कोरोना संकट में किसान काे खूब रास आ रही अफ्रीकन तुलसी की खेती, जानें इसकी खूबियां
हरियाणा के यमनाुनगर के प्रगतिशील किसान धर्मवीर को तुलसी की खेती कोरोना संकट के समय खूब रास आ रही है। डिमांड बढ़ने से उनको जमकर आमदनी हो रही है।
By Sunil Kumar JhaEdited By: Updated: Sat, 13 Jun 2020 08:49 PM (IST)
यमुनानगर, [संजीव कांबोज]। जिले के गांव दामला के प्रगतिशील किसान धर्मवीर कांबोज को कोरोना संकट में तुलसी की खेती खूब रास आ रही है। वह खेतों में तुलसी की खेती कर रहे हैं और उनकी उगाई तुलसी का अर्क व चायपत्ती बाजारों में पहुंच गई है। लोगों को यह अर्क व चायपत्ती खूब भा रही है। हरियाणा के अलावा दिल्ली सहित कई राज्यों की फार्मेसी कंपनियां उनके अर्क और तुलसी के पत्ती खरीद रही हैं। कोरोना संकट के कारण डिमांड काफी बढ़ गई है और इसी के साथ उनकी आमदनी भी।
दरअसल धर्मवीर एलोवेरा की खेती व मल्टीपर्पस फूड प्रोसेसिंग मशीन का ईजाद कर पहले ही काफी ख्याति प्राप्त कर चुके हैं। अब उन्होंने तुलसी की खेती से किसानों को नई राह दिखाई है। किसान धर्मवीर अफ्रीकन तुलसी उगाते हैं। धर्मवीर वर्ष 2014 में कीनिया के नैरोबी स्थित जूजा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में अपनी बनाई मल्टी प्रोसेसिंग मशीन की ट्रेनिंग देने गए। वहां उन्होंने तुलसी की खास प्रजाति देखी।
कोरोना काल में बढ़ गई तुलसी के अर्क की डिमांड, दिल्ली व बिहार की फार्मेसियों में कर रहे सप्लाई
वह इस अफ्रीकन तुलसी के कायल हो गए। वहां से लौटते समय वह अपने यहां उगाने के लिए इस तुलसी के बीज लेकर आए। उन्होंने शुरुआत में खेत के एक कोने में तुलसी उगाई, लेकिन बाद में इसका दायरा बढ़ता चला गया। आज इस स्थिति में हैं कि इस तुलसी से अर्क व चायपत्ती तैयार कर बाजार तक पहुंचा रहे हैं। कोरोना काल में इसकी काफी डिमांड है।
धर्मवीर की उगाई तुलसी में है खास गुणवैसे तो तुलसी की कई किस्में होती हैं। जैसे राम तुलसी, श्याम तुलसी, बाबरी तुलसी, लेमन तुलसी और मरवाह तुलसी। लेकिन ये किस्में साल भर हरी भरी नहीं रहती। खासतौर पर सर्दियों में सूख जाती हैं। दूसरा, इनका पौधा भी छोटा होता है। अफ्रीकन तुलसी की यदि बात की जाए तो इसका पौधा 8-10 फीट तक का हो जाता है। यह साल भर हरी भरी रहती है। एक बार खेत में बुआई कर दी तो कई वर्ष तक चलती रहती है। इस पर गर्मी और सर्दी का असर नहीं होता। जैसे-जैसे कटाई करते रहते हैं, वैसे-वैसे इसका फुटाव होता रहता है। उन्होंने एलोवेरा के बीच में भी तुलसी के पौधे लगाए हुए हैं। इन दिनों उनकी निरोई-गुढाई की जा रही है।
ये हैं औषधीय गुणधर्मवीर के मुताबिक यह बारह मासी, सुगंधित पौधा है। तुलसी में विटामिन ए, सी, कैल्शियम, जिंक, आयरन, क्लोरोफिल अधिक मात्रा में मिलता है। ये तत्व गंभीर बीमारी से लेकर सर्दी जुकाम को दूर करने में उपयोगी है। एंटी-ऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर होती है जो कि शरीर में फ्री रेडिकल्स से होने वाले नुकसान से बचाती है। अगर आप इसकी पत्तियां चबाते हैं या फिर इससे हर्बल-टी बनाकर पीते हैं तो उससे शरीर को लाभ होता है। अगर किसी भी इंसान का रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत स्ट्रांग है तो उसे बीमारियां कम लगती हैं और वह उनका मुकाबला कर लेता है।
