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पर्यटक क्यों करना चाहते हैं धर्मशाला की सैर, क्या जानना चाहेंगे आप?

गर्मी से बचने के लिए आदर्श पर्यटन स्थल की तलाश में हैं, तो धर्मशाला अधिक दूर नहीं है। यह हिमाचल का एकमात्र शहर है, जिसे स्मार्ट सिटी का दर्जा मिला है।

By Babita KashyapEdited By: Updated: Sat, 20 May 2017 08:27 AM (IST)
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पर्यटक क्यों करना चाहते हैं धर्मशाला की सैर, क्या जानना चाहेंगे आप?

धर्मशाला, जेएनएन। कांगड़ा जिले का यह खूबसूरत हिल स्टेशन धौलाधार पर्वत श्रेणियों के बीच बसा है। कांगड़ा जिले का मुख्यालय भी यहीं है। यह हिमाचल की दूसरी राजधानी है। प्राकृतिक खूबसूरती समेटे यह स्थान छोटा, लेकिन काफी सुकूनदायक है। प्राचीन समय में कांगड़ा घाटी में कटोच वंश का शासन था, जिसकी खूबसूरत निशानी यहां से कुछ ही दूरी पर स्थित कांगड़ा दुर्ग में देख सकते हैं। कटोच वंश के बाद ब्रिटिश राज में शहर की खूबसूरती में और इजाफा हुआ। ब्रिटिश राज में कांगड़ा घाटी में जबर्दस्त भूकंप आया था। उस समय मैक्लोडगंज व फरसेठगंज को राजधानी बनाने की तैयारी चल रही थी। 4 अप्रैल, 1905 को आए तेज भूकंप ने एक झटके में कांगड़ा घाटी के साथ धर्मशाला को भी धराशायी कर दिया था। करीब 20 हजार लोगों की मौत ने ब्रिटिश सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी। लाहौर से रेस्क्यू टीमें छह दिन बाद पहुंच पाई थीं...।

कालांतर में एक उजड़ा हुआ शहर फिर से बसा। स्थानीय सेवानिवृत्त आइएएस अधिकारी और पूर्व चुनाव आयुक्त केसी शर्मा कहते हैं, 'जिस शहर में जहां कुछ वर्ष पहले तक एक भी ढंग का होटल नहीं था, सरकारी कार्यालय का नामोनिशान नहीं था, उस शहर में अब हर चीज मिल जाती है। हालांकि अब भी यहां नियोजित विकास की कमी खलती है। पर्यटन के विकास के लिहाज से इस पर विचार करना होगा।-धर्मशाला निवासी और टीवी कलाकार आलोक नरुला के अनुसार, 'कभी यह शहर केवल एक धार्मिक स्थल के रूप में ही लोकप्रिय रहा, पर अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम बन जाने के बाद इसकी शान में और इजाफा हुआ है।- शहर रोजाना एक नई इबारत लिख रहा है। इसी कड़ी में नया जुड़ा है स्काई-वे परिवहन सेवा योजना। निर्माण कार्य पूरा हो जाने के बाद यह सुविधा मुहैया कराने वाला धर्मशाला हिमाचल का पहला शहर होगा।

'मिनी ल्हासा- यानी मैक्लोडगंज 

पहाड़ी पर बसा यह खूबसूरत कस्बा धर्मशाला से तकरीबन 10 किमी. की ऊंचाई पर स्थित है। इसका नाम ब्रिटिशकाल में पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर सर डोनाल्ड मैक्लोड के नाम पर पड़ा। गंज का अर्थ हिंदी व उर्दू में आस-पड़ोस होता है। यह धर्मशाला नगर निगम के तहत ही आता है। तिब्बतियों की अधिकता के कारण मैक्लोडगंज को 'मिनी ल्हासा- भी कहा जाता है। तिब्बती सर्वोच्च धर्मगुरु दलाई लामा का आवास भी यहीं है। अगर आप तिब्बती कला व संस्कृति से रूबरू होना चाहते हैं तो मैक्लोडगंज एक बेहतरीन जगह हो सकती है।

