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ब्रेन डेड होने पर आठ लोगों को मिल सकती है नई जिंदगी

13 वर्षीय बेटे शाश्वत के सभी अंगदान करने वाले इंदिरा गांधी मेडिकल कालेज में सर्जरी के प्रोफेसर डा. पुनीत महाजन ने उमंग फाउंडेशन के वेबिनार में अंगदान पर जागरूक किया। उन्होंने कहा कि देश में हर साल चार लाख मरीज अंग प्रत्यारोपण के इंतजार में मर जाते हैं।

By Neeraj Kumar AzadEdited By: Updated: Tue, 18 Jan 2022 10:16 PM (IST)
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ब्रेन डेड होने पर आठ लोगों को मिल सकती है नई जिंदगी
शिमला, जागरण संवाददाता। 13 वर्षीय बेटे शाश्वत के सभी अंगदान करने वाले इंदिरा गांधी मेडिकल कालेज में सर्जरी के प्रोफेसर डा. पुनीत महाजन ने उमंग फाउंडेशन के वेबिनार में अंगदान पर जागरूक किया। उन्होंने कहा कि देश में हर साल चार लाख मरीज अंग प्रत्यारोपण के इंतजार में मर जाते हैं। जबकि एक ब्रेन डेड डोनर के सारे अंग सीधे तौर पर आठ लोगों को नया जीवन दे सकते हैं और दो दृष्टिहीन लोगों को रोशनी दे सकता है। जीवनकाल में भी कुछ अंग दान किए जा सकते हैं।

कार्यक्रम के संयोजक एवं उमंग फाउंडेशन के ट्रस्टी डा. सुरेंद्र कुमार के अनुसार डा. पुनीत महाजन उमंग फाउंडेशन की ओर से आजादी के अमृत महोत्सव में मानवाधिकार जागरूकता अभियान के अंतर्गत 18वें साप्ताहिक वेबिनार में 'मरीजों का जीवन बचाने हेतु अंगदान का अधिकारÓ विषय पर आठ राज्यों के युवाओं को संबोधित किया। फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रो. अजय श्रीवास्तव ने बताया कि कार्यक्रम में 150 से अधिक युवाओं ने वर्चुअल माध्यम से हिस्सा लिया। डा. पुनीत महाजन और उनकी पत्नी डा. शिवानी महाजन ने पांच वर्ष पूर्व बेटे शाश्वत के पीजीआइ में ब्रेन डेड घोषित होने के बाद सभी अंग दान कर कई लोगों की जिंदगी बचाई थी।

डा. पुनीत को हिमाचल प्रदेश सरकार ने स्टेट आर्गन एंड टिशू ट्रांसप्लांटेशन आर्गेनाइजेशन (सोटो) का नोडल अधिकारी भी बनाया है। कार्यक्रम में शाश्वत को श्रद्धांजलि भी दी गई। डा. पुनीत ने बताया कि हम जीवन काल में भी एक किडनी, बोनमैरो का हिस्सा और पैनक्रियास एवं लीवर का अंश दान कर मरीजों का जीवन बचा सकते हैं, जबकि ब्रेन डेड होने के बाद दिल, किडनी, लीवर, पैनक्रियास, फेफड़े, त्वचा, हड्डी, आंतें, आंख की पुतली एवं टिशू आदि दान की जा सकती हैं।

ब्रेन डेड वह अवस्था होती है जब मस्तिष्क पूरी तरह मृत हो जाता है, लेकिन उस मरीज को वेंटीलेटर से लगातार आक्सिजन दी जाती है, ताकि शरीर में खून का संचरण बना रहे। भारत में विकसित देशों की तुलना में अंगदान का प्रतिशत नगण्य है। कार्यक्रम के संचालन में दिल्ली विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर डा. सुरेंद्र कुमार के अलावा विनोद योगाचार्य, संजीव कुमार शर्मा, आकांक्षा जसवाल, दीक्षा वशिष्ठ और उदय वर्मा सहयोगी रहे।

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