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चंबा के साहो में 1100 साल पुराना शिव मंदिर, नंदी के गले में बंधी पत्‍थर की घंटी छिपाए है कई रहस्‍य

Chamba Famous Temple Chandershekhar Saho देवभूमि हिमाचल प्रदेश में जगह-जगह मंदिर हैं। इन मंदिरों की अपनी मान्‍यता व रोचक इतिहास है। जिला चंबा के साहो में स्थित ऐतिहासिक चंद्रशेखर मंदिर पौराणिक काल से ही श्रद्धालुओं की आस्था का मुख्य केंद्र है।

By Rajesh Kumar SharmaEdited By: Updated: Mon, 27 Jun 2022 07:49 AM (IST)
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चंबा के साहो में स्थित ऐतिहासिक चंद्रशेखर मंदिर
साहो, अनूप राणा। Chamba Famous Temple Chandershekhar Saho, देवभूमि हिमाचल प्रदेश में जगह-जगह मंदिर हैं। इन मंदिरों की अपनी मान्‍यता व रोचक इतिहास है। जिला चंबा के साहो में स्थित ऐतिहासिक चंद्रशेखर मंदिर पौराणिक काल से ही श्रद्धालुओं की आस्था का मुख्य केंद्र है। जिस स्थान पर मंदिर की स्थापना हुई है, उसका पौराणिक नाम पद्धर था। चंद्रशेखर मंदिर में शिवलिंग की स्थापना की गई है, जिसकी हर दिन पूजा की जाती है। इसके साथ ही मंदिर परिसर में भगवान लक्ष्मीनारायण, काली माता, हनुमान तथा गणेश मंदिर के अलावा अन्य देवी देवताओं के छोटे-छोटे मंदिर भी स्थापित किए गए हैं। मंदिर के प्रति श्रद्धालुओं की आस्था का पता इसी बात से लगाया जा सकता है कि हर वर्ष यहां पर भगवान के दर्शनों के लिए न केवल स्थानीय, बल्कि जिला सहित प्रदेश व देश के कोने-कोने से श्रद्धालु पहुंचते हैं। मंदिर में श्रद्धालुओं की सबसे अधिक भीड़ महाशिवरात्रि के अलावा जातर मेले के दौरान देखने को मिलती है। इस दौरान यहां एक दिन में श्रद्धालुओं की संख्या पांच से 10 हजार के बीच रहती है। मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु सच्ची श्रद्धा के साथ भगवान से मन्नत मांगता है तो उसकी मन्नत अवश्य पूरी होती है।

1100 साल पुराना है मंदिर, राजा साहिल वर्मन ने किया था निर्माण

साहो स्थित भगवान चंद्रशेखर के मंदिर निर्माण को लेकर भी अभी तक पूरी तरह से तस्वीर साफ नहीं है। कहा जाता है कि यह मंदिर 1100 साल पुराना है और चंबा रियासत के राजा साहिल वर्मन ने इसका निर्माण करवाया था। इस मंदिर के निर्माण से संबंधित शारदा शिलालेख समीप के सराहन गांव से प्राप्त हुआ है। शिलालेख के अनुसार चंद्रशेखर मंदिर का निर्माण सात्यकि नामक स्थानीय राजा ने करवाया था। राजा की एक अत्यंत रूपवती रानी थी, जिसका नाम सोमप्रभा था और सोमप्रभा के सौंदर्य का वर्णन भी इस शिलालेख में एक छंद के रूप में मिलता है।

