Bikram Batra:परमवीर चक्र विजेता कैप्टन विक्रम बत्तरा को पालमपुर में 47वीं जयंती पर आज किया जा रहा याद
कै. विक्रम बत्तरा की 47वीं जयंती पर आज उन्हें पालमपुर के शहीद विक्रम बतरा राजकीय महाविद्यालय में याद किया जा रहा है। आयोजित कार्यक्रम में विधानसभा अध्यक्ष विपिन परमार शिरकत कर रहे हैं। करगिल युद्ध के दौरानयह दिल मांगे मोर का नारा दिया था।
पालमपुर, कुलदीप राणा। परमवीर चक्र विजेता बलिदानी कै. विक्रम बत्तरा की 47वीं जयंती पर आज उन्हें पालमपुर के शहीद विक्रम बतरा राजकीय महाविद्यालय में याद किया जा रहा है। आयोजित कार्यक्रम में विधानसभा अध्यक्ष विपिन परमार शिरकत कर रहे हैं। करगिल युद्ध के दौरान,यह दिल मांगे मोर, का नारा देकर भारतीय जवानों में जोश भर दिया था। अदम्य साहस और बहादुरी के चलते शेर शाह के नाम से विख्यात विक्रम बत्तरा के नाम से दुश्मन भी कांपते थे। बलिदान हाेने से पहले कै. बत्तरा के आखिरी शब्द थे ,जय माता दी,। 9 सितंबर 1974 को पालमपुर में जन्मे विक्रम बतरा का बचपन का नाम लव था।
पालमपुर निवासी जीएल बत्तरा और कमल कांता बत्तरा के घर दो बेटियों के बाद दो जुड़वा बच्चों ने जन्म लिया, इनका नाम लव-कुश रखा गया। लव को बाद में विक्रम का नाम दिया गया और कुश, विशाल के नाम से मशहूर हुए। विक्रम बतरा ने 18 वर्ष की आयु में ही नेत्रदान करने का निर्णय ले लिया था, यही कारण था कि नेत्र बैंक का कार्ड वह हमेशा अपने पास रखते थे। डीएवी और केंद्रीय विद्यालय पालमपुर में पढ़ाई शिक्षा ग्रहण करने वाले विक्रम बतरा में बचपन में पिता से देश प्रेम की कहानियां सुनने के चलते देशभक्ति के जज्बे से प्रबल थे। शिक्षाकाल के दौरान पढ़ाई में बेहतर प्रदर्शन करने के साथ टेबल-टेनिस के भी अच्छे खिलाड़ी थे। पालमपुर में जमा दो तक की शिक्षा ग्रहण करने के बाद विक्रम बतरा चंडीगढ़ चले गए, जहां उन्होंने डीएवी का'लेज चंडीगढ़ में विज्ञान संकाय में स्नातक की पढ़ाई की।
जुलाई 1996 में भारतीय सेना अकादमी देहरादून में पाया था प्रवेश
देशसेवा की चाह रखकर सेना में जाने को फैसला लिया। जुलाई 1996 में विक्रम ने भारतीय सेना अकादमी देहरादून में प्रवेश पाया। 6 दिसंबर 1997 को विक्रम को जम्मू के सोपोर में सेना की 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स में बतौर लेफ्टिनेंट नियुक्ति मिली। वर्ष 1999 में विक्रम बतरा ने कमांडो प्रशिक्षण के साथ अन्य प्रशिक्षण भी हासिल किए। 1 जून 1999 को विक्रम बतरा की टुकड़ी को कारगिल युद्ध में भेजा गया। हम्प और राकी नाब स्थानों
को फतह करने के बाद विक्रम को कैप्टन बना दिया गया। इसके बाद श्रीनगर लेह मार्ग से ऊपर 5140 चोटी को पाक सेना से मुक्त करवाने की जिम्मा विक्रम बतरा की टुकड़ी को सौंपा गया। अति दुर्गम क्षेत्र होने के बावजूद विक्रम बतरा ने अपने साथियों के साथ 20 जून 1999 को सुबह 3 बजकर 30 मिनट पर चोटी पर कब्जा जमा लिया। विक्रम बत्तरा ने फतह की गई चोटी से रेडियो के जरिए यह दिल मांगे मोर का विजय उदघोष किया, जिसके बाद सेना के साथ-साथ पूरे देश में उनका नाम प्रसिद्ध हो गया।
अगले दिन चोटी 5140 में भारतीय ध्वज के साथ विक्रम बतरा और उनकी टीम का फोटो मीडिया में आने पर हर कोई उनकी वीरता का कायल हो गया। इसके बाद सेना ने चोटी 4875 को भी कब्जे में लेने का अभियान शुरू किया। बतरा ने अपनी जान की परवाह न करते हुए लेफ्टिनेंट अनुज नैयर के साथ कई पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया, इसी दौरान एक अन्य लेफ्टिनेंट नवीन घायल हो गए। उन्हें बचाने के लिए विक्रम बत्तरा बंकर से बाहर आ गए। दुश्मनों की एक गोली विक्रम के सीने में लगी और कुछ देर बाद विक्रम जय माता दी कहते हुए भारत की मां की गोद में सदा के लिए समा गए। विक्रम के बलिदान देने के बाद उनकी टुकड़ी ने चोटी 4875 को
फतह कर लिया। कैप्टन विक्रम बतरा के अदम्य साहस को देखते हुए 15 अगस्त 1999 को उन्हें परमवीर चक्र से नवाजा गया। यह अवार्ड बलिदानी विक्रम बत्तरा के पिता जीएल बत्तरा ने राष्ट्रपति से प्राप्त किया कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना जिस शेरशाह के नाम से ही डर जाती थी और रेडियो पर जिसकी गर्जना से ही दुश्मन सैनिक दहशत में आ जाते थे उस शेरशाह यानी परमवीर चक्र विजेता कैप्टन विक्रम बतरा को आज भी सारा देश सलाम करता है।