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सुजानपुर के चार धाम सांस्कृतिक धरोहर और प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत संगम, पर्यटन को भी लगा रहे हैं पंख

हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले में स्थित सुजानपुर के चार धाम - श्रीकृष्ण जीवनलीला धाम मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम धाम आदिशिव धाम और आदिशक्ति धाम - सनातन संस्कृति और प्राकृतिक सुंदरता का अद्भुत संगम हैं। इन धामों में भगवान श्रीकृष्ण भगवान श्रीराम भगवान शिव और माता दुर्गा की विशाल प्रतिमाएं स्थापित हैं जो पर्यटकों को आकर्षित करती हैं। जानें इन चार धामों के बारे में...

By Jagran News Edited By: Rajiv Mishra Updated: Sat, 21 Sep 2024 10:07 PM (IST)
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सुजानपुर में चार धाम का निर्माण करके सनातन संस्कृति को सहेजने का काम किया गया है
मुनीत शर्मा, सुजानपुर (हमीरपुर)। चार धाम का नाम सुनते ही उत्तराखंड स्थित चारों धामों की तस्वीर एकदम से मन में उभर कर आती है, लेकिन हिमाचल के हमीरपुर जिले में भी चार धाम का निर्माण करके सनातन संस्कृति को सहेजने का काम किया है।

वीरभूमि के नाम से विख्यात हमीरपुर जिले की ऐतिहासिक नगरी सुजानपुर राजा संसार चंद के महल व किले के लिए ही नहीं, अब चार धाम के लिए भी जानी जा रही है। यहां 10 किलोमीटर के दायरे में बने श्रीकृष्ण जीवनलीला धाम टीहरा, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम धाम बगेहड़ा, आदिशिव धाम भलेठ (दाड़ला) और आदिशक्ति धाम धनोटू (करोट) पर्यटन को पंख लगा रहे हैं।

आत्मनिर्भर भारत का दर्शन भी करवाते है ये चारों धाम

स्थानीय पंचायतों द्वारा निर्मित ये चारों धाम आत्मनिर्भर और विकसित ग्रामीण भारत के भी दर्शन करवाते हैं। शिवालिक पर्वत शृंखला के खूबसूरत प्राकृतिक नजारों के बीच यहां पर्यटक मानसिक शांति के साथ घूमने का भी आनंद ले रहे हैं।

भगवान श्रीराम, श्रीकृष्ण, आदिशिव और माता दुर्गा की विशाल प्रतिमाएं नई पीढ़ी को सनातन व अपनी संस्कृति से अवगत करवाती हैं। यहां फूलों व आयुर्वेदिक पौधों से सजे खूबसूरत पार्क हैं। बच्चों के खेलने के लिए झूले और नौकायान का रोमांच भी है। पर्यटकों की बढ़ती संख्या से पंचायत के लिए आय के साधन के साथ ही लोगों को रोजगार के अवसर भी बढ़े हैं। इनका रखरखाव जिम्मा स्थानीय पंचायतें ही संभाल रही हैं।

श्रीकृष्ण जीवनलीला धाम, टीहरा

सुजानपुर से तीन किलोमीटर दूर ऐतिहासिक किले के साथ बना यह धाम भगवान श्रीकृष्ण की जीवनलीला से अवगत करवाता है। कटोच वंशीय शासकों की ऐतिहासिक स्थली व राजधानी टीहरा में बना ताल पर्यटकों को पुराने समय में ले जाता है। पंचायत ने आने वाली पीढ़ी को गौरवान्वित इतिहास से परिचित करवाने के उद्देश्य से यहां ताल का जीर्णोद्धार किया है।

धाम में बाल कृष्ण का गोवर्धन पर्वत उठाना, गोपियों संग नृत्य, बांसुरी बजाना, महाभारत युद्ध के दौरान अर्जुन को श्रीमद्भागवत गीता के उपदेश समेत अन्य लीलाओं को भव्य प्रतिमाओं के माध्यम से दिखाया गया है। साथ ही लोग सूचनापट्ट के माध्यम से गीता के महत्व व कटोच वंश के इतिहास से भी अवगत होते हैं।

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम धाम, बगेहड़ा

सुजानपुर से पांच किलोमीटर दूर खड्ड किनारे बगेहड़ा में बना यह धाम दूर से ही मन मोह लेता है। यहां पहुंचते ही लगता है जैसे रामायण के पात्र इर्दगिर्द घूम रहे हैं। महाऋषि वाल्मीकि से लेकर माता सीता, लक्ष्मण और भरत के दर्शन होते हैं। भगवान श्रीराम का वन प्रस्थान, रावण का सीता हरण और हनुमान का लंका दहन का वर्णन मूर्तियों के माध्यम से किया गया है।

