पांवटा साहिब में की थी गुरु गोबिंद सिंह ने दसम् ग्रंथ-दसवें सम्राट की रचना, आइए जानें, कैसे पहुंचे पांवटा साहिब
हिमाचल-उत्तराखंड की सीमा पर यमुना नदी के किनारे बसा जिला सिरमौर का पांवटा साहिब सिखों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है। पांवटा साहिब को दसवें सिख गुरु गोबिंद सिंह द्वारा स्थापित किया
By Richa RanaEdited By: Updated: Fri, 18 Sep 2020 11:23 AM (IST)
नाहन,राजन पुंडीर। हिमाचल-उत्तराखंड की सीमा पर यमुना नदी के किनारे बसा जिला सिरमौर का पांवटा साहिब सिखों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है। पांवटा साहिब को दसवें सिख गुरु गोबिंद सिंह द्वारा स्थापित किया गया था। इस जगह का नाम पहले पाओंटिका था। पौंटा शब्द का अर्थ है पैर, इस जगह का नाम इसके अर्थ के अनुसार सर्वश्रेष्ठ महत्व रखता है। ऐसा माना जाता है कि सिख गुरु गोबिंद सिंह अपने घोडे़ से जा रहे थे तथा इसी स्थान पर पहुंच कर उनके घोड़े अपने आप रूक गए थे, तो गुरु गोबिंद सिंह ने इसलिए पाओं और टीके को मिलाकर इसे पांवटा का नाम दिया। गुरु गोबिंद सिंह ने इसी स्थान पर गुरुद्वारा स्थापित किया था। साथ ही अपने जीवन के साढ़े 4 वर्ष यहीं गुजारे थे। गुरुद्वारा के अंदर श्रीतालाब स्थान, वह जगह है जहां से गुरु गोबिंद सिंह वेतन वितरित करते थे। इसके अलावा गुरुद्वारे में श्रीदस्तर स्थान मौजूद है। जहां माना जाता कि वे पगड़ी बांधने की प्रतियोगिताओं में न्याय करते थे। गुरुद्वारा का एक अन्य आकर्षण एक संग्रहालय है, जो गुरु के उपयोग की कलम और अपने समय के हथियारों को दर्शाती है।
संक्राति 1742 संवत को रखी गई थी पांवटा साहिब की नींव
गुरु गोबिंद सिंह का यमुना नदी के तट पर बसाया नगर पांवटा साहिब इतिहास की कई महान घटनाओं को संजोए हुए है। एक तरफ जहां सिख धर्म के इतिहास में विशेष स्थान रखता है। तो दूसरी तरफ सिखों के गौरवमयी इतिहास की यादों को ताजा करता है। इस धरती पर पांवटा साहिब ही एक ऐसा नगर है। जिसका नामकरण स्वयं गुरु गोबिंद सिंह ने किया है। इतिहास में लिखा है कि गुरु गोबिंद सिंह 17 वैशाख संवत 1742 को 1685 ई. को नाहन पहुंचे तथा संक्राति 1742 संवत को पांवटा साहिब की नींव रखी। साढ़े 4 वर्ष रहे पांवटा साहिब में गुरु गोबिंद सिंह
गुरु गोबिंद सिंह साढ़े 4 साल तक पांवटा साहिब में रहे। इस दौरान उन्होंने यहां रहकर बहुत से साहित्य तथा गुरुवाणी की रचनांए भी की है। प्राचीन साहित्य का अनुभव और ज्ञान से भरी रचनाओं को सरल भाषा में बदलने का काम भी गुरु गोबिंद सिंह ने लेखकों से करवाया। गुरु गोबिंद सिंह ने यहां पर एक कवि दरबार की स्थापना की। जिसमें 52 भाषाओं के भिन्न-भिन्न कवि थे। कवि दरबार स्थान पर गुरु गोबिंद सिंह पूर्णमासी की रात को एक विशेष कवि दरबार भी सजाया जाता था।
