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    Minjar Mela: भगवान रघुवीर को अर्पित होती है मिर्जा परिवार की बनाई मिंजर, हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक अंतरराष्ट्रीय मेला

    Updated: Sun, 27 Jul 2025 01:53 PM (IST)

    Chamba Minjar Mela चंबा में अंतर्राष्ट्रीय मिंजर मेला 2025 शुरू हो गया है जो 27 जुलाई से 3 अगस्त तक चलेगा। यह मेला हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है जिसमें मुस्लिम मिर्जा परिवार भगवान रघुवीर जी को मिंजर अर्पित करता है। ऐतिहासिक लक्ष्मीनाथ और बंसी गोपाल मंदिर में मिंजर अर्पित करने के बाद शोभायात्रा पिंक पैलेस स्थित भगवान रघुवीर के मंदिर पहुंची।

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    अंतरराष्ट्रीय चंबा मिंजर मेला के दौरान निकाली गई शोभायात्रा।

    जागरण संवाददाता, चंबा। Chamba Minjar Mela, अंतरराष्ट्रीय मिंजर मेला 2025 रविवार से शुरू हो गया। मेला 27 जुलाई से तीन अगस्त तक चलेगा। ऐतिहासिक मिंजर मेला हिंदू- मुस्लिम एकता व भाईचारे का प्रतीक भी है। चंबा का मुस्लिम मिर्जा परिवार मिंजर बनाता है और भगवान रघुवीर जी को अर्पित भी करता है।

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    ऐतिहासिक लक्ष्मीनाथ और बंसी गोपाल मंदिर में मिंजर अर्पित करने के बाद शोभायात्रा पिंक पैलेस स्थित भगवान रघुवीर के मंदिर पहुंची, जहां पूजा- अर्चना की गई। यहां भगवान रघुवीर को मिंजर अर्पित करने की रस्म मिर्जा परिवार के सदस्य एजाज मिर्जा ने अदा की।

    ऐतिहासिक चौगान में मिंजर मेले का ध्वजारोहण के साथ उद्घाटन होता है, इसके साथ ही आठ दिवसीय मिंजर मेले में विभिन्न गतिविधियों के आयोजन का सिलसिला भी आरंभ हो जाता है। इस रस्म अदायगी के साथ ही मेले का आरंभ होता है।

    मेले को इसलिए मिला मिंजर का नाम

    स्थानीय लोग मक्की और धान की बालियों को मिंजर कहते हैं। रघुवीर जी और लक्ष्मीनारायण भगवान को धान और मक्की से बना मिंजर या मंजरी और लाल कपड़े पर गोटा जड़े मिंजर के साथ, एक रुपया, नारियल और ऋतुफल भेंट किए जाते हैं। इस मिंजर को एक सप्ताह बाद रावी नदी में प्रवाहित किया जाता है। मुस्लिम समुदाय के लोग रेशम के धागे और मोतियों से मिंजर तैयार करते हैं, जिसे सर्वप्रथम लक्ष्मीनारायण मंदिर और रघुनाथ मंदिर में चढ़ाया जाता है।

    मिंजर मेला विजय और समृद्धि का प्रतीक

    मिंजर मेले की शुरुआत 935 ईस्वी से मानी जाती है। लोक कथाओं के अनुसार उस समय चंबा के राजा साहिल वर्मन ने कुरुक्षेत्र में हुए युद्ध में अद्वितीय वीरता का परिचय दिया था। जब वह युद्ध में विजय प्राप्त कर अपने राज्य लौटे, तो भटियात की जनता ने उनका स्वागत मक्की और धान की बालियों से किया। इन बालियों को ही स्थानीय बोली में मिंजर या मंजरियां कहा जाता है। यह स्वागत एक विजय उत्सव के रूप में मनाया गया, जिसे बाद में मिंजर मेला के नाम से जाना जाने लगा।

    शुरू में तीन दिन तक होता था उत्सव

    प्रारंभ में यह उत्सव तीन दिन तक मनाया जाता था, किंतु समय के साथ इसकी लोकप्रियता और महत्व बढ़ता गया और अब यह आठ दिवसीय भव्य उत्सव के रूप में मनाया जाता है। मिंजर मेले का समापन अत्यंत श्रद्धा और भव्यता के साथ किया जाता है। नगर परिषद चंबा द्वारा एक विशाल शोभायात्रा निकाली जाती है, जिसमें मिंजर अर्पण की रस्म अदा की जाती है। यह शोभायात्रा चंबा शहर से होती हुई रावी नदी के तट तक पहुंचती है, जहां वरुण देवता को मिंजर समर्पित की जाती है। इसी के साथ मेला विधिवत रूप से संपन्न होता है। मिंजर मेला आज भी चंबा की सांस्कृतिक विरासत और गौरवशाली इतिहास की सजीव झलक प्रस्तुत करता है, जो विजय, उत्सव, आस्था और एकता का प्रतीक बन चुका है।

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