओलंपियन मेडलिस्ट है। टारगेट को अचीव करने के लिए कोई भी एक्सयूज नहीं होता हमारे पास। प्रतिदिन बहुत हार्डवर्क करना पड़ता है।

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परिवार ने बहुत साथ दिया

सविता पूनिया ने कहा कि कोच ने मेरा बहुत साथ दिया, सही रास्ता दिखाया। लेकिन लाइफ में बहुत बार ऐसे मौके आए जब सर्जरी हुई या संघर्ष का टाइम आया तो परिवार ने मेरा बहुत साथ दिया। सविता ने कहा कि जब वह गेम्स नहीं भी खेलती थी तो उसे खुशी होती थी कि हां मैं लड़की हूं। हमारे घर में लड़कियों को बहुत महत्व दिया जाता है। पेरेंट्स को अपने बच्चों का पूरा साथ देना चाहिए। क्योंकि बेटा-बेटियां दोनों बराबर हैं। बच्चों को भी अपना लक्ष्य बनाकर कड़ी मेहनत करनी चाहिए। सविता ने कहा कि जब उसने खेलना शुरू किया था तो उनके गांव में कोई लड़की नहीं खेलती थी लेकिन धीरे-धीरे लोगों की सोच में बदलाव आने लगा है और लड़कियां आगे आने लगी हैं। आज के समय में शिक्षा बहुत जरूरी है। हरेक घर में शिक्षा होगी तो पता चलेगा कि बेटा-बेटी दोनों बराबर हैं।

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