मैक्लोडगंज में एक बड़ी मार्केट है, जहां तिब्बती उत्पाद मिलते हैं। मार्केट से आप सुंदर तिब्बती हस्तशिल्प, कपड़े, थांगका (एक प्रकार की सिल्क पेंटिंग) और हस्तशिल्प की वस्तुएं खरीद सकते हैं। यहां से आप हिमाचली पश्मीना शाल व कारपेट की खरीदारी कर सकते हैं, जो अपनी विशिष्टता के  लिए दुनिया भर में मशहूर है। यहां दुकानें, रेस्तरां, होटल और सड़क किनारे लगने वाले बाजार सब कुछ हैं।

मिनी इजरायल 

धर्मकोट में इजरायली लोगों की बड़ी संख्या के कारण इसे 'मिनी इजरायल- भी कहा जाता है। मैक्लोडगंज और भागसूनाग से केवल एक किमी. की दूरी पर बसा यह स्थान पूरी तरह से प्रकृति की गोद में स्थित है। यहां सबसे अधिक इजरायल के पर्यटक आते हैं। इस गांव की खासियत यह है कि यहां हर छोटे-बड़े घर में इजरायल के लोग रहते हुए मिल जाएंगे। धर्मकोट गांव एक छोटी सी गली के दोनों किनारों पर बसा हुआ है।

 

आनंददायक होंगी ये गतिविधियां

- करेरी में ट्रेकिंग

- नड्डी का सनसेट प्वाइंट।

- नूरपुर में प्राचीन भारतीय मिथकों से जुड़ी पेंटिंग देखना।

- कोटला किले में हिमाचल के गौरवशाली अतीत को निहारना।

- कुनाल पथरी में साइट सीइंग।

- सेंट जॉन चर्च में आध्यात्मिक अनुभूति।

- बैजनाथ मंदिर में होने वाली प्रार्थना में शामिल होना।

- कोतवाली बाजार की शॉपिंग और मैक्लोडगंज में तिब्बती हस्तशिल्प की खरीदारी।

जीणा कांगड़े दा...

मशहूर अदाकार देव आनंद वाले राजकीय कॉलेज के पास चीड़ों का झुरमुट अब भी वैसा ही है, जैसा वर्षों पहले था। वैसे ही हैं देवदार... जो ठंडी हवा का भरोसा दिलाते रहते हैं। यह सब तब भी था, जब धर्मदास ने एक धर्मशाला बनवाई और धर्मशाला शहर बसा। अब वह धर्मशाला तो नहीं बची, लेकिन शहर है। मैक्लोडंगज में दलाई लामा हैं और दाड़ी-सिद्धबाड़ी में धुम्मू शाह का मेला लगता है। दुर्गा मल दल बहादुर के नाम पर फुटबॉल प्रतियोगिता होती है। हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम में जब भी डे-नाइट मैच होता है, उस रोशनी में नहाए शहर को कांगड़ा किले से भी देखा जा सकता है, जहां कभी त्रिगर्त यानी कांगड़ा की राजधानी होती थी और निफ्ट से भी जहां देशभर के युवा कपड़े पर कल्पना के रंग भर रहे होते हैं, रोहित बल को याद करते हुए। मंशा राजनीतिक हो या क्षेत्रीय खाई को पाटने की, धर्मशाला अब दूसरी राजधानी है और राजधानी केसाथ काफी कुछ आता है, जिसके इंतजार में शहीद स्मारक से लेकर भागसूनाग तक का झरना है।

सड़कें संवर गई हैं जहां तिब्बत लौटने का सपना पाले जिम्मेदार तिब्बती 'ओम मणि पद्मे हुम ' की माला जपते चलते रहते हैं... लेकिन उनके ही युवा महंगी गाडिय़ां दौड़ाते हैं। शहर में एक इंडियन कॉफी हाउस था, जो धर्मदास की धर्मशाला की तरह गुम हो गया है। विकास के लिए धर्मशाला को इतना तो सहना ही था इसीलिए आस्थावान होंठ अब भी गुनगनाते हैं, 'जीणा कांगड़े दा'... ।

 

