गलत नीतियों की बलि चढ़ रही कांगड़ा की चाय
डॉ. पाल ने कांगड़ा में चाय उत्पादकों के लिए सब्सिडी खत्म करने देने पर चिंता जताई साथ ही इसकी वजह और कारण ढूंढने पर बल दिया
पालमपुर, जेएनएन। पूरी दुनिया में अपना लोहा मनवाने वाली कांगड़ा की चाय मार्केटिंग अौर अन्य सुविधाएं न मिलने की कारण गलत नीतियां की बलि चढ़ रही है। यही कारण है कि इसके उत्पादन में लगातार गिरावट दर्ज हो रही है। यह खुलासा बुधवार को चाय भवन पालमपुर में आयोजित इंटेक्यूचल प्रॉपर्टी राइट कार्यक्रम के दौरान हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. शशि सिंह चेयरपर्सन आफ कंसोटियम वूमेन इंटरपंयोर ऑफ इंडिया ने की।
इस मौके पर शिल्पी झा सीनियर आइवीपीओ एटोरनी दिल्ली भी मौजूद थीं। कार्यक्रम के दौरान पेश किए गए आंकड़ों और इसमें आने वाली दिक्कतों पर बोलते हुए डॉ. शशि पाल ने कहा कि हम जो भी बात या पॉलिसी बनाए वह नीति आयोग तक पहुंचे क्योंकि पॉलिसी तभी कामयाब हो सकती है जब उसका प्रचार प्रसार और उसे लागू सही ढंग से किया जाए।
डॉ. पाल ने कांगड़ा में चाय उत्पादकों के लिए सब्सिडी खत्म करने देने पर चिंता जताई साथ ही इसकी वजह और कारण ढूंढने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि कार्यक्रम में जो भी महत्वपूर्ण तथ्य सामने आएंगे, वह उनको केंद्र सरकार के अधिकारियों तक पहुंचाएंगी, ताकि कांगड़ा चाय पहले जैसा अपने रुतबे को हासिल कर सके। यह हमारी वैध संपदा है और इसे बरकरार रखना व इसके विकास पर काम करना हमारा राइट है। चाय को वनीय क्षेत्र में उगाया जा सकता है। इसके लिए सरकार को प्रयास करने की जरूरत है।
इस मौके पर शिल्पी झा ने इसके कानूनी पहलुओं और मार्केटिंग के बारे में जानकारी दी। कार्यक्रम में चाय बोर्ड भारत के निदेशक अनुपम दास, टी बोर्ड के अधिकारी डीएस कंवर, एसोसिएशन के अध्यक्ष राजिंद्र ठाकुर, बीना श्रीावस्त, सीएसआइआर से वैज्ञानिक आशु गुलाटी आदि मौजूद रहे।
प्रदेश में कांगड़ा, मंडी और चंबा जिलों में 2310-71 हेक्टेयर में चाय होती है। इसमें से 1096-83 ही मेंटेन हो रहे हैं, जबकि 373-55 हेक्टेयर नेगलेट हैं और 455-17 हेक्टेयर को छोड़ा जा चुका है। सुविधाएं न मिलने का ही नतीजा है कि जो चाय उत्पादन 20 साल पहले 17 लाख टन होता था अब घटकर नौ लाख टन ही रह गया है। प्रदेश केवल 5900 के करीब फार्मर वर्तमान समय में चाय का उत्पादन कर रहे हैं।
सामने आए यह कारण
-चाय बागवानों के लिए सब्सिडी सरकार की ओर से बंद करना।
-तकनीकी रूप से सक्षम मजदूरों की कमी।
-छोटी मिनी प्रोसेसिंग फैक्ट्रियों का न होना।
-चाय के लिए खुला बाजार कोलकाता में होना।
-टी ऑक्शन सेंटर न होना और न ही मार्केटिंग के लिए कोई बड़ी व्यवस्था।