Move to Jagran APP

हिमाचल के किसान अश्‍वगंधा की खेती से करेंगे आर्थिकी मजबूत, प्रति एकड़ होगा 12 हजार रुपये तक मुनाफा

प्रदेश के किसान अब अश्वगंधा की खेती कर अपनी आर्थिकी मजबूत कर सकेंगे इसके लिए कुल्लू व मंडी में बतौर पायलट प्रोजेक्ट योजना आरंभ की जा रही है।

By Rajesh SharmaEdited By: Updated: Fri, 27 Dec 2019 04:50 PM (IST)
Hero Image
हिमाचल के किसान अश्‍वगंधा की खेती से करेंगे आर्थिकी मजबूत, प्रति एकड़ होगा 12 हजार रुपये तक मुनाफा
जोगेंद्रनगर, जेएनएन। प्रदेश के किसान अब अश्वगंधा की खेती कर अपनी आर्थिकी मजबूत कर सकेंगे, इसके लिए कुल्लू व मंडी में बतौर पायलट प्रोजेक्ट योजना आरंभ की जा रही है। इसमें किसानों को 11 हजार रुपये की सबसिडी भी दी जाएगी। इस खेती को प्रदेश के अन्य जिलों सिरमौर, बिलासपुर, ऊना, कांगड़ा, सोलन, हमीरपुर जिला में भी शुरू करने की योजना है। जानकारी के मुताबिक अश्वगंधा की खेती आरंभ में मंडी के धर्मपुर व सरकाघाट और कुल्लू के गुशैणी में होगी।

अश्वगंधा की खेती समुद्रतल से 14 सौ मीटर से नीचे वाले क्षेत्रों में की जा सकती है। इसके सात से आठ किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर के लिए पर्याप्त होता है तथा इसकी रोपाई जून-जुलाई में नर्सरी के दो माह बाद की जा सकती है तथा पौधों को 4-6 इंच की दूरी पर प्रत्यारोपित किया जाता है। अश्वगंधा की फसल मात्र 5-6 माह में ही तैयार हो जाती है। प्रति एकड़ इसकी उपज 250 से 300 किलोग्राम तक रहती है तथा प्रति एकड़ किसान आठ से 12 हजार रुपये के बीच में शुद्ध आय अर्जित कर सकता है। यह विभिन्न रोगों में दवाई के रूप में भी प्रयोग होता है।

अश्वगंधा की जड़ में होते हैं कई एल्केलाइड्स

अश्वगंधा की जड़ में कई एल्केलाइड्स पाए जाते हैं। इनमें कुस्कोहाइग्रीन, एनाहाइग्रीन, ट्रोपीन, स्टूडोट्रोपीन, ऐनाफेरीन, आइसोपेलीन, टोरीन और तीन प्रकार के ट्रोपिलीटग्लोएट शामिल हैं तथा इनकी मात्रा 0.13 से 0.31 प्रतिशत तक होती है। इसके अलावा जड़ में स्टार्च, शर्करा, ग्लाईकोमाइड्स-हेट्रियाकाल्टेन, अलसिटॉल व विदनाल, तने में प्रोटीन तथा बहुत से अमीनो अमल पाए जाते हैं। इसमें रेशा बहुत कम तथा कैल्शियम व फॅास्फोरस प्रचुर मात्रा में होती है। इसके अलावा अश्वगंधा के फलों में प्रोटीन को पचाने वाला एन्जाइम कैमेस भी पाया जाता है।

बड़ी बलवर्धक है अश्वगंधा

अश्वगंधा कशकाय रोगियों, सूखा रोग से ग्रस्त बच्चों व व्याधि उपरांत कमजोरी में, शारीरिक व मानसिक थकान में पुष्टिकारक बलवर्धक के नाते प्रयोग होती है। कुपोषण, बुढ़ापे व मांसपेशियों की कमजोरी और थकान जैसे रोगों में अश्वगंधा का इस्तेमाल किया जाता है। इसके लगातार सेवन करने से शरीर के सारे विकार बाहर निकल जाते हैं। अश्वगंधा को आयुर्वेद में पुरातन काल से ही वीर्यवर्धक, शरीर में ओज और कांति लाने वाले, परम पौष्टिक व सर्वांग शक्ति देने वाली, क्षय रोगनाशक, रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने वाली तथा वृद्धावस्था को दूर रखने वाली सर्वोत्तम वन औषधि माना है।

सरकार राष्ट्रीय आयुष मिशन (एनएएम) के तहत राज्य औषधीय पादप बोर्ड के माध्यम से अश्वगंधा की खेती को प्रति हेक्टेयर लगभग 11 हजार रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान कर रही है। प्रदेश के निचले क्षेत्रों में रहने वाले किसानों से व्यक्तिगत या सामूहिक तौर पर अश्वगंधा की औषधीय खेती अपनाने का आह्वान किया है ताकि आय का एक नया साधन सृजित कर उनकी आर्थिकी को मजबूती प्रदान की जा सके। इस संबंध में अतिरिक्त क्षेत्रीय एवं सुगमता केंद्र जोगेंद्रनगर आयुर्वेद अनुसंधान संस्थान के कार्यालयों से भी संपर्क कर सकते हैं। -डॉ. अरुण चंदन क्षेत्रीय निदेशक, जोगेंद्रनगर।

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।