 कांगड़ा कला संग्रहालय

'कांगड़ा कला संग्रहालय- धर्मशाला के कोतवाली बाजार में स्थित एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। कांगड़ा की संस्कृति और इतिहास को जानना चाहते हैं, तो यहां जरूर जाएं। कांगड़ा के राजाओं से प्रश्रय पाकर कांगड़ा कला पनपी। इसकी मांग दुनिया भर में है। यह शैली मूलत: कृष्ण और राधा को समर्पित है। यहां पेंटिंग वर्कशॉप आयोजित होते रहते हैं। आप यहां पांचवीं सदी की कला के नमूने भी देख सकते हैं। मिनिएचर पेंटिंग, टेक्सटाइल्स, स्कल्पचर, ज्यूलरी, सिक्के आदि भी देख सकते हैं। इनसे सांस्कृतिक मानवविज्ञान से जुड़े अध्ययनकर्ताओं को काफी मदद मिलती है। समकालीन कलाकारों, वास्तुशिल्पियों और फोटोग्राफरों के कार्यों को प्रदर्शित करने के लिए भी यहां एक अलग खंड है। 

मनोरम अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम

धर्मशाला में देश का सबसे खूबसूरत क्रिकेट स्टेडियम मौजूद है। यह भारत का सबसे ऊंचाई पर स्थित स्टेडियम है। वर्ष 2005 में बनकर तैयार हुए इस स्टेडियम में आईपीएल, टेस्ट व वनडे मैचों का आयोजन हो चुका है। यहां दर्शकों के बैठने की क्षमता 25 हजार है।

खानपान 'कांगड़ी धाम'

तिब्बती संस्कृति का रंग यहां के खानपान में भी मिलता है, पर यदि आप कांगड़ा घाटी के इस शहर का स्थानीय स्वाद लेना चाहते हैं तो यह आपको मिलेगा यहां के खास व्यंजन 'धाम- में। हर उत्सव यानी शादी विवाह या अन्य किसी भी समारोह में कांगड़ा धाम जरूर परोसी जाती है। 

चना मधरा, चने की दाल, तेलिया माह के साथ धाम को लोग खूब चटखारे लेकर खाते हैं। तीण यानी खोदाई कर लकडिय़ां जलाकर उस पर बटलोई चढ़ाई जाती है और उसी में इस स्वादिष्ट व्यंजन को पकाया जाता है। धाम के लिए ही नहीं, बल्कि कांगड़ा घाटी के अन्य व्यंजनों के लिए लोग यहां ज्यादातर 'होटल धौलाधार- का रुख करते हैं। यह होटल कोतवाली बाजार में स्थित है। यहां के शाकाहारी खाने में मलाई कोफ्ता व चना मधरा काफी मशहूर है। मांसाहारी खाने में मटन रोगन जोश व चिकन अनार दाना यहां की खासियत है।

 

तेलिया माह

धाम के अलावा यहां आप तेलिया माह का स्वाद भी चख सकते हैं। इसके लिए पहले बटलोई में माह की दाल को उबाला जाता है। इसके बाद सरसों का तेल, गर्म मसाला, लाल मिर्च, प्याज, अदरक, हींग, हल्दी व नमक उसके बाद अन्य चीजों का मिश्रण तैयार करके दाल को तड़का लगाया जाता है। कुछ देर पकाने के बाद माह की दाल तैयार होती है।

इसके अलावा चने, मूली व पालक का बनता है चटपटा खट्टा। धाम में माह की दाल के साथ खट्टे का अपना एक अलग ही स्वाद है। खट्टा काले चने व मूली का भी बनता है। खट्टा बनाने के लिए सरसों का तेल, साबुत जीरा, साबुत धनिया, मेथी, कसूरी मेथी, गुड़, गर्म मसाला, अमचूर, नमक, चावल, बेसन, अखरोट पाउडर, सोया, अजवायन, अदरक के साथ पालक भी डाला जाता है। अक्सर लोहे की कड़ाही में खट्टा बनता है, ताकि उसकी रंगत पूरी तरह काली बनी रहे।

मोमोज के निराले स्वाद

धर्मशाला व मैक्लोडगंज के खान-पान में मोमोज का अपना अलग महत्व है। तिब्बती लोगों द्वारा बनाए गए मोमोज खास तरह का स्वाद लिए होते हैं। दरअसल, मोमोज तिब्बत की रेसिपी है। 

मैक्लोडगंज बाजार में मोमोज की कई छोटी-छोटी दुकानें मिल जाएंगी। मुख्य बाजार के आसपास शानदार होटल और रेस्टोरेंट मिल जाएंगे, जहां आप यहां की खास रेसिपी का स्वाद ले सकते हैं। इसी में से एक है थुप्का यानी नूडल्स के साथ सूप का चटपटा स्वाद। मैक्लोडगंज और आसपास केक, पेस्ट्री, कुकीज के लजीज स्वाद एक बार चख लें, तो वे सदा के लिए याद रह जाएंगे। 

