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Himachal Pradesh Assembly Election: ...जब अपने वोट से मुख्यमंत्री बने थे शांता कुमार, 1977 का वहह रोचक किस्‍सा

Himachal Pradesh Assembly Election 2022 देवभूमि हिमाचल में पहली बार 1977 में गैर कांग्रेसी सरकार बनी थी। शांता कुमार मात्र एक वोट से मुख्यमंत्री बने थे। मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए हमीरपुर के लोकसभा सदस्य रणजीत सिंह व शांता कुमार के बीच मुकाबला हुआ था।

By Jagran NewsEdited By: Rajesh Kumar SharmaUpdated: Mon, 24 Oct 2022 09:38 AM (IST)
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1977 में शांता कुमार मात्र एक वोट से मुख्यमंत्री बने थे।

मंडी, हंसराज सैनी। Himachal Pradesh Assembly Election 2022, देवभूमि हिमाचल में पहली बार 1977 में गैर कांग्रेसी सरकार बनी थी। शांता कुमार मात्र एक वोट से मुख्यमंत्री बने थे। मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए हमीरपुर के लोकसभा सदस्य रणजीत सिंह व शांता कुमार के बीच मुकाबला हुआ था। आपातकाल समाप्त होने के बाद चौथी विधानसभा के लिए चुनाव हुआ था। कांग्रेस ने 56 सीटों पर चुनाव लड़ा था। जनता पार्टी की लहर में कांग्रेस मात्र नौ सीटों पर सिमट गई थी। विभिन्न छोटे दलों ने एकजुट होकर जनता पार्टी के बैनर तले चुनाव लड़ा था। छोटे दल चुनाव आयोग से पंजीकृत नहीं थे। जनता पार्टी ने 68 सीटों पर चुनाव लड़ा था। 53 सीटों पर जीत मिली थी। छह निर्दलीय विधायकों ने जनता पार्टी को समर्थन दिया था।

बेहद रोचक था चुनाव

विधायक दल का नेता चुनने के लिए हुई बैठक में एक गुट ने सांसद रणजीत सिंह व दूसरे ने शांता कुमार का नाम आगे कर दिया था। दोनों पक्षों के अड़े रहने पर मतदान करवाया गया। ठाकुर रणजीत सिंह व शांता कुमार को 29-29 विधायकों का समर्थन मिला था। अपने एक वोट से शांता कुमार 30 के आंकड़े पर पहुंच गए थे और उन्हें विधायक दल का नेता चुना था। ऊना जिले के कुटलैहड़ हलके के हटली (बंगाणा) निवासी ठाकुर रंजीत सिंह हमीरपुर संसदीय क्षेत्र के सांसद थे और उनका अपना वोट नहीं था।

चार राष्ट्रीय दलों ने लड़ा था चुनाव

चौथी विधानसभा का चुनाव चार राष्ट्रीय दलों ने लड़ा था। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने आठ सीटों पर चुनाव लड़ा था। एक भी सीट पर जीत नहीं मिली थी। चार सीटों पर जमानत जब्त हुई थी। मात्र 2.38 प्रतिशत मत मिले थे। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने तीन सीटों पर चुनाव लड़ा था। तीनों पर जमानत जब्त हुई थी। 0.18 प्रतिशत वोट मिले थे। कांग्रेस ने 56 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे। मात्र नौ सीटों झोली में आई थी। सात प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी। 27.32 प्रतिशत वोट हिस्से में आए थे। जनता पार्टी ने 68 सीटों पर चुनाव लड़ा था। 49.01 प्रतिशत मत मिले थे। 53 सीटें जीती थी। दो प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई थी।

195 निर्दलीय प्रत्याशियों ने आजमाई थी किस्मत

चुनाव में 195 निर्दलीय प्रत्याशियों ने किस्मत आजमाई थी। छह को जीत मिली थी। 167 की जमानत जब्त हुई थी। निर्दलीय प्रत्याशियों को 21.10 प्रतिशत मत मिले थे।

चुनाव मैदान में थे 330 उम्मीदवार

1977 के चुनाव में 330 उम्मीदवार मैदान में थे। इसमें 331 पुरुष व नौ महिला प्रत्याशी शामिल थीं। 252 सामान्य, 68 अनुसूचित जाति व 10 जनजाति वर्ग से संबंधित थे। 183 उम्मीदवार जमानत नहीं बचा पाए थे।

नौ महिलाओं से मात्र श्यामा शर्मा को मिली थी जीत

विद्या स्टोक्स, श्यामा शर्मा, कृष्णा मोहिनी, सरला शर्मा, ऊषा मल्होत्रा, सुनीता देवी महाजन, लीला देवी, सुकृति देवी व शारदा देवी ने चुनाव लड़ा था। नाहन से श्यामा शर्मा विजयी हुई थीं। आठ अन्य को हार का मुंह देखना पड़ा था।

थुरल हलके से सबसे अधिक 14 उम्मीदवार

चुनाव में कांगड़ा जिले के थुरल विधानसभा क्षेत्र से सबसे अधिक 14 उम्मीदवार थे। प्रदेशभर में 58.57 प्रतिशत मतदान हुआ था।

कौल व गुलाब समेत कई नेताओं ने जनता पार्टी से किया था राजनीतिक सफर शुरू

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कौल सिंह ठाकुर, भाजपा के गुलाब सिंह ठाकुर, सत्य देव, निंजू राम व रूप सिंह ठाकुर सहित कई अन्य ने जनता पार्टी से अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की थी।

...तो 1977 में ही ऊना जिले से पहली बार बन जाता कोई सीएम

1977 में अगर तत्कालीन ठाकुर रणजीत सिंह को एक वोट अधिक मिल जाता तो ऊना जिले के कुटलैहड़ हलके से सीएम बनना तय था। हिमाचल के अब तक के इतिहास में ऊना जिले से किसी व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनने का मौका नहीं मिला। बताया जाता है कि जिले के दो विधायकों ने रणजीत सिंह को इसलिए वोट नहीं दिया था क्योंकि अगर वह मुख्यमंत्री चुने जाते तो उन्हें छह माह में सांसद का पद छोड़कर विधानसभा चुनाव लड़ना जरूरी था। अपने राजनीतिक भविष्य से चिंतित जिले के दो विधायकों ने ठाकुर रणजीत सिंह के पक्ष वोट न करते हुए शांता कुमार को वोट दिया था। इस वजह से ऊना जिले के कुटलैहड़ हलके के निवासी ठाकुर रणजीत सिंह मुख्यमंत्री बनने से रह गए थे। शांता कुमार की तरह की ठाकुर रणजीत सिंह के परिवार से कोई भी व्यक्ति राजनीति में सक्रिय नहीं है।

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