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Manimahesh: मणिमहेश कैलाश पर्वत का रहस्‍य, जिसने भी की चढ़ने की कोशिश पड़ा मुश्किल में, ये हैं बेहद रोचक किस्‍से

Manimahesh Yatra Mystery मणिमहेश कैलाश पर्वत का रहस्‍य कोई नहीं जान पाया है जिसने भी इसे जानने की कोशिश की वह सकुशल नहीं लौट पाया। चौथे पहर में मणिमहेश कैलाश पर्वत पर चमकने वाली मणि लोगों को यहां चमत्‍कार होने का आभास करवाती है।

By Rajesh Kumar SharmaEdited By: Updated: Sun, 04 Sep 2022 08:01 AM (IST)
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मणिमहेश कैलाश पर्वत का विहंगम दृश्‍य। फोटो- राजेश शर्मा
चंबा, मिथुन ठाकुर। Manimahesh Yatra Mystery, पर्वतारोही दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्‍ट को तो फतह कर लेते हैं। लेकिन जब बात मणिमहेश कैलाश पर्वत की आती है तो सब घुटने टेक जाते हैं। ऐसा नहीं है कि इस पर्वत पर चढ़ने की किसी ने कोश‍िश नहीं की, कईयों ने शिव के निवास तक पहुंचने की कोशिश की, लेकिन वह कभी लौट नहीं पाए। कुछ दूरी पर ही वे पत्‍थर बन गए। इस संबंध में कई चर्चित रोचक किस्‍से हैं। जिसने भी चढ़ने की कोशिश की, वह या तो पत्थर में तबदील हो गया या फिर भूस्खलन की चपेट में आने से उसकी मौत हो गई। जिन्होंने चढ़ने का असफल प्रयास किया, उन्होंने नतमस्तक होकर फिर कभी इसे फतह करने के बारे में नहीं सोचा। यह पवित्र पर्वत हिमाचल प्रदेश के जिला चंबा में उपमंडल भरमौर के तहत आता है। जो मणिमहेश कैलाश पर्वत के नाम से विश्व विख्यात है।

मणिमहेश पर्वत आज भी सबके लिए रहस्य बना हुआ है। इस पर चढ़ने से अदृश्य ताकतें इंसान को रोक देती हैं। जब भी किसी इंसान या अन्य जीव ने चढ़ने की कोशिश की तो मौसम अचानक खराब हो गया। ऐसे में चढ़ाई इतनी कठिन हो गई कि चढ़ने वालों को लौटना पड़ा। कई बार भूस्खलन ने चढ़ाई करने वालों को अपने कदम पीछे खींचने पर मजबूर कर दिया। मणिमहेश सदा से ही श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र रहा है।

गडरिया बन गया था पत्‍थर

मणिमहेश पर्वत को फतह न करने के बारे में कई रोचक कहानियां प्रचलित हैं। कहा जाता है कि कई सौ वर्ष पूर्व एक गडरिये ने भेड़ों के साथ मणिमहेश पर्वत पर चढ़ने की कोशिश की थी। लेकिन, इससे पहले कि वह पर्वत पर अपनी चढ़ाई पूरी कर पाता, पत्थर में तब्दील हो गया। इसी तरह एक कहानी के अनुसार एक कौवे तथा सांप ने भी पर्वत के शिखर पर पहुंचने की कोशिश की। लेकिन, वे भी पत्थर बन गए।

इटली और जापान का दल हुआ था असफल, कइयों की हो गई थी मौत

इटली के दल ने 1965 में चढ़ाई की कोशिश की थी। लेकिन इस दौरान अचानक मौसम खराब हो गया। जिस कारण चढ़ाई काफी कठिन हो गई तथा यह दल कामयाब नहीं हो पाया। 1968 में भारत व जापानी महिलाओं के एक संयुक्त दल ने मणिमहेश पर्वत पर चढ़ने करने की कोशिश की थी। लेकिन अचानक भूस्खलन शुरू हो गया, जिसकी वजह से कुछ लोगों की मौत हो गई, मुश्किल से कुछ लोग जान बचा पाए। कहा तो यह भी जाता है कि इसके ऊपर से आज दिन तक कोई हवाई जहाज या हेलीकाप्टर भी उड़ान नहीं भर पाया है।