गुरु गोबिंद सिंह का यमुना नदी के तट पर बसाया नगर पांवटा साहिब इतिहास की कई महान घटनाओं को संजोए हुए है। एक तरफ जहां सिख धर्म के इतिहास में विशेष स्थान रखता है। तो दूसरी तरफ सिखों के गौरवमयी इतिहास की यादों को ताजा करता है। इस धरती पर पांवटा साहिब ही एक ऐसा नगर है। जिसका नामकरण स्वयं गुरु गोबिंद सिंह ने किया है। इतिहास में लिखा है कि गुरु गोबिंद सिंह 17 वैशाख संवत 1742 को 1685 ई. को नाहन पहुंचे तथा संक्राति 1742 संवत को पांवटा साहिब की नींव रखी। साढ़े 4 वर्ष रहे पांवटा साहिब में गुरु गोबिंद सिंह
गुरु गोबिंद सिंह साढ़े 4 साल तक पांवटा साहिब में रहे। इस दौरान उन्होंने यहां रहकर बहुत से साहित्य तथा गुरुवाणी की रचनांए भी की है। प्राचीन साहित्य का अनुभव और ज्ञान से भरी रचनाओं को सरल भाषा में बदलने का काम भी गुरु गोबिंद सिंह ने लेखकों से करवाया। गुरु गोबिंद सिंह ने यहां पर एक कवि दरबार की स्थापना की। जिसमें 52 भाषाओं के भिन्न-भिन्न कवि थे। कवि दरबार स्थान पर गुरु गोबिंद सिंह पूर्णमासी की रात को एक विशेष कवि दरबार भी सजाया जाता था।
यमुना नदी के तट की ओर से गुरूद्वारे का विहंगम दृश्य
इतिहास के पन्नों के अनुसार बाइस धार के राजाओं में परस्पर लड़ाई झगड़े चलते रहते थे। नाहन रियासत के तत्कालीन राजा मेदनी प्रकाश का कुछ इलाका श्रीनगर गढ़वाल के राजा फतहशाह ने अपने कब्जे में कर लिया था। राजा मेदनी प्रकाश अपने क्षेत्र को वापिस लेने में विफल रहा था। राजा मेदनी प्रकाश ने रियासत के प्रसिद्ध तपस्वी ऋषि काल्पी से सलाह मांगी। उन्होंने कहा कि दसवें गुरु गोबिंद सिंह को अपनी रियासत में बुलाओ, वही तुम्हारा संकट दूर कर सकते हैं। राजा मेदनी प्रकाश के आग्रह पर गुरु गोबिंद सिंह जी नाहन पहुंचे। जब गुरु जी नाहन पहुंचे, तो राजा मेदनी प्रकाश, उनके मंत्रियों, दरबारियों व गुरु घर के सैंकड़ों श्रद्धालुओं ने उनका शानदार और परंपरागत स्वागत किया। कुछ दिन नाहन रहकर गुरु गोबिंद सिंह ने इलाके का दौरा किया और कई स्थान देखे। 10वें गुरु गोबिंद सिंह ने 1686 में अपनी पहली लड़ाई लड़ी थी। गुरु गोबिंद सिंह ने 20 की कम उम्र में यह लड़ाई लड़ी, जिसमें उन्होंने राजा फतेह साहिब को हाराया था। बिना प्रशिक्षण एकत्रित फौज को बाइसधार के राजाओं के मुकाबले में लाकर उनकी 25 हजार फौज की कमर तोड़ दी थी। इसी युद्ध से गुरु जी ने जुल्म के विरुद्ध जंग लडऩे का एलान किया और एक-एक करके 13 युद्ध लड़े।
पांवटा साहिब गुरुद्वारा में है सोने से बनी पालकी
