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नसों के सूजने पर हो जाएं सतर्क

संवाद सहयोगी, पालमपुर : शरीर के किसी भी हिस्से में नसों के फूलने की बढ़ रही बीमारी के प्रति जागरूकता

By Edited By: Updated: Mon, 01 Aug 2016 08:08 PM (IST)

संवाद सहयोगी, पालमपुर : शरीर के किसी भी हिस्से में नसों के फूलने की बढ़ रही बीमारी के प्रति जागरूकता लाने के उद्देश्य से पालमपुर में गोष्ठी का आयोजन किया गया। फोर्टिस अस्पताल मोहाली की टीम ने बीमारी पर काबू पाने और इलाज के तरीके बताए।

वैस्क्यूलर सर्जन एवं वैस्क्यूलर सोसाइटी के अध्यक्ष डॉ. रावुल ¨जदल ने बताया कि नसों की सूजन को नजरअंदाज करना हानिकारक हो सकता है। इस तरह के लक्षण नजर आने पर इसका तुरंत उपचार कराना आवश्यक है। नसों के फूलने या सूजने को वेरीकोज वेन्स के नाम से जाना जाता है।

नसों के फूलने व सूजने की बीमारी शरीर के किसी भी हिस्से पर हो सकती है, लेकिन पैर की रक्त नसें ही ज्यादातर इस बीमारी का शिकार बनती हैं। यह बीमारी आमतौर महिलाओं में पाई जाती है। क्योंकि उनके पैर हमेशा ढके होते हैं और वह इसे बताने में भी संकोच करती हैं।

ये लक्ष्ण हैं इस बीमारी के

टांगों में भारीपन, अकड़न, घुटनों व टखनों में सूजन, चमड़ी पर नीली नसों का उभरना, चमड़ी पर लाली आना, खुजली और खुशकी बढ़ना और टखनों के ऊपर की चमड़ी का सिकुड़ना और सफेद दाग उभरना। लगातार खुशकी होने से अल्सर भी हो सकता है। बीमारी के कारण पैर में तेज दर्द शुरू हो जाता है। मरीज अपना पैर हिला भी नहीं सकता। इस बीमारी का प्रमुख कारण लंबे समय तक खड़े रहना माना जाता है।

ये है इलाज

इस बीमारी का परंपरागत इलाज सर्जरी है। इसके बाद मरीज के लिए दो से तीन सप्ताह तक आराम करना अनिवार्य हो जाता था, लेकिन अब सर्जरी की जगह लेजर तकनीक से इलाज किया जाता है। इस तकनीक से उपचार करवाने के कुछ ही घंटों बाद ही मरीज घर जा सकता है। केवल दो-तीन दिन में ही सामान्य रूप से चलने-फिरने लगता है। लेजर तकनीक से इलाज करने पर मरीज को दर्द भी नहीं होता और न ही टांगों पर किसी किस्म के चीरे अथवा टांकों के निशान पड़ते हैं। नई विधि से इलाज की सुविधा मोहाली स्थित फोर्टिस अस्पताल में लगभग छह वर्षों से मौजूद है।

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