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नहीं रहे पद्मश्री मुसाफिर राम भारद्वाज, 103 वर्ष की आयु में हुआ निधन; हिमाचल में शोक की लहर

पद्मश्री से सम्मानित और लोक कलाकार मुसाफिर राम भारद्वाज का 103 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वह पारंपरिक वाद्य यंत्र पौण माता बजाने में माहिर थे और उन्हें 2014 में कला के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। उनके निधन से प्रदेश में शोक की लहर है। उन्होंने वर्ष 2010 में दिल्ली में हुई राष्ट्रमंडल खेलों में भी प्रस्तुति दी थी।

By mithun thakur Edited By: Rajiv Mishra Updated: Sun, 10 Nov 2024 08:51 AM (IST)
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वर्ष 2014 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से पद्मश्री लेते मुसाफिर राम भारद्वाज l फाइल फोटो
संवाद सहयोगी, भरमौर। पद्मश्री एवं राष्ट्रपति अवार्ड से सम्मानित शिव चेले मुसाफिर राम भारद्वाज का शुक्रवार शाम घर पर लगभग 6.45 बजे निधन हो गया। वह लगभग 103 वर्ष के थे। कुछ समय से अस्वस्थ थे। शनिवार को पठानकोट के दुनेरा में पंचतत्व में विलीन हुए।

वह चंबा के उपमंडल भरमौर के सचुईं गांव के रहने वाले थे। वह वर्तमान में पंजाब के जिला पठानकोट की धारकलां तहसील के तहत आने वाले दुनेरा के धारकलां में रह रहे थे। उनके निधन से प्रदेश में शोक की लहर है।

2014 में पौण वादन के लिए मिला था पद्मश्री

भगवान शिव के चेले मुसाफिर राम भारद्वाज का आशीर्वाद लेने प्रदेशभर के साथ पूरे देश से लोग आते थे। उन्हें वर्ष 2014 में कला के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। उनका जन्म भरमौर के सचुईं गांव निवासी दीवाना राम के घर पर हुआ था। वह पारंपरिक वाद्य यंत्र पौण माता बजाने में माहिर थे। उन्होंने 13 वर्ष की आयु में ही पौण माता बजाना सीख लिया था। इसके अलावा वह किसान के साथ दर्जी भी थे।

राष्ट्रमंडल खेलों में भी दी थी प्रस्तुति

उन्होंने वर्ष 2010 में दिल्ली में हुई राष्ट्रमंडल खेलों में भी प्रस्तुति दी थी। उनके चार बेटे और दो बेटियां हैं। मुसाफिर राम ने पिता से पौण माता बजाना सीखा। इसके बाद अगले 61 वर्ष तक उनकी अंगुलियां पौण की गूंज बढ़ाती रहीं। 74 वर्ष की आयु तक पहुंचते-पहुंचते पौण वादन कला में उन्हें इतनी महारत मिल चुकी थी कि भारत सरकार ने वर्ष 2014 में उन्हें पौण वादन के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया।

पद्मश्री मुसाफिर राम भारद्वाज का निधन देश व गद्दी जनजाति के लोगों के लिए भारी क्षति है। सामान्य व्यक्ति से पद्मश्री होने के लिए लगातार कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। पौण वादन कला को उनके वंशज व समाज के कुछ अन्य लोग भी आगे बढ़ा रहे हैं लेकिन इस कला को फिर कोई पद्मश्री तक ले जाएगा, इसके लिए शायद लंबा इंतजार करना पड़ेगा।

-डॉ. जनक राज, विधायक भरमौर।

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यह होता है पौण माता वाद्य यंत्र

पौण माता तांबे का ड्रम होता है, जो डमरू की तरह दिखता है। यह आकार में बड़ा होता है। इसे तांबे सहित भेड़ की खाल से तैयार किया जाता है। पौण माता वाद्य यंत्र को बजाने के लिए खाल पर अंगुलियां रगड़ी जाती हैं लेकिन इसे बजाना इतना भी आसान नहीं होता है।

इसे बजाने के लिए विशेष कौशल की आवश्यकता होती है। यह मणिमहेश यात्रा और अन्य क्षेत्रीय धार्मिक समारोहों का अभिन्न अंग है। इस वाद्ययंत्र की सदियों पुरानी विरासत है।

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