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पांगी घाटी में 14 साल बाद दिखा बर्फानी तेंदुआ, भूरा भालू भी मौजूद

Wild animal in Pangi Valley जिला चंबा के जनजातीय क्षेत्र पांगी में दुर्लभ बर्फानी तेंदुआ की मौजूदगी दर्ज की गई है।

By Edited By: Updated: Sat, 08 Jun 2019 11:01 AM (IST)
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पांगी घाटी में 14 साल बाद दिखा बर्फानी तेंदुआ, भूरा भालू भी मौजूद
चंबा, जेएनएन। जिला चंबा के जनजातीय क्षेत्र पांगी में दुर्लभ बर्फानी तेंदुआ की मौजूदगी दर्ज की गई है। घाटी की तुआन बीट में लगाए गए वन्य प्राणी विंग के कैमरों में बर्फानी तेंदुए की तस्वीरें कैद हुई हैं। साथ ही इसी श्रेणी में शामिल भूरा भालू भी कैमरे में कैद हुआ है। चंबा जिले में यह दूसरा मौका है जब यहां बर्फानी तेंदुआ देखा गया है। इससे पहले भरमौर के कुगती वाइल्ड लाइफ सेंक्चुरी एरिया में वर्ष 2006 में बर्फानी तेंदुए की मौजूदगी पाई गई थी। बर्फानी तेंदुए और भूरे भालू विश्व के कुछ देशों में ही पाए जाते हैं।

कहा जा रहा है कि विश्व भर में बर्फानी तेंदुआ प्रजाति की संख्या 5000 से भी कम है, वहीं भारत में इनकी संख्या महज 200 से 500 तक है। पांगी में सेचु नाला वाइल्ड लाइफ सेंक्चुरी के तहत आने वाली तुआन बीट के वनरक्षक राजेंद्र ने ट्रैकर कैमरे लगा रखे हैं। इस कैमरों में बर्फानी तेंदुए तथा भूरे भालू की फोटो सामने आई है। लिहाजा पांगी घाटी में इस विलुप्त हो रही प्रजाति का संरक्षित होना बड़ी बात है। 1972 में प्रकृति के संरक्षण (आइयूसीएन) के लिए अंतरराष्ट्रीय संघ विश्व स्तर पर 'लुप्तप्राय' के रूप में संकटग्रस्त प्रजाति के अपने लाल सूची में हिम तेंदुए को रखा गया था।

खास बात यह है कि बर्फानी तेंदुआ हिमाचल प्रदेश का स्टेट एनिमल भी है। वन्य प्राणी विंग के वनमंडल अधिकारी निशांत मंढोत्रा ने बर्फानी तेंदुए तथा भूरे भालू की मौजूदगी की पुष्टि की है। उन्होंने बताया कि भूरे भालू पर शोध करने वाले देश के वैज्ञानिक डॉ. विपन राठौर पूर्व में ही पांगी घाटी में बर्फानी तेंदुए की मौजूदगी को लेकर आश्वस्त थे। मौजूदा समय में डॉ. राठौर पांगी घाटी में भूरे भालू और बर्फानी तेंदुए को लेकर शोध कार्य में जुटे हैं। अब बर्फानी तेंदुए की पांगी में मौजूूदगी के बाद डॉ. राठौर अपने शोध कार्य को अंजाम तक पहुंचा पाएंगे। पांगी घाटी के सेंचू नाला, सुराल, चैहणी पास, चस्क भटोरी व गुलधार नामक स्थानों पर किए गए शोध में भूरे भालुओं व बर्फानी तेंदुए को देखा गया है, लिहाजा अब यहां पर शोध कार्य जारी है।

भूरा भालू हिमाचल समेत 23 संरक्षित क्षेत्रों में मौजूद

भूरा भालू भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची एक में शामिल है। भूरे भालू की आबादी जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश व उत्तराखंड में 23 संरक्षित क्षेत्रों में है। वनमंडल अधिकारी वन्य प्राणी विंग निशांत मढ़ोत्रा कहते हैं कि काला भालू समुद्र तल से दो हजार मीटर की ऊंचाई से नीचे रहना पसंद करता है। फसलों को नुकसान पहुंचाने के साथ-साथ झुंड में रहना इसकी आदत में शुमार है जबकि भूरा भालू आमतौर पर समुद्र तल से 2500 मीटर की ऊंचाई से नीचे कभी नहीं आता है। यह झुंड के बजाय अकेला ही रहता है। मात्र प्रसव के दौरान ही यह झुंड में रहता है।

दस फीसद ही मांसाहारी

भूरे भालुओं में मात्र दस फीसद ही मांसाहारी होते हैं जबकि 90 फीसद भोजन के रूप में जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल करते हैं। भूरे भालू के संबंध में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की ओर से दिए गए एक प्रोजेक्ट पर भी डॉ. राठौर कार्य कर चुके हैं। यह जानवर बहुत दुर्लभ और हिमाचल का गौरव है, लेकिन कोई पहल इस जानवर को बचाने के लिए अभी तक नहीं हो पाई है। चंबा जिले के कुगती और तुंदा वाइल्ड लाइफ में मादा भालू को अपने बच्चों के साथ चहलकदमी करते हुए देखा जा सकता है। भूरा भालू अमेरिकी भालू की तुलना में अपेक्षाकृत छोटा होता है। इसका भार एक से डेढ़ क्विंटल तक होता है और जब यह इंसानों की तरह खड़ा होता है तो इसकी लंबाई छह फुट के करीब होती है।

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