पांवटा साहिब गुरुद्वारा दुनिया भर में सिख धर्म के अनुयायियों के लिए एक बहुत ही उच्च ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व रखता है। इस गुरुद्वारे के धार्मिक महत्व का एक उदाहरण है। यहां पर रखी हुई पालकी, जो कि शुद्ध सोने से बनी है। यह पालकी किसी भक्त ने दानस्वरुप दी है। लोक कथाओं के अनुसार पास में बहती यमुना नदी जब बहुत शोर के साथ बहती थी। तब गुरु जी के अनुरोध पर यमुना नदी गुरूद्वारा के समीप से शांत होकर बहने लगी। जिससे की गुरूजी यमुना किनारे बैठकर दसम् ग्रंथ लिख सके। तब से यहां पर यमुना नदी बिलकुल शांत होकर बहती आ रही है। इसी जगह पर सिखों के 10वें गुरु गोबिंद सिंह ने सिख धर्म के शास्त्र दसम् ग्रंथ या दसवें सम्राट की पुस्तक का एक बड़ा हिस्सा लिखा था।
इतिहास के पन्नों के अनुसार बाइस धार के राजाओं में परस्पर लड़ाई झगड़े चलते रहते थे। नाहन रियासत के तत्कालीन राजा मेदनी प्रकाश का कुछ इलाका श्रीनगर गढ़वाल के राजा फतहशाह ने अपने कब्जे में कर लिया था। राजा मेदनी प्रकाश अपने क्षेत्र को वापिस लेने में विफल रहा था। राजा मेदनी प्रकाश ने रियासत के प्रसिद्ध तपस्वी ऋषि काल्पी से सलाह मांगी। उन्होंने कहा कि दसवें गुरु गोबिंद सिंह को अपनी रियासत में बुलाओ, वही तुम्हारा संकट दूर कर सकते हैं। राजा मेदनी प्रकाश के आग्रह पर गुरु गोबिंद सिंह जी नाहन पहुंचे। जब गुरु जी नाहन पहुंचे, तो राजा मेदनी प्रकाश, उनके मंत्रियों, दरबारियों व गुरु घर के सैंकड़ों श्रद्धालुओं ने उनका शानदार और परंपरागत स्वागत किया। कुछ दिन नाहन रहकर गुरु गोबिंद सिंह ने इलाके का दौरा किया और कई स्थान देखे। 10वें गुरु गोबिंद सिंह ने 1686 में अपनी पहली लड़ाई लड़ी थी। गुरु गोबिंद सिंह ने 20 की कम उम्र में यह लड़ाई लड़ी, जिसमें उन्होंने राजा फतेह साहिब को हाराया था। बिना प्रशिक्षण एकत्रित फौज को बाइसधार के राजाओं के मुकाबले में लाकर उनकी 25 हजार फौज की कमर तोड़ दी थी। इसी युद्ध से गुरु जी ने जुल्म के विरुद्ध जंग लडऩे का एलान किया और एक-एक करके 13 युद्ध लड़े।
पांवटा साहिब गुरुद्वारा में है सोने से बनी पालकी
पांवटा साहिब गुरुद्वारा दुनिया भर में सिख धर्म के अनुयायियों के लिए एक बहुत ही उच्च ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व रखता है। इस गुरुद्वारे के धार्मिक महत्व का एक उदाहरण है। यहां पर रखी हुई पालकी, जो कि शुद्ध सोने से बनी है। यह पालकी किसी भक्त ने दानस्वरुप दी है। लोक कथाओं के अनुसार पास में बहती यमुना नदी जब बहुत शोर के साथ बहती थी। तब गुरु जी के अनुरोध पर यमुना नदी गुरूद्वारा के समीप से शांत होकर बहने लगी। जिससे की गुरूजी यमुना किनारे बैठकर दसम् ग्रंथ लिख सके। तब से यहां पर यमुना नदी बिलकुल शांत होकर बहती आ रही है। इसी जगह पर सिखों के 10वें गुरु गोबिंद सिंह ने सिख धर्म के शास्त्र दसम् ग्रंथ या दसवें सम्राट की पुस्तक का एक बड़ा हिस्सा लिखा था।
विशेष आयोजन के दौरान गुरूद्वारे का खूबसूरत दृश्य