पंसारी के लिए मशहूर छोरुआं दी हट्टी

अगर पंसारी से जुड़े किसी भी सामान की जरूरत है, तो वह कांगड़ा में छोरुआं दी हट्टी में मिलेगा। पांच पीढिय़ों से यह दुकान चल रही है। कई जड़ी- बूटियां, हवन सामग्री सहित जो पंसारी से जुड़ी चीज लोगों को कहीं दूसरी जगह नहीं मिल पाती है, वह छोरुआं दी हट्टी में मिल जाती है। पांचवीं पीढ़ी के संदीप कुमार इसे चला रहे हैं।

पूरे कांगड़ा जिले में यह एक ऐसी दुकान है, जहां पर पंसारी से जुड़ी हर चीज उपलब्ध है।

ट्रेकिंग का लुत्फ

धर्मशाला आएं तो यहां ट्रैकिंग का आनंद ले सकते हैं। इसके लिए त्रियूंड और करेरी प्रमुख स्थल हैं। त्रियूंड मैक्लोडगंज से करीब नौ किलोमीटर दूर करीब 2, 082 मीटर की उंचाई पर स्थित है। इस स्थान तक धर्मकोट व भागसूनाग से करीब छह सात घंटे पैदल सफर कर भी पहुंच सकते हैं। यह सफर भी अपने आप में काफी रोमांचक है। यहां से धौलाधार की विशाल पर्वत शृंखला बहुत करीब महसूस होती है।

पर्यटक रात को यहां कैंपिंग का भी आनंद उठाते हैं। करेरी जंगल के बीच में बसा है। यहां एक खूबसूरत झील भी है। 

आसपास के मशहूर मंदिर

मां बज्रेश्वरी देवी मंदिर, कांगड़ा: यह स्थान धर्मशाला से 18 किलोमीटर दूर है। यह 51 शक्तिपीठों में से एक है। माना जाता है कि मां सती का दाहिना वक्ष यहीं गिरा था। माता के इस धाम में मां की तीन पिंडियां हैं। मंदिर के गर्भगृह में प्रतिष्ठित पहली और मुख्य पिंडी मां बज्रेश्वरी की है। दूसरी मां भद्रकाली और तीसरी सबसे छोटी पिंडी मां एकादशी की है। चूंकि मां के इस शक्तिपीठ में ही उनके परम भक्त ध्यानु ने अपना शीश अर्पित किया था, इसलिए मां के वे भक्त जो ध्यानु के अनुयायी भी हैं, वे पीले रंग के वस्त्र धारण कर मंदिर में आते हैं।

ज्वालामुखी मंदिर: यह कांगड़ा शहर के दक्षिण में 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ज्वालामुखी मंदिर को ज्वालाजी के रूप में भी जाना जाता है। इनके मुख से अग्नि का प्रवाह होता है। इस मंदिर में अग्नि की अलग-अलग छह लपटें हैं, जो अलग-अलग देवियों को समर्पित हैं, जैसे-महाकाली अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यवासिनी, महालक्ष्मी सरस्वती, अंबिका और अंजी देवी।

चामुंडा नंदीकेश्वर धाम: धर्मशाला से महज 15 किलोमीटर की दूरी पर बनेर नदी के किनारे स्थित यह मंदिर 700 साल पुराना है। इस विशाल मंदिर का विशेष धार्मिक महत्व है। इसे भी 51 सिद्ध

शक्तिपीठों में से एक माना जाता है।

बैजनाथ मंदिर: धर्मशाला से महज 50 किमी. की दूरी पर यह शिव मंदिर स्थित है। यह अपनी कला शैली के कारण काफी प्रसिद्ध है। पत्थरों से निर्मित इस मंदिर को शिखर शैली में बनाया गया है। कहते हैं यही वह स्थान है, जहां रावण ने भगवान शिव की तपस्या की थी। यहां दशहरा उत्सव नहीं मनाया जाता है।