चमकती मणि के दर्शन करने रातभर जागते हैं श्रद्धालु

मणिमहेश पर्वत पर रात्रि के चौथे पहर यानी ब्रह्म मुहूर्त में एक मणि चमकती है। इसकी चमक इतनी अधिक होती है उसकी रोशनी दूर-दूर तक दिखाई पड़ती है। रहस्य की बात यह है, कि जिस समय मणि चमकती है, उससे काफी समय के बाद सूर्योदय होता है। श्रद्धालु चमकती मणि को देखने के लिए रातभर जागते हैं। यही कारण है कि इस पवित्र पर्वत को मणिमहेश के नाम से जाना जाता है।  

धन्छौ की कहानी भी है अद्भुत

मणिमहेश यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं को धन्छौ नामक स्थान से होते हुए पवित्र मणिमहेश डल झील तक का सफर करना पड़ता है। धन्छौ के पीछे भगवान शिव की एक कहानी बहुत प्रचलित है। कहानी इस तरह से है कि एक बार भस्मासुर नामक राक्षस ने भगवान भोलेनाथ की कृपा पाने को लेकर कड़ी तपस्या की। भोलेनाथ भस्मासुर की तपस्या से प्रसन्न हो गए तथा उन्होंने उससे वरदान मांगने को कहा। उसने वरदान मांगा कि वह जिसके सिर के उपर हाथ रखे, वह भस्म हो जाए। भगवान भोलेनाथ ने भी भस्मासुर को यह वरदान दे दिया। लेकिन, इस दौरान भस्मासुर के मन में खोट आ गया तथा वह भोलेनाथ को ही भस्म करने के लिए आगे बढ़ा। इस दौरान भगवान वहां से धन्छौ में आकर आश्रय लिया, जहां पर वह भोलेनाथ को खोज नहीं पाया। इसी दौरान भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर भस्मासुर को भस्म कर दिया।

शिव घराट का रहस्य भी हैरान करने वाला

मणिमहेश यात्रा के दौरान शिव घराट के रहस्य से भी श्रद्धालु काफी हैरान होते हैं। धन्छौ व गौरीकुंड के मध्य एक ऐसा स्थान है, जहां पहुंचने पर घराट के घूमने की आवाज स्पष्ट सुनाई देती है। इस दौरान ऐसा लगता है कि मानो उक्त स्थान पर पहाड़ में कोई घराट घूम रहा हो। इस स्थान को शिव घराट के नाम से जाना जाता है। श्रद्धालु यात्रा के दौरान शिव घराट की आवाज सुनने के लिए उक्त स्थान पर पहुंचते हैं।

ऐसे पहुंचे मणिमहेश

मणिमहेश पहुंचने के लिए यूं तो कई रास्ते हैं। लेकिन, सड़क से होते हुए सफर करने पर श्रद्धालुओं को सबसे पहले जिला मुख्यालय चंबा पहुंचना पड़ता है। पठानकोट से चंबा की दूरी 120 किलोमीटर है। यहां से आगे भरमौर तक 64 किलोमीटर का सफर करना पड़ता है। पठानकोट से मणिमहेश की दूरी होती है 200 किलोमीटर से अधिक है। हड़सर से मणिमहेश के लिए पैदल यात्रा शुरू होती है। हड़सर से मणिमहेश डल झील की दूरी 13 किलोमीटर है। पठानकोट, मणिमहेश कैलाश यात्रा के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन है, जबकि कांगड़ा हवाई अड्डा सबसे नजदीकी एयरपोर्ट है। मणिमहेश पहुंचने के लिए अधकारिक तौर पर यात्रा शुरू होने से कुछ दिन पूर्व से लेकर कुछ दिन बाद तक श्रद्धालु यात्रा करते हैं। यह यात्रा करने के लिए अनुकूल समय माना जाता है।

क्या कहते हैं पंडित ईश्वर दत्त शर्मा

भरमौर के प्रसिद्ध पंडित ईश्वर दत्त शर्मा का कहना है कि मणिमहेश कैलाश पर्वत आज दिन तक अजेय है। इस पर चढ़ने के तमाम प्रयास असफल हुए हैं। मणिमहेश कैलाश पर्वत भगवान भोलेनाथ का निवास स्थान है। ऐसे में यहां पर बिना उनकी अनुमति के किसी भी जीव का पहुंचना नामुमकिन है। भेड़पालक हर वर्ष बड़े-बड़े जोत व पर्वतों को पार कर जाते हैं। लेकिन, मणिमहेश पर्वत पर आज दिन तक कोई भी नहीं चढ़ पाया है। भगवान भोलेनाथ में श्रद्धालुओं की आस्था व यहां के रहस्य ही उन्हें मणिमहेश खींचकर ले आते हैं।

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