यमुना नदी के तट पर बसा यह गुरुद्वारा विश्व प्रसिद्ध है। यहां पर भारत से ही नहीं, अपितु दुनियाभर से श्रद्धालु आते हैं। पांवटा साहिब आने वाला प्रत्येक यात्री चाहे वह किसी भी धर्म से संबंधित क्यों न हो, गुरुद्वारे में माथा टेकना नहीं भूलता है। प्रतिवर्ष होला मोहल्ला पर्व भी पांवटा साहिब में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। जिसमें सभी धर्मों के लोग बढ़चढ़ कर भाग लेते हैं। धार्मिक आस्था रखने वालों के लिए यह स्थान अति महत्वपूर्ण है। यह स्थान देश के सभी प्रमुख स्थानों से सडक़ मार्ग से वर्ष भर जुड़ा हुआ है।
पांवटा साहिब के आसपास हैं कई गुरुद्वारे
पांवटा साहिब से लगभग 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गुरू तीरगढ़ी साहिब यह वह स्थान है, जहां ऊंचे टीले पर खड़े होकर कलगीधार पातशाह खुद तीर चलाते हुए दुश्मनों की फौजों का सामना करते रहे हैं। गुरु साहिब के यहां तीर चलाने के कारण ही इस स्थान को तीर गढ़ी कहा जाता है। गुरूद्वारा भंगाणी साहिब पांवटा साहिब से 18 किलोमीटर तथा तीरगढ़ी साहिब से 01 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह वह स्थान है, जहां पर कलगीधार पातशाह ने बाइसधार के राजाओं के विरुद्ध पहला युद्ध लड़ा है। यहां गुरु साहिब रात को विश्राम किया करते थे और अगले दिन युद्ध की रूपरेखा तैयार करते थे। हरे भरे खेतों, यमुना नदी व ऊंचे पहाड़ों के बीच एक रमणीय स्थल है। गुरुद्वारा रणथंम साहिब गुरुद्वारा श्रीतीरगढ़ी साहिब व गुरुद्वारा श्री भंगाणी साहिब के बीच में है। भंगाणी साहिब के युद्ध के समय श्री गुरु गोबिंद सिंह के नियुक्त किए हुए सेनापति संगोशाह ने गुरु का हुक्म मानकर अपनी आधी सेना को मैदान में ले जाकर रणथम्म गाड़ कर हुक्म किया कि इससे पीछे नहीं हटना, आगे बेशक बढ़ जाना। गुरु जी की इस रणनीति की वजह से गुरु घर के आत्म बलिदानियों ने दुश्मन की 25 हजार की हर तरह से ट्रेंड़ और हथियारों से लैस फौज का डट कर मुकाबला किया और रणथंम से आगे आने का मौका ही नहीं दिया। गुरु साहिब ने यह युद्ध जीत लिया। इस तरह यह ऐतिहासिक स्थान एक विशेष महत्व रखता है। गुरुद्वारा शेरगाह साहिब पांवटा साहिब से पांच किलोमीटर दूर निहालगढ़ गांव में है। इस स्थान पर श्री गुरु गोबिंद सिंह ने महाराजा नाहन मेदनी प्रकाश और महाराजा गढ़वाल फतह चंद के सामने उस आदमखोर शेर को तलवार से मारा था, जिस ने इलाके में बहुत बड़ा जानी नुकसान कर दिया था। जिस के सामने बड़े-बड़े शूरवीर भी जाने से कतराते थे। कहा जाता है कि यह शेर राजा जैयदर्थ था। जिस ने वीर अभिमन्यु को महाभारत की जंग में छलावे से मारा था और अब शेर की जूनी भुगत रहा था। गुरु जी ने उस की मुक्ति दी थी। गुरुद्वारा दशमेश दरबार साहिब पांवटा साहिब से लगभग 8 किलोमीटर श्री भंगाणी साहिब मार्ग पर गांव हरिपुर के साथ छावनीवाला में स्थित है। यहां पर गुरु जी भंगाणी साहिब के योद्धाओं से विचार विमर्श किया करते थे, इसलिए इस जगह का नाम छावनी