Shimla Dhalli Tunnel: शिमला की ढली सुरंग के अगले सप्ताह तक मिल जाएंगे दोनों छोर, खास तकनीक से हाे रहा निर्माण
Shimla Dhalli Tunnel राजधानी को ऊपरी शिमला से जोडऩे के लिए ढली टनल के पास दूसरी सुरंग का निर्माण अब अंतिम चरण में पहुंच गया है। इस सुरंग के दोनों छोर को 10 सितंबर तक मिलाने का लक्ष्य रखा गया है।
शिमला, जागरण संवाददाता। Shimla Dhalli Tunnel, राजधानी को ऊपरी शिमला से जोडऩे के लिए ढली टनल के पास दूसरी सुरंग का निर्माण अब अंतिम चरण में पहुंच गया है। इस सुरंग के दोनों छोर को 10 सितंबर तक मिलाने का लक्ष्य रखा गया है। स्मार्ट सिटी की समीक्षा बैठक में प्रधान सचिव ने अधिकारियों को इसका जल्द ही मिलान करने के निर्देश दिए हैं। बैठक में बताया कि 10 से 20 मीटर के बीच की दूरी का काम ही बचा है, इसके बाद दोनों ही किनारे सुरंग के मिल जाएंगे। इस सुरंग का काम चुनाव से पहले पूरा करने का लक्ष्य रखा है।
ढली टनल के साथ एक समानांतर सुरंग का निर्माण किया जा रहा है। 55 करोड़ रुपये की लागत से शिमला की ढली टनल के समानांतर यह डबल लेन सुरंग का निर्माण किया जाएगा। ढली टनल का निर्माण 1852 में हुआ था, ऐसे में यह सुरंग अब काफी पुरानी हो गई है। भविष्य में कोई दुर्घटना न हो, इसके लिए वैकल्पिक व्यवस्था की जा रही है। इस सुरंग को बने हुए 150 साल से ज्यादा का समय हो गया है। इसलिए अब विकल्प के तौर पर दूसरी सुरंग तैयार की जा रही है।
डबल लेन होगी सुरंग, जाम से भी मिलेगी राहत
ये सुरंग पूरी तरह से आधुनिक तकनीक के लैस बनाई जा रही है। डबल लेन बनने वाली सुरंग के दोनों तरफ लोगों को पैदल चलने के लिए रास्ता भी बनाया जाना प्रस्तावित है। डबल लेन के माध्यम से सुरंग में गाडिय़ों के आने-जाने की व्यवस्था होगी। इससे जाम से निजात मिलेगी और लोगों के समय की बचत होगी।
सुरंग के नीचे ही बनाया जाएगा डक्ट
सुरंग के नीचे उपयोगी सेवाओं के लिए केबल बिछाने अथवा पानी या बिजली की पाइप निकालने या संचार केबल निकालने का प्रविधान भी किया जाएगा। अंतराराष्ट्रीयस्तर की कंपनी को ये काम सौंपा है। ये कंपनी दिल्ली, बेंगलुरु, ऋषिकेश सहित अनेक शहरों में मेट्रो एवं सड़क सुविधा के तहत कई सुरंगें बना चुकी है।
सुरंग के ऊपर बने हैं भवन
जिस जमीन पर सुरंग का निर्माण किया जाना प्रस्तावित है। उसके ऊपर भवन बने हैं। भवनों को खोदाई या सुरंग के बनाते समय किसी तरह का खतरा न हो, इसलिए आस्ट्रिया की तकनीक का इस्तेमाल करते हुए इसे बनाया जा रहा है। ये तकनीक सुरंग के ऊपर बने भवनों को पूरी तरह से सुरक्षित रखने में मददगार साबित होगी।