पार्क के बीचोंबीच स्थापित करीब 15 फीट ऊंची भगवान श्रीराम की दिव्य मूर्ति और राम दरबार आकर्षण का केंद्र है। इस भव्य धाम को देखकर कोई कह नहीं सकता कि यहां पहले श्मशानधाट ही हुआ करता था। फूलों व आयुर्वेदिक पौधों से सुगंधित पार्क, झूले व फव्वारा इसकी शान को और बढ़ा देते हैं।

आदिशिव धाम, भलेठ(दाड़ला)

सुजानपुर से छह किलोमीटर की दूरी पर स्थित घने पेड़ों की ओट में बना आदिशिव धाम मन में शांति का अहसास करवाता है। यहां ध्यान मुद्रा में बैठे भगवान शंकर की 21 फीट की ऊंची मूर्ति प्रतिष्ठापित है। दावा किया जाता है कि तमिलनाडु के कोयंबटूर के बाद दूसरी और हिमाचल की यह पहली सबसे ऊंची मूर्ति है। यहां कलकल बहता नाला इसकी खूबसूरती को और बढृा देता है, जिसे पंचायत ने संवारा है।

यहां भगवान शिव के अतिरिक्त माता पार्वती, शेषनाग व शिव परिवार की मूर्तियां भी स्थापित हैं। सुनसान क्षेत्र होने के कारण पहले यहां युवा नशा आदि करते थे, लेकिन अब इस क्षेत्र में लोग ध्यान लगाने आते हैं। यहां ध्यान केंद्र, पुस्तकालय और हिमाचली व्यंजनों को प्रोत्साहित करने के लिए भोजनालय भी बनाया जा रहा है।

आदिशक्ति धाम धनोटू (करोट)

सुजानपुर से आठ किलोमीटर दूर हमीरपुर मार्ग पर धनोटू में पहाड़ी पर आदिशक्ति धाम दूर से ही दिखाई देगा। यहां शेर पर सवार मां दुर्गा की 27 फीट ऊंची मूर्ति प्रतिष्ठापित है। स्थानीय लोगों का दावा है कि यह प्रदेश की पहली ऐसी मूर्ति है। इस विशाल मूर्ति के चारों ओर नौ देवियों की मूर्तियां प्रतिष्ठापित हैं।

यहां संस्कृत में लिखे श्लोक व हिंदी में अनुवाद देवियों के बारे में जानकारी को बढ़ाता है। यहां 108 घंटियों की गूंज दूर-दूर तक सुनाई देती है। खूबसूरत पार्क इस धाम की शोभा और बढ़ा देता है। बच्चों के लिए झूले व जलाशय में नौकायन इसे और भी आकर्षक बनाता है। नवरात्र व रात के समय रंगबिरंगी रोशनी दूर से ही दिखाई देती है।

कैसे पहुंचें चार धाम में

यहां पहुंचने के लिए प्रमुख रूप से तीन रास्ते हैं। पहला रास्ता शिमला, बिलासपुर व मंडी से आने वालों के लिए वाया हमीरपुर है। यहां से सुजानपुर 29 किलोमीटर है। रास्ते में ही आदिशक्ति व आदिशिव धाम के दर्शन किए जा सकते हैं। दूसरा मार्ग होशियारपुर, जालंधर से आने वाले पर्यटकों के लिए वाया नादौन है। नादौन से सुजानपुर 28 किलोमीटर है। तीसरा मार्ग धर्मशाला व पालमपुर से आने वाले लोगों के लिए वाया थुरल, आलमपुर है। पालमपुर से सुजानपुर 43 किलोमीटर है। यहां से गगल स्थित कांगड़ा हवाईअड्डा की दूरी 64 किलोमीटर है।

बीडीओ निशांत शर्मा की सोच ने दी दिशा व गति

चार धाम को मूर्त रूप देने में सुजानपुर के तत्कालीन विकास खंड अधिकारी (बीडीओ) निशांत शर्मा की अहम भूमिका रही है। 2021 में यहां पदभार संभालने के कुछ समय बाद ही निशांत इस कार्य में जुट गए और दो साल में इसे अंजाम तक पहुंचाने में सफल भी हो गए। निशांत कहते हैं कि यहां आने पर देखा कि प्राकृतिक सुंदरता के साथ ऐसे स्थल भी जिन्हें पर्यटन की दृष्टि से भी विकसित किया जा सकता है। टीहरा में ताल के जीर्णोद्धार से शुरुआत हुई। शुरू में जेब से भी पैसा लगाया।