वाला पड़ गया। गुरुद्वारा कृपाल शिला पांवटा साहिब गुरुद्वारा से मात्र एक किलोमीटर की दूरी पर है। यहां गुरु गोबिंद सिंह के शिष्य बाबा कृपालदास ने शिला के ऊपर बैठक कर तपस्या की थी। जब गुरु जी महाराजा सिरमौर मेदनी प्रकाश के बुलावे पर नाहन पहुंचे, तो उनका शानदार और श्रद्धापूर्वक स्वागत हुआ। जिस स्थान पर गुरु जी ठहरे वहां ऐतिहासिक यादगार के तौर पर महाराजा ने गुरुद्वारा नाहन साहिब बनावा दिया। गुरुद्वारा टोका साहिब वह ऐतिहासिक स्थान है। जहां पंजाब वर्तमान में हरियाणा से सिरमौर रियासत में दाखिल होते समय गुरु ने पहला पड़ाव किया था। गुरु का यह ऐतिहासिक यादगार स्थान औद्योगिक कस्बे कालाअंब से महज पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। गुरुद्वारा बडूसाहिब खालसा की गुप्त तपोभूमि के नाम से भी प्रसिद्ध है। इस स्थान को वर्ष 1957 में संत अतर सिंह ने खोजा था। यह स्थान राजगढ़ से 20, सराहां से 50 तथा पांवटा साहिब से लगभग 100 किलोमीटर दूर है। कैसे पंहुचे पांवटा साहिब व कहां से कितनी दूरी
पांवटा साहिब शहर वर्तमान में चंडीगढ़-देहरादून एनएच 07 पर स्थित है। दिल्ली, चंडीगढ़, देहरादून, शिमला, यमुनानगर, अंबाला व पंजाब के कई शहरों से सीधी बस सेवा उपलब्ध रहती है। सबसे नजदीक के रेलवे स्टेशन अंबाला, यमुनानगर, चंडीगढ़ व देहरादून है। जबकि सबसे नजदीक के एयरपोर्ट चंडीगढ़ व देहरादून है। जिला मुख्यालय नाहन 45 किलोमीटर, यमुनानगर 50 किलोमीटर, चंडीगढ़ 125 किलोमीटर, अंबाला 105 किलोमीटर, शिमला से वाया सराहां-नाहन 180 किलोमीटर तथा देहरादून से 45 किलोमीटर दूर है।
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पांवटा साहिब के आसपास हैं कई गुरुद्वारे
पांवटा साहिब से लगभग 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गुरू तीरगढ़ी साहिब यह वह स्थान है, जहां ऊंचे टीले पर खड़े होकर कलगीधार पातशाह खुद तीर चलाते हुए दुश्मनों की फौजों का सामना करते रहे हैं। गुरु साहिब के यहां तीर चलाने के कारण ही इस स्थान को तीर गढ़ी कहा जाता है। गुरूद्वारा भंगाणी साहिब पांवटा साहिब से 18 किलोमीटर तथा तीरगढ़ी साहिब से 01 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह वह स्थान है, जहां पर कलगीधार पातशाह ने बाइसधार के राजाओं के विरुद्ध पहला युद्ध लड़ा है। यहां गुरु साहिब रात को विश्राम किया करते थे और अगले दिन युद्ध की रूपरेखा तैयार करते थे। हरे भरे खेतों, यमुना नदी व ऊंचे पहाड़ों के बीच एक रमणीय स्थल है। गुरुद्वारा रणथंम साहिब गुरुद्वारा श्रीतीरगढ़ी साहिब व गुरुद्वारा श्री भंगाणी साहिब के बीच में है। भंगाणी साहिब के युद्ध के समय श्री गुरु गोबिंद सिंह के नियुक्त किए हुए सेनापति संगोशाह ने गुरु का हुक्म मानकर अपनी आधी सेना को मैदान में ले जाकर रणथम्म गाड़ कर हुक्म किया