मंदिर में स्थापित है नंदी की रहस्यमयी मूर्ति

चंद्रशेखर मंदिर साहो में स्थापित नंदी बैल की मूर्ति आज भी रहस्य बनी हुई है। पत्थर की इस मूर्ति में नंदी के गले में बंधी घंटी टन की आवाज देती है। कई वैज्ञानिक भी इस टन की आवाज का रहस्य जानने के लिए यहां माथापच्ची कर चुके हैं, लेकिन नतीजा कोई नहीं निकला। लिहाजा आज दिन तक यह रहस्य बना हुआ है कि एक पत्थर की घंटी को बजाने के बाद भी यह धातु जैसी आवाज क्यों देती है। हालांकि कहा यह भी जाता है कि चट्टान को लेकर नंदी बैल की मूर्ति बनाई गई थी, लेकिन आज भी नंदी की इस मूर्ति को लेकर कई किवंदतियां हैं। बहरहाल, चंबा के इस मंदिर में विराजमान नंदी बैल की मूर्ति आज भी एक शोध का विषय बनी हुई है। रोचक पहलू यह है कि यह प्राचीन मंदिर खुद में कई पौराणिक कथाओं को समेटे हुए है।

जन्माष्टमी और राधा अष्टमी पर भी होता है पवित्र स्नान

साहो के चंद्रशेखर मंदिर में उत्तरी भारत की प्रसिद्ध मणिमहेश यात्रा के दौरान जन्माष्टमी और राधा अष्टमी पर होने वाले पवित्र स्नान की तरह यहां पर भी हजारों की संख्या में श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाते हैं। वहीं, कई श्रद्धालु मणिमहेश यात्रा पर डल झील में स्नान करने के बाद चंद्रशेखर मंदिर स्थित तालाब में भी डुबकी लगाते हैं।

चंद्रशेखर भगवान की स्थापना को लेकर यह कथा भी है प्रचलित

कहते हैं कि एक समय में साल नदी के समीप एक साधु कुटिया बनाकर रहा करते थे। वह प्रतिदिन ब्रह्मा मुहुर्त में उठकर नदी में स्नान करने के लिए जाया करते थे। कुछ दिनों बाद उन्होंने गौर किया कि कोई उनसे पहले भी स्नान कर जाता है, क्योंकि नदी के किनारे चट्टान पर भीगे पैरों के निशान स्पष्ट दिखाई देते थे। सन्यासी को आश्चर्य हुआ कि कौन ऐसा व्यक्ति है, जो उनसे पहले स्नान कर चला जाता है। यह क्रम दो-तीन दिन तक चलता रहा, पर स्नान पर पहले पहुंचने के बाद भी वह यह राज नहीं जान पाए थे। यह सारी रचना भगवान शिव की रची हुई थी। मुनि ने वहां ध्यानमग्न होने का निर्णय लिया। ध्यान टूटने पर उन्होंने तीन मूर्तियों को नदी में छलांग लगाते देखा। उचित समय जानकर मुनि ने अलख जगाई। फलस्वरूप एक मूर्ति वहां से कैलाश पर्वत भरमौर की ओर चली गई, जो मणिमहेश के रूप में विख्यात है। दूसरी ने चंद्रगुप्त के लिंग के रूप में नदी में डुबकी लगाई और लुढ़कते हुए चंबा नगरी में घुम्बर ऋषि के आश्रम के समीप रावी और साल नदी के पास ठहर गई। जबकि तीसरी चंद्रशेखर की वहीं स्नान चैकी पर शिविलंग शिला में बदल गई। इस प्रकार तीनों मूर्तियां भगवान शिव की प्रतिमूर्तियां थीं, जो शिवलिंग में परिवर्तित हो गईं।

ऐसे पहुंचें चंद्रशेखर मंदिर

ऐतिहासिक चंद्रशेखर मंदिर तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को सबसे पहले चंबा मुख्यालय पहुंचना पड़ता है। अन्‍य राज्यों से आने वाले लोग वाया पठानकोट होते हुए यहां पहुंच सकते हैं। जिला मुख्यालय की पठानकोट से दूरी करीब 119 किलोमीटर है। यहां से लोग बसों या टैक्सी के माध्यम से सफर कर सकते हैं। वहीं, जिला मुख्यालय चंबा से चंद्रशेखर मंदिर की दूरी करीब 18 किलोमीटर है। यहां भी बस या टैक्सी के माध्यम से पहुंचा जा सकता है।

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