कांगड़ा किला

धर्मशाला से महज 18 किलोमीटर दूर कांगड़ा में स्थित ऐतिहासिक कांगड़ा किला इतिहास में अमर है। यह एक ऐसा किला है, जिसको जीतने के लिए कई मुगल राजाओं ने इस पर हमला किया था। इसे दुनिया के सबसे पुराने किलों में से एक माना जाता है। इसका निर्माण कटोच राजवंश ने करवाया था। 

प्रमुख दर्शनीय स्थल

वैसे तो धर्मशाला प्राकृतिक दर्शनीय स्थलों से भरपूर है, लेकिन कुछ स्थान ऐसे हैं, जिनका पर्यटन के लिहाज से काफी महत्व है। ऐसे प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं :

दलाई लामा टेंपल : यह मैक्लोडगंज के एक छोर पर स्थित है। यहां दलाई लामा का आवास भी है। मंदिर में बड़े-बड़े प्रार्थना चक्र लगे हुए हैं। कहा जाता है कि इन्हें घुमाने पर उन पर लिखे मंत्रों का पुण्य मिलता है। बौद्ध धर्म से संबंधित सैकड़ों पांडुलिपियां भी यहां देखी जा सकती हैं। दलाई लामा मंदिर से ही नामग्याल मठ जुड़ा हुआ है।

इसके साथ ही तिब्बती संग्रहालय भी देखने लायक स्थान है।

भागसूनाग : मैक्लोडगंज से दो किमी. आगे एक पौराणिक मंदिर है, जहां पहाड़ों से बहकर पानी आता है। पर्यटक इस शीतल पानी में स्नान करके आनंद का अनुभव करते हैं। मंदिर के साथ स्नान के लिए बना कुंड व इससे कुछ दूरी पर स्थित वॉटर फॉल देखने लायक स्थल है।

सेंट जॉन चर्च : घने पेड़ों से घिरा यह चर्च 1863 में निर्मित हुआ था। चर्च से नड्डी की ओर बढऩे पर रास्ते में ही डल झील है। देवदार के वृक्षों से घिरा यह एक खूबसूरत पिकनिक स्थल भी है। यह स्थान ब्रिटिश सरकार के समय में तत्कालीन वॉयसराय ऑफ इंडिया लॉर्ड एल्गिन को काफी पसंद था। यहीं उनका निधन भी हुआ था। 

धर्मशाला की सैर कब और कैसे?

वैसे तो यहां वर्ष भर आ सकते हैं, पर सबसे उपयुक्त समय मार्च से जून और अक्टूबर से जनवरी है। दिल्ली से सीधी वॉल्वो बस सेवा के अलावा सामान्य बस सेवाएं भी उपलब्ध हैं। दिल्ली के अलावा, चंडीगढ़, जम्मू, शिमला से भी नियमित बस सेवाएं हैं। 

दिल्ली से रोजाना हवाई उड़ानें भी हैं। गगल एयरपोर्ट है जो कि धर्मशाला से 10 किलोमीटर दूर स्थित है। रेल मार्ग से आना चाहते हैं तो पठानकोट रेलवे स्टेशन आ सकते हैं। धर्मशाला शहर से पठानकोट 86 किलोमीटर की दूरी पर है। पठानकोट से कांगड़ा तक नैरोगेज रेलगाड़ी और उसके बाद सड़क मार्ग के जरिए धर्मशाला पहुंच सकते हैं।  

इन्हें भी जानें

- राष्ट्रीय गान 'जन गण मन- की धुन के रचयिता कैप्टन राम सिंह ठाकुर धर्मशाला के खन्यारा गांव के निवासी थे।

- नेपाल के प्रसिद्ध गायक, लेखक व समाजसेवी मास्टर मितरसेन थापा भी धर्मशाला के तोतारानी के रहने वाले थे।

- प्रसिद्ध अभिनेता देवानंद धर्मशाला कॉलेज में पढ़े थे। वह वर्ष 1940 में यहां से पढ़ाई करके गए थे।

- हिमाचल का पहला युद्ध संग्रहालय भी धर्मशाला में बन रहा है।

- चीन से भागकर भारत पहुंचे तिब्बती गुरु उग्येन त्रिनले दोरजे करमापा यहीं रहते हैं।

- धर्मशाला के ही भागसूनाग में देश की पहली गोरखा रेजिमेंट की स्थापना हुई थी। 

 इनपुट सहयोग : धर्मशाला से मुनीष दीक्षित

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