कारसेवक संस्मरण: अयोध्या पहुंचने पर बहुत आई थी कठिनाइयां, 1990 में RSS आह्वान पर अकेले तैयार होकर निकले थे योगराज मेहरा
घर से अयोध्या पहुंचने में ही बहुत कठिनाइयां आई थी। बीच रास्ते में सरयू नदी पार करते वक्त मगरमच्छ से भी सामना हुआ और नदी पार करते वक्त बेहोश हो गए थे साथियों ने सहयोग किया तो जान बची। अयोध्या गए अपने संस्मरणों को याद करते हुए कोटला के योगराज मेहरा ने बताया कि 1990 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आह्वान पर वह कोटला से अकेले तैयार होकर निकल गए।
संवाद सहयोग, कोटला। घर से अयोध्या पहुंचने में ही बहुत कठिनाइयां आई थी। बीच रास्ते में सरयू नदी पार करते वक्त मगरमच्छ से भी सामना हुआ और नदी पार करते वक्त बेहोश हो गए थे, साथियों ने सहयोग किया तो जान बची। अयोध्या गए अपने संस्मरणों को याद करते हुए कोटला के योगराज मेहरा ने बताया कि 1990 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आह्वान पर वह कोटला से अकेले तैयार होकर निकल गए। पठानकोट रेलवे स्टेशन पर पहुंचे।
कमीज पर बांधा था केसरिया पटका
वहां पर पहुंचे बहुत से कार सेवकों के साथ बैठ गए। पठानकोट से हमारे लिए ट्रेन के दो डिब्बे बुक थे। हमारे साथ दो पूर्व विधायक स्वर्गीय वीरेंद्र मास्टर परागपुर और दूसरे स्वर्गीय देशराज गंगथ और नूरपुर के स्वयंसेवकों एक दूसरे का परिचय हुआ। हमें एक केसरिया रंग का पटका दिया, जिस पर पूरा पता लिखा था और कहा कि उसे अपने-अपने कमीज के अंदर पेट पर बांध लो अगर कहीं जिंदगी चली गई तो यही एक निशान है।
कॉलेज में बंद कर दिया गया था
रेलवे स्टेशन पर माइक से आवाज आई की फैजाबाद में कोई ट्रेन नहीं रुकेगी। ट्रेन लगभग 9:30 बजे रात को चली सुबह जब हम मुरादाबाद पहुंचे तो हमारे कुछ स्वयंसेवक पकड़े गए फिर हम भी उनके साथ उतर गए। हमें एक कॉलेज में बंद कर दिया गया। 36 घंटे बंदी के रूप में रहे और 27 अक्टूबर को सुबह 4:30 बजे वहां भाग निकले। बस द्वारा हम मुरादाबाद से लखनऊ रात लगभग 8 बजे पहुंचे। अन्य साथियों में नूरपुर के अशोक कुमार जो इस समय जिला सरसंघचालक हैं के साथ लखनऊ से बस ली तो उसे बस का ड्राइवर मुस्लिम था उसका नाम करीम था मैं उसके धैर्य को प्रणाम करता हूं उन्होंने हमें बस में सोने का आदेश दिया क्योंकि आगे पुलिस के नाके थे।
31 अक्टूबर को कारसेवकों ने धावा बोल दिया था
कोई पूछता तो ड्राइवर कहता बस खाली है। उसने हमें सुबह 6 बजे गौंडा में उतार दिया, जैसे ही बस से उतरे हमें कहा गया कि तीन-तीन व्यक्ति करके चलो। क्योंकि धारा 144 लागू है। हमें लेने छह लोग खड़े थे क्योंकि हम उस इलाके से परिचित नहीं थे। 31 अक्टूबर को कारसेवकों ने धावा बोल दिया, लेकिन वहां पर गोलियां चलने से माहौल खराब हो गया और हमें वापस घर जाने के लिए कहा गया। पर आज हमें इस बात की खुशी है कि उस वक्त साथियों द्वारा दिया गया बलिदान काम आया और अब एक भव्य समारोह होने जा रहा है।