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Ram Mandir: 99 रुपये उधार लेकर गया था अयोध्या, राम लला के दर्शन के लिए किया था सवा महीने का इंतजार

देश में भगवान राम मंदिर की चर्चा हर जुबां पर थी। हम भी चार-पांच लोग ट्रेन में बैठे हुए थे। अयोध्या जी में भगवान राम मंदिर और विवादित ढांचे को लेकर तर्क-वितर्क चलता रहा। बात करते-करते यहां आकर रुक गई कि हम में से एक ने तपाक से कहा कि जब तुमने वह जगह देखी नहीं तो इतने विश्वास के साथ कैसे कह सकते हो।

By Sanjeev kumar Edited By: Nidhi Vinodiya Updated: Fri, 12 Jan 2024 02:57 PM (IST)
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सरदार कृपाल सिंह गिल गए थे अयोध्या, फोटो जागरण

देखों राम आ रहे हैं 

जागरण संवाददाता, यमुनानगर।   बात दिसंबर-1990 की है। देश में भगवान राम मंदिर की चर्चा हर जुबां पर थी। हम भी चार-पांच लोग बैठे हुए थे। अयोध्या जी में भगवान राम मंदिर और विवादित ढांचे को लेकर तर्क-वितर्क चलता रहा। मैं वहां पर भगवान राम के मंदिर होने के पक्षधर था। बात करते-करते यहां आकर रुक गई कि हम में से एक ने तपाक से कहा कि जब तुमने वह जगह देखी नहीं तो इतने विश्वास के साथ कैसे कह सकते हो। यह बात दिल को छू गई और उसी क्षण अयोध्या जी में जाने का निश्चय कर लिया। हालांकि जेब में रुपया एक नहीं था।

मित्र ने दिया था ट्रेन का किराया

मन में अयोध्या जी की रखकर वह अपने मित्र अरुण कुमार गुप्ता व भारत कुमार गुप्ता के पास गए। रेलवे स्टेशन रोड पर इनकी दुकान हुआ करती थी। उनसे चर्चा की और अरुण को साथ लेकर जगाधरी रेलवे स्टेशन पर पहुंच गया। यहां पूछा कि अयोध्या जी जाने के लिए कौन सी ट्रेन मिलेगा। जवाब मिला कि आपको फैजाबाद के लिए ट्रेन मिलेगी और 99 रुपये किराया लगेगा। उनके मित्र अरुण गुप्ता ने ही उनको टिकट खरीद कर दे दी। यहां भी वह गलती कर गए।

नहीं! मैं राम भक्त हूं

फैजाबाद जाने वाले ट्रेन की बजाय अन्य दूसरी ट्रेन में चढ़ गए। लखनऊ जाकर यह पूरी ट्रेन खाली हो गई। ट्रेन में मैं अकेला रह गए। सोच रहा था कि शायद मैं ही अकेला अयोध्या जी जाऊंगा, लेकिन इसी दौरान कुछ रेलवे कर्मचारी उनके पास पहुंचे। बोले कि सरदार जी आप ड्राइवर हैं क्या। मैंने कहा नहीं! मैं ड्राइवर नहीं बल्कि राम भक्त हूं। मुझे अयोध्या जी जाना है। 

मालगाड़ी में बैठकर पहुंचे अयोध्या

यह सुनकर वह भी हैरान रह गए। बोले कि आप गलत ट्रेन में हो। यहां से आपको कोई अन्य वाहन लेना पड़ेगा। इस पर उन्होंने जवाब दिया कि मेरे पास तो पैसे भी नहीं है। मैं कैसे अन्य वाहन लेकर जा सकता हूं। रेलवे कर्मचारियों ने उनको कुछ पैसे देने की पेशकश की। उन्होंने जवाब दे दिया। कहा कि यदि आप मेरी मदद करना चाहते हो तो किसी अन्य ट्रेन के माध्यम से मुझे अयाेध्या जी पहुंचा दो। इसी दौरान एक मालगाड़ी आने वाली थी। रेलवे कर्मियों ने उनको ड्राइवर के पास बिठा दिया। इस तरह वह अयोध्या जा पहुंचा। यहां पहुंचकर उसकी खुशी का ठिकाना न रहा।

भगवान राम के दर्शन करने की थी जिद

उन दिनों डोगरा रेजिमेंट में उनका एक रिश्तेदार तैनात था। उनके मदद से रहने का अाश्रय ताे मिल गया, लेकिन मेरी जिद ये थी कि मुझे भगवान राम के दर्शन करने हैं। यहां कर्फ्यू लगा हुआ था। ऐसे में दर्शन करना मुश्किल था। मुझे विश्वास था कि एक दिन भगवान राम के दर्शन जरूर होंगे। यही सोचकर पूरा दिन सरयू नदी के किनारे काट देता था। सवा माह बाद स्थिति थोड़ा सामान्य हुई। कर्फ्यू हटा और उसको भगवान राम के दर्शन करने का अवसर मिला। इस दौरान के रिश्तेदार के पास घर से तीन चिट्ठियां पहुंच गई। पूछा कि क्या कृपाल सिंह यहीं है। मैंने भी ठान लिया था कि जब तक भगवान राम के दर्शन नहीं करूंगा तब तक वापस नहीं जाऊंगा।

पांच साल दीवाली का पर्व नहीं मनाया

उसके बाद वह वर्ष-1992 में अयोध्या जी गए। टेंट में भगवान राम की प्रतिमा थी। देखकर मन काफी व्यथित हुआ। तय कर लिया कि जब तक जर्जर टेंट नहीं बदला जाएगा तब तक दीवाली का पर्व नहीं मनाएंगे। करीब पांच साल बात टेंट बदला गया। उसके बाद घर पर दिवाली का पर्व मनाने लगे। आज हमारी खुशी का ठिकाना नहीं है कि भगवान राम की जन्मस्थली पर श्री राम लला प्राण प्रतिष्ठा का शुभ कार्य हो रहा है। यह सनातनियों की धरती है। धर्म का यह कार्य यहां नहीं होगा तो कहां होगा।

गांव खेड़ा निवासी सरदार कृपाल सिंह गिल ने जैसा यमुनानगर संवाददाता संजीव कांबोज को बताया।

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