Happy Birthday Dharmendra: चेहरे पर उम्र ने हस्ताक्षर बेशक किए हैं पर अब तक चमक रहा जज्बे का कागज
Happy Birthday Dharmendra अब किसी खलनायक को दांत पीसकर धमकाते हुए अपने सदाबहार अंदाज में यह नहीं कहते ‘मैं तेरा खून पी जाऊंगा!’ बेशक भारतीय सिनेमा के इस बेहद लोकप्रिय चेहरे पर उम्र हस्ताक्षर कर चुकी है लेकिन जज्बे का कागज अब भी बिंदास चमक रहा है।
By Rajesh SharmaEdited By: Updated: Tue, 08 Dec 2020 11:16 AM (IST)
धर्मशाला, नवनीत शर्मा। Happy Birthday Dharmendra, अब वह किसी खलनायक को दांत पीसकर धमकाते हुए घूंसा जड़ने से पहले अपने सदाबहार अंदाज में यह नहीं कहते, ‘मैं तेरा खून पी जाऊंगा!’ बेशक भारतीय सिनेमा के इस बेहद लोकप्रिय चेहरे पर उम्र हस्ताक्षर कर चुकी है, लेकिन जज्बे का कागज अब भी बिंदास चमक रहा है। पंजाब के गांव डांगो से साहनेवाल और फिर मुंबई तक पहुंचे ही-मैन धर्मेंद्र ने आठ दिसंबर को 85 साल पूरे कर लिए। इंटरनेट मीडिया पर सतत सक्रिय रहने वाले धर्म जी कभी बेटों सनी और बॉबी के बारे में कुछ साझा कर रहे होते हैं तो कभी पोते के बारे में या फिर अपने वीडियो से प्रशंसकों से जुड़े रहते हैं।
धर्मेंद्र केवल आभासीय संसार में ही सरगर्म नहीं हैं, बल्कि अपने खेतों में भी उतने ही सक्रिय रहते हैं, फॉर्महाउस में जिंदगी का स्वागत उसी दिलकश मुस्कान के साथ करते हुए! यह विचित्र संयोग है कि 1960 से लेकर अब तक करीब तीन सौ फिल्मों में बतौर नायक उनका नाम अशोक, अजीत व अजय रहा है। जीवन में उतार-चढ़ाव बहुत देखे, सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का सम्मान कभी नहीं मिला, लेकिन न ‘अशोक’ के चेहरे पर कभी शोक आया और न अजीत या अजय को कोई दुख जीत सका।
कहां से आती है यह ऊर्जा? कौन इस उम्र में भी सींचता है उन्हें? आखिर वह कौन सी खाद है, जो उन्हें हरा रखती है? एक, धर्मेंद्र खेतों को नहीं भूले, दूसरे, वह अपनी बोली नहीं भूले। परदे की जिंदगी जीना सिखाने वाली मुंबई न उनका जाटपना छीन सकी और न उनकी भाषा पर कोई और कलई चढ़ा सकी। तीसरी बात, उस बेपनाह मोहब्बत की है, जो हमेशा उन्हें लोगों से मिली। चौथा, उनमें रोमांस या इश्क का पहलू है। उनके लिए इश्क के कई रूप हैं, प्रेमी-प्रेमिका वाला ही नहीं, देशप्रेम या पिता-पुत्र वाला भी। इसीलिए यह पेड़ अब भी हरा दिखता है। धर्मेंद्र उर्दू जानते हैं सो, उच्चारण भी नफीस है, अंग्रेजी अच्छी-खासी आती है, हिंदी की उन्होंने रोटी खाई है और सम्मान पाया है, लेकिन मां के दूध के साथ मिली पंजाबी को उन्होंने अब भी ऐसे संभालकर रखा है जैसे कोई दीवाली पर पिता से मिले बीस या पचास रुपए के नोट को रखता है, जैसे कोई गरीब अपनी जोड़ी हुई रकम को गिनकर सीने के साथ लगाए रहता है।
धर्मेंद्र वास्तव में लुधियाना के निकट पक्खोवाल के पास के गांव डांगों के रहने वाले हैं। लुधियाना से कुछ ही दूर डांगों गांव में अधिसंख्य देओल गोत्र के ही जट्ट-सिख परिवार हैं। अब यहां धर्मेंद्र के दादा नारायण सिंह के छोटे भाई फुम्मण सिंह के बेटे जागीर सिंह का परिवार रहता है। कुछ साल पहले धर्मेंद्र ने पुश्तैनी मकान व खेत अपने दिवंगत चाचा जागीर के बड़े बेटे शिंगारा सिंह देओल के नाम कर दिए थे।
धर्मेंद्र के पिता केवल कृष्ण सिंह देओल शिक्षक थे। उनका तबादला साहनेवाल प्राइमरी स्कूल में हुआ तो पूरा परिवार साहनेवाल चला गया। त्रिवेणी चौक के साथ पुराने बाजार में उनका घर था। किराए का यह मकान धर्मेंद्र के जाने के बाद दो-तीन बार बिका। वर्तमान में न्यू मॉडल स्कूल साहनेवाल के संचालक के नाम है। चूंकि धर्मेंद्र काफी समय यहां रहे, इसलिए लोग साहनेवाल को ही उनका जन्म स्थान मानते हैं, लेकिन हकीकत में वह अपने ननिहाल में पैदा हुए थे, जो लुधियाना में ही पायल के पास गांव नसराली है। पिता शिक्षक थे तो उनका स्थानांतरण होता रहा और वह परिवार के साथ लुधियाना के ललतो और रायकोट में भी रहे।
धर्मेंद्र ने फिल्मफेयर मैग्जीन न्यू टैलेंट अवॉर्ड जीता था। उसके लिए मालेरकोटला जाकर तस्वीरें खिंचवाई थीं। धर्मेंद्र की शादी 19 साल की उम्र में प्रकाश कौर के साथ हुई थी। वह धर्मेंद्र के साथ मुंबई में रहती हैं और मूलरूप से फगवाड़ा की रहने वाली हैं। सनी और बॉबी उन्हीं के बेटे हैं। उनकी दो बेटियां विजेता और अजिता भी हैं तो वहीं हेमा मालिनी के साथ उनकी दो पुत्रियां एशा और आहना हैं।
बिमल रॉय उन्हें धर्मेंदु कहते थे, जिन्होंने ‘बंदिनी’ फिल्म में देवेंद्र की भूमिका दी। जानने वाली बात यह है कि धर्मेंद्र ने यह फिल्म पहले साइन की थी, लेकिन अर्जुन हिंगोरानी की फिल्म ‘दिल भी तेरा हम भी तेरे’ से धर्मेंद्र के अभिनय की शुरुआत मानी जाती है। वहां से लेकर ही-मैन बनने, कई नायिकाओं के चहेते बनने से लेकर बतौर निर्माता असफल रहने के बावजूद धर्मेंद्र जीवन के मोर्चे पर तैनात हैं। उनकी दीर्घायु की कामना है।
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