फार्मेसिंयों में होता है सप्लाईतुलसी का अर्क लोकल मार्केट के अलावा दिल्ली की विभिन्न फार्मेसिंयों व बिहार के मुजफ्फरपुर में अधिक सप्लाई हो रहा है। साल में करीब चार हजार लीटर अर्क सप्लाई होता है। इसकी कीमत करीब सात लाख है। इसके अलावा वे एलोवेरा से भी विभिन्न उत्पाद तैयार करते हैं। इसके लिए स्वयं प्रोसेसिंग मशीन बनाई है। खेत से तुलसी काटकर मशीन में उसका अर्क निकालते हैं।
मशीन से तुलसी का अर्क निकालते किसान धर्मवीर। खास बात यह है कि वे इन उत्पादों की मार्केटिंग भी खुद करते हैं। मैकेनिकल से डिप्लोमा कर उनके बेटे प्रिंस ने भी यही राह पकड़ ली है। साथ ही दर्जन भर महिलाओं को भी रोजगार दिया हुआ है। ये महिलाएं खेत में औषधीय फसलों की निराई-गुढ़ाई के साथ प्रोसेस करने में भी उनकी मदद करती हैं।
ये उपलब्धियां धर्मवीर कांबोज के नामकृषि जगत में उत्कृष्ट कार्य करने पर वर्ष 2009 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल, 2010 में तत्कालीन केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पंवार ने फार्मर साइंटिस्ट का अवार्ड दिया। वर्ष 2013 में फूड प्रोसेसिग मशीन मनाने पर फर्स्ट नेशनल अवार्ड वर्ष-2014 में 1 जुलाई से 30 जुलाई तक राष्ट्रपति के मेहमान बनकर रहे।दसवीं पास किसान के पास केवल दो एकड़ जमीन है। ठेके पर जमीन लेकर 1996 में एलोवेरा व स्टीविया की खेती करनी शुरू कर दी। मल्टीपर्पज मशीन बनाने पर वर्ष-2015 में जिम्बाब्वे के राष्ट्रपति रॉर्बट मुगाबे ने भी सम्मानित किया। सीएम मनोहर लाल भी खेत में दौरा कर औषधीय फसलों की जानकारी ले चुकी हैं। यहां पर उन्होंने तुलसी की चाय का स्वाद भी लिया।
कहा- किसान बिजनेस की तरह करें खेती ताे होगी अच्छी आमदनी उनका कहना है कि खेती को यदि हम बिजनेस की तरह करें तो घाटे का सौदा नहीं है। किसान इकसी खेती से अच्छी आमदनी ले सकते हैं। किसान अपनी फसल से खुद उत्पाद तैयार करें। उनको प्रोसेस करें। मार्केट में स्वयं बेचें। बिचौलियों के चक्कर में न पड़ें। परंपरागत खेती के दिन अब लद गए हैं। किसानों को समय के साथ कदमताल करना होगा। खेती पर लागत मूल्य बढ़ रहा है, इसलिए किसान को भी हाइटेक होना होगा।
जिला उद्यान अधिकारी डॉ. रमेश पाल सैनी का कहना है कि धर्मवीर कांबोज ने औषधीय फसलों से व मल्टीपपर्ज प्रोसेसिंग मशीन तैयार कर अलग पहचान बनाई है। वाकई उन्होंने खेती के मायने बदल दिए हैं। खुद फसल उगाते हैं और खुद ही उनसे अलग-अलग तरह के उत्पाद तैयार करते हैं। उधर, जिला आयुर्वेदिक अधिकारी डॉ. सतपाल जास्ट का कहना है कि किसानों को औषधीय फसलों की ओर बढ़ना चाहिए। किसान धर्मवीर मिसाल कायम कर रहे हैं।
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