विदेश में नौकरी छोड़ गांव में बेमौसमी सब्जियां उगाई, कमाया नाम और पैसा, राष्ट्रस्तर पर मिला सम्मान
Growing Off Season Vegetables संजय कुमार एकीकृत कृषि प्रणाली को अपनाकर कृषि के साथ पशुपालन भी अपनाया है। दुग्ध उत्पादन और भेड़ बकरियों से भी यह आय अर्जित करते हैं। इनके पास चार पॉलीहाउस और 10 बीघा जमीन है।
By Rajesh Kumar SharmaEdited By: Updated: Thu, 05 Aug 2021 10:11 AM (IST)
मंडी, मुकेश मेहरा। Growing Off Season Vegetables, अगर मेहनत दिल से हो तो मिट्टी भी सोना उगलती है। सुंदरनगर के पलोहटा के किसान संजय कुमार ने यह कहावत सार्थक की है। विदेश में नौकरी छोड़ने के बाद अपने पुश्तैनी कृषि के व्यवसाय को अपनाकर आज उस मुकाम तक पहुंचाया, जहां पर उनको केंद्र सरकार ने राष्ट्रस्तरीय पंडित दीन दयाल अंत्योदय कृषि पुरस्कार 2020 से सम्मानित किया। संजय कुमार एकीकृत कृषि प्रणाली को अपनाकर कृषि के साथ पशुपालन भी अपनाया है। दुग्ध उत्पादन और भेड़ बकरियों से भी यह आय अर्जित करते हैं। इनके पास चार पॉलीहाउस और 10 बीघा जमीन है। एक महीने में संजय 50 से 60 हजार रुपये मुनाफा आसानी से कमाते हैं।
संजय कुमार बताते हैं कि उनके परिवार का पुश्तैनी काम कृषि था। लेकिन आर्थिक स्थिति मजबूत न होने के कारण वह विदेश में नौकरी करने चले गए। अफगाानिस्तान और दुबई में नौकरी के बाद वर्ष 2016 में जब वह घर लौटे तो कृषि को फिर से अपनाया। सुंदरनगर स्थित कृषि विज्ञान केंद्र में उन्होंने इसके लिए संपर्क किया और पाॅलीहाउस के लिए प्रशिक्षण हासिल किया। अगस्त 2016 में पॉलीहाउस का काम शुरू किया।
संजय बताते हैं कि वह पॉलीहाउस में बेमौसी खीरा, शिमला मिर्च, टमाटर उगाते हैं। उनका एक पॉलीहाउस 504 स्कवेयर फीट का है, जबकि तीन अन्य जो पड़ोस के लोगों के हैं, जिनका वह संचालन कर रहे हैं, वह 560 स्कवेयर फीट हैं। संजय बताते हैं कि मेरे काम को देखकर पड़ोसियों ने यह पॉलीहाउस दे दिए थे, ताकि यहां जमीन बेहतर रह सके। संजय कुमार अपनी जमीन में कैबिज, गोभी, भिंडी, पत्ता गोभी, पालक, धनिया आदि की खेती करते हैं। वह इस खेती को पूरी तरह से प्राकृतिक रूप से करते हैं और उनके द्वारा तैयार फसलें हाथों हाथ ही बिक जाती हैं और यह सेल सुंदरनगर और आ पास के इलाकों में होती है। कृषि विज्ञान केंद्र सुंदरनगर के प्रभारी पंकज सूद बताते हैं कि संजय कुमार ने अपनी मेहनत और विभाग के सहयोग से कृषि का एक बेहतरीन मॉडल पेश किया है।
दिल्ली भेजते हैं गेहूं, दालें व चावलसंजय कुमार बताते हैं कि उनके यहां तैयार गेहूं, चावल व मक्की की डिमांड दिल्ली में रहती है। वह हर बार इसकी सप्लाई ऑर्डर के तहत दिल्ली भेजते हैें और इसका अच्छा दाम उनको मिल जाता है। वह बताते हैं कि इस काम में उनका पूरा परिवार भरपूर साथ देता है। इसमें उनकी पत्नी चंद्रेश कुमारी, बेटे ऋषभ सकलानी, माता हिमा देवी, पिता भागमल शामिल हैं।
दो देसी गाय व बकरी पालन भी कर रहे संजय कुमार कहते हैं कि उनके पास दो देसी गाय साहीवाल और बीटल नस्ल की बकरियां हैं। गाय से वह दिन में 12 लीटर तक दूध निकालकर बेचते हैं। इसके अलावा 20 से 25 बकरियाें से उनके मेमनों को बेचा जाता है, जिसके पांच से सात हजार रुपये तक मिल जाते हैं। उन्होंने बताया भेड़ों के मल और गाय के गोबर को वह खाद के रूप में अपने खेतों और पॉलीहाउस में ही इस्तेमाल करते हैं।
विद्यार्थी लेते हैं जानकारी चौधरी सरवण कुमार कृषि विश्वविद्यालय के विद्यार्थी भी अपनी प्रैक्टिकल की तैयारी इन्हीं के खेतों में आकर करते हैं। यहां हर साल दो से तीन बैच कृषि विवि से प्रैक्टिकल के लिए संजय कुमार के खेतों में पहुंचते हैं। संजय बताते हैं कि सिंचाई के पानी के लिए वह वर्षा जलसंग्रहण के तहत टैंक बनाए हुए हैं।यह मिला था सम्मान
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के फाउंडेशन दिवस पर वर्चुअली मोड में आयोजित कार्यक्रम में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र तोमर ने संजय कुमार को राष्ट्रस्तरीय पंडित दीन दयाल अंत्योदय कृषि पुरस्कार 2020 से सम्मानित किया था। उन्हें स्मृति चिन्ह्, सर्टिफिकेट तथा 50000 हजार रुपये की राशि प्राप्त हुई। क्या कहते हैं कुलपति
चौधरी सरवण कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के कुलपति प्रोफेसर हरिंदर कुमार चौधरी ने कहा किसानों को समय-समय पर विभिन्न प्रशिक्षण उपलब्ध करवाया जाता है। संजय कुमार ने भी यहां से प्रशिक्षण लेकर कृषि क्षेत्र में बेहतर कार्य किया है। यह अन्य किसानों के लिए भी उदाहरण है।
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