स्थानीय लोगों व पंचायतों का साथ मिला तो काम में निखार आने लगा। अभी जहां आदिशिव धाम है, वहां घनी झाड़ियां ही थीं। इसलिए यहां कई युवा छिपकर नशा इत्यादि करते थे। अब यहां ध्यान केंद्र भी खुलने वाला है। यह जनसहयोग ही है कि कुल दो करोड़ रुपये से चारों धाम का निर्माण हुआ और इसमें दान के 29 लाख रुपये भी हैं। मात्र चार-चार माह में इन धाम का निर्माण हुआ है।

यह धाम पंचायतों को आत्मनिर्भर बनाने, चरित्र निर्माण और आने वाली पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ने में मददगार होगा। स्टेट सर्विसेस आवार्ड से सम्मानित निशांत अभी बतौर बीडोओ नादौन में कार्यरत हैं। लेकिन, क्षेत्र में लोग अब भी उन्हें याद करते हैं।

पर्यावरण संरक्षण का संदेश

इन चार धामों में सनातन संस्कृति के साथ ही पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश है। आदिशाक्ति धाम में बने जलाशय में वर्षा का पानी संचय किया जाता है। नौकायान के बाद इस पानी को फसलों की सिंचाई में उपयोग में लाया जाता है। श्रीकृष्ण धाम में ऐतिहासिक ताल का जीर्णोद्धार कर जल संरक्षण किया जा रहा है तो आदिशिव और श्रीराम धाम में नालों का तटीकरण किया गया है।

रोजगार व आत्मनिर्भर पंचायत

मनरेगा, 15वें वित्तायोग और जनसहयोग से मिले दो करोड़ रुपये से बने चारों धाम अब युवाओं को रोजगार, स्वयं सहायता समूहों और पंचायतों की आय का स्रोत बन रहे हैं। प्रत्येक धाम में प्रतिदिन औसतन 150 से 300 लोग आते हैं। इससे प्रत्येक पंचायत को वार्षिक तीन से पांच लाख रुपये की आय हैं। इनके रखरखाव के लिए पंचायतों ने स्थानीय लोगों को रखा है, जिससे उन्हें रोजगार भी मिल रहा है। स्वयं सहायता समूह यहां आने वाले पर्यटकों को अपने उत्पाद भी बेच रहे हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हो रही है।

नारीशक्ति ने किया धाम का सपना साकार

चारों धाम के सपने को नारीशक्ति साकार किया। जहां ये धाम बनाए गए उन पंचायतों में महिला प्रधान हैं। वीर बगेहड़ा पंचायत में रजनी बाला, दाड़ला में रेखा कुमारी, टीहरा में मीना ठाकुर और करोट में समस्या देवी मंजू ने इस कार्य को अंजाम तक पहुंचाया। पिछले वर्ष प्रदेश में प्राकृतिक आपदा के दौरान चारों धाम ने मुख्यमंत्री राहत कोष में एक लाख रुपये का योगदान दिया था।

सहयोग राशि छोटी हो सकती है, लेकिन यह बताती है कि पंचायतें आर्थिक रूप से सशक्त हो रही हैं। आपदा में श्रीराम धाम को जाने वाले मार्ग को भी नुकसान पहुंचा था, जिसे सुधारा जा रहा है। यहां राम जी की बड़ी मूर्ति लगाने की योजना है।

सामाजिक समरसता में भी सहायता

अब यहां सावन माह, नवरात्र, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, दशहरा आदि पर मेले व कार्यक्रम होते हैं। लोग आपसी सहयोग से पर्व को मनाते हैं। प्रतिदिन भजन कीर्तन होता है, जिससे सामाजिक समरसता को बढ़ाने में सहायता मिलती है।

राजनेताओं ने भी दिया साथ

धाम के निर्माण में पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं हमीरपुर के सांसद अनुराग ठाकुर, पूर्व विधायक राजेंद्र राणा और पूर्व जिला परिषद वीर बगेहड़ा एवं विधायक रणजीत सिंह का भी योगदान रहा। इन्होंने फंड जुटाने में पंचायतों की सहायता की।

यहां जाना न भूलें...

इस क्षेत्र में माता अंबिका व शनिदेव मंदिर घुमारड़ा, देई का नौण व काली माता मंदिर, चबूतरा के पुराने मंदिर, भलेठ का ऐतिहासिक मंदिर, मुरली मरोहर मंदिर सुजानपुर व टीहरा का किला व महल भी आकर्षक स्थल हैं।

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