कि इससे पीछे नहीं हटना, आगे बेशक बढ़ जाना। गुरु जी की इस रणनीति की वजह से गुरु घर के आत्म बलिदानियों ने दुश्मन की 25 हजार की हर तरह से ट्रेंड़ और हथियारों से लैस फौज का डट कर मुकाबला किया और रणथंम से आगे आने का मौका ही नहीं दिया। गुरु साहिब ने यह युद्ध जीत लिया। इस तरह यह ऐतिहासिक स्थान एक विशेष महत्व रखता है। गुरुद्वारा शेरगाह साहिब पांवटा साहिब से पांच किलोमीटर दूर निहालगढ़ गांव में है। इस स्थान पर श्री गुरु गोबिंद सिंह ने महाराजा नाहन मेदनी प्रकाश और महाराजा गढ़वाल फतह चंद के सामने उस आदमखोर शेर को तलवार से मारा था, जिस ने इलाके में बहुत बड़ा जानी नुकसान कर दिया था। जिस के सामने बड़े-बड़े शूरवीर भी जाने से कतराते थे। कहा जाता है कि यह शेर राजा जैयदर्थ था। जिस ने वीर अभिमन्यु को महाभारत की जंग में छलावे से मारा था और अब शेर की जूनी भुगत रहा था। गुरु जी ने उस की मुक्ति दी थी। गुरुद्वारा दशमेश दरबार साहिब पांवटा साहिब से लगभग 8 किलोमीटर श्री भंगाणी साहिब मार्ग पर गांव हरिपुर के साथ छावनीवाला में स्थित है। यहां पर गुरु जी भंगाणी साहिब के योद्धाओं से विचार विमर्श किया करते थे, इसलिए इस जगह का नाम छावनी वाला पड़ गया। गुरुद्वारा कृपाल शिला पांवटा साहिब गुरुद्वारा से मात्र एक किलोमीटर की दूरी पर है। यहां गुरु गोबिंद सिंह के शिष्य बाबा कृपालदास ने शिला के ऊपर बैठक कर तपस्या की थी। जब गुरु जी महाराजा सिरमौर मेदनी प्रकाश के बुलावे पर नाहन पहुंचे, तो उनका शानदार और श्रद्धापूर्वक स्वागत हुआ। जिस स्थान पर गुरु जी ठहरे वहां ऐतिहासिक यादगार के तौर पर महाराजा ने गुरुद्वारा नाहन साहिब बनावा दिया। गुरुद्वारा टोका साहिब वह ऐतिहासिक स्थान है। जहां पंजाब वर्तमान में हरियाणा से सिरमौर रियासत में दाखिल होते समय गुरु ने पहला पड़ाव किया था। गुरु का यह ऐतिहासिक यादगार स्थान औद्योगिक कस्बे कालाअंब से महज पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। गुरुद्वारा बडूसाहिब खालसा की गुप्त तपोभूमि के नाम से भी प्रसिद्ध है। इस स्थान को वर्ष 1957 में संत अतर सिंह ने खोजा था। यह स्थान राजगढ़ से 20, सराहां से 50 तथा पांवटा साहिब से लगभग 100 किलोमीटर दूर है। कैसे पंहुचे पांवटा साहिब व कहां से कितनी दूरी
पांवटा साहिब शहर वर्तमान में चंडीगढ़-देहरादून एनएच 07 पर स्थित है। दिल्ली, चंडीगढ़, देहरादून, शिमला, यमुनानगर, अंबाला व पंजाब के कई शहरों से सीधी बस सेवा उपलब्ध रहती है। सबसे नजदीक के रेलवे स्टेशन अंबाला, यमुनानगर, चंडीगढ़ व देहरादून है। जबकि सबसे नजदीक के एयरपोर्ट चंडीगढ़ व देहरादून है। जिला मुख्यालय नाहन 45 किलोमीटर, यमुनानगर 50 किलोमीटर, चंडीगढ़ 125 किलोमीटर, अंबाला 105 किलोमीटर, शिमला से वाया सराहां-नाहन 180 किलोमीटर तथा देहरादून से 45 किलोमीटर दूर है।