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जानिए मुरथल के ढाबों पर क्यों नहीं मिलता मांसाहारी भोजन, पढ़िए- संत से जुड़ा रोचक किस्सा

The story of Murthal Dhaba मुरथल के ढाबों पर मांसाहार के विकल्प के रूप में स्वाद के शौकीनों को सोया चाप और पनीर की डिश परोसी जाती हैं। लोग यहां पहुंचकर मांसाहार की बजाय शाकाहारी व्यंजन ही मांगते हैं।

By Mangal YadavEdited By: Updated: Wed, 30 Sep 2020 07:02 PM (IST)
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प्रसिद्ध संत बाबा कलीनाथ की फाइल फोटो
सोनीपत [नंदकिशोर भारद्वाज]। सात राज्यों में अपने पराठों के स्वाद के लिए प्रसिद्ध मुरथल के ढाबों पर मांसाहार नहीं बेचा जाता। इसके पीछे की कहानी आस्था और धार्मिक भावना से जुड़ी है। दरअसल 1956 में मुरथल में सिर्फ दो ही ढाबे होते थे। जिले के प्रसिद्ध संत बाबा कलीनाथ ने दोनों को मांसाहार न बेचने का आदेश दिया था। ढाबा संचालकों के परिजनों ने बताया कि बाबा कलीनाथ ने कहा था कि शाकाहार ही सबसे उत्तम है। यहां सिर्फ शाकाहारी खाना ही बनेगा। जो मांसाहार बेचेगा वह बर्बाद हो जाएगा। उनके आदेश को मानकर आज भी ढाबा संचालक सिर्फ शाकाहारी खाना बनाते हैं।

मुरथल में सबसे पहला ढाबा मुरथल गांव निवासी सीताराम ने करीब 1950 में शुरू किया था। 1956 में अमरीक-सुखदेव के पिता प्रकाश सिंह ने अपना ढाबा शुरू किया था। उन दिनों गांव मलिकपुर के संत बाबा कलीनाथ अपने आशीर्वादों, चमत्कारों और जनकल्याण के लिए पूरे क्षेत्र में प्रसिद्ध थे। बाबा ने प्रकाश सिंह को बुलाकर ढाबे पर सिर्फ शाकाहारी खाना ही बनाने का आदेश दिया। उन्होंने कहा कि इस इलाके में जो भी मांसाहार बेचेगा वह बर्बाद हो जाएगा। 70-80 दशक के मध्य बाबा कहीं चले गए थे, बाद में उनका कोई अता-पता नहीं लगा लेकिन आज भी किसी भी ढाबे पर मांसाहार नहीं बेचा जाता। बताया जाता है कि दो ढाबा संचालकों ने मांसाहार बेचना शुरू किया था। इनमें से एक तो एक माह में ही बंद हो गया और दूसरे का बहुत बड़ा नुकसान हो गया था।

सोया चाप और पनीर हैं विकल्प

मुरथल के ढाबों पर मांसाहार के विकल्प के रूप में स्वाद के शौकीनों को सोया चाप और पनीर की डिश परोसी जाती हैं। ढाबों और चाप की दुकानों पर शाम को सोया चाप के कई व्यंजन और पनीर टिक्का समेत अन्य पकवानों की बिक्री बढ़ जाती है। लोग यहां पहुंचकर मांसाहार की बजाय शाकाहारी व्यंजन ही मांगते हैं।

पराठे, दाल मखनी और खीर से बनी पहचान

शुरू में मुरथल के ढाबों पर सिर्फ पराठे, दाल मखनी और मीठे के रूप में खीर ही मिलती थी लेकिन आज यहां पर हर प्रकार के शाकाहारी व्यंजन मिलते हैं। पहले ट्रक चालक यहां से गुजरते हुए रुककर खाना खाते थे लेकिन आज मुरथल के ढाबे पंजाब, हिमाचल, हरियाणा, चंडीगढ़, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान में अपने शाकाहारी व्यंजनों के स्वाद के लिए प्रसिद्ध हो चुके हैं। शनिवार और रविवार को यहां दिल्ली-एनसीआर से स्वाद के शौकीनों की भारी भीड़ उमड़ती है।

हाईवे ढाबा एवं होटल एसोसिएशन के प्रधान मनजीत सिंह ने कहा कि मेरे पिता व अन्य बुजुर्गों ने बताया था कि बाबा कलीनाथ ने मांसाहार न बेचने और सिर्फ शाकाहार अपनाने को कहा था। उन्हीं के आदेश पर आज भी कुंडली से लेकर पानीपत तक हाईवे किनारे के ढाबे मांसाहार नहीं बेचते। इसके अलावा मुरथल में बावरिया संप्रदाय और बाबा नागेवाले की बड़ी मान्यता है। दोनों के मंदिर भी यहां हैं। दो लोगों ने मांसाहार शुरू किया था लेकिन वे कामयाब नहीं हो पाए, इसलिए यहां सिर्फ शाकाहारी भोजन मिलता है।

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