Dharamkot: इजरायली पर्यटकों की पहली पसंद है हिमाचल का यह पर्यटन स्थल, गर्मी में भी होता है ठंडक का अहसास
Dharamkot Himachal Pradesh हिमाचल प्रदेश के पर्यटन स्थलों की सूची में ट्रेंडिंग पर आने वाला धर्मकोट क्षेत्र मैक्लोडगंज में ही आता है। यह इजरायली पर्यटकों की पसंदीदा जगह है। यहां सिर्फ भारत के ही नहीं बल्कि विदेशी पर्यटक भी आते हैं।
धर्मशाला, मुनीष गारिया। Dharamkot Himachal Pradesh, हिमाचल प्रदेश के पर्यटन स्थलों की सूची में ट्रेंडिंग पर आने वाला धर्मकोट क्षेत्र मैक्लोडगंज में ही आता है। यहां सिर्फ भारत के ही नहीं, बल्कि विदेशी पर्यटक भी आते हैं, जिन्हें यह क्षेत्र बहुत भाता है। इसका कारण यह है कि यहां हिमाचल या तिब्बत की ही नहीं, बल्कि विदेशी जीवनशैली भी दिखती है। मैक्लोडगंज से तिब्बती संस्कृति की झलक मिल जाती है। यहां से महज दो किलोमीटर की दूरी पर धर्मकोट नामक एक ऐसा स्थान है, जहां आपको केवल इजरायल के पर्यटक ही नजर आएंगे। यहां के रेस्तरां से लेकर दुकानें सबकुछ इजरायली रंग में रंगे हुए हैं। इस कारण इसे मिनी इजरायल भी कहा जाता है।
धमकोट सिर्फ गर्मी के सीजन के लिए ही नहीं, बल्कि सर्दी के मौसम के लिए भी बेहतर पर्यटन स्थल है। गर्मियों के दिनों में यहां शहर के मुकाबले बहुत कम तापमान होता है। अगर आप धर्मशाला और धर्मकोट के तापमान की बात करें तो धर्मशाला के मुकाबले धर्मकोट में छह से सात डिग्री सेल्सियस तक कम तापमान होता है। ऊंची पहाड़ी पर बसा यह क्षेत्र चारों तरफ से देवदार के पेड़ाें से घिरा है, यही कारण है कि गर्मी के दिनों में पर्यटन स्थल ठंडक का एहसास करवाता है। शनिवार को भी धर्मशाला शहर में तापमान 32 डिग्री रहा, जबकि धर्मकोट में 26 डिग्री रिकार्ड किया गया।
वहीं अगर सर्दियों की बात की जाए तो उस समय भी यहां पर्यटन खींचे चले आते हैं। इसका कारण ये है कि सर्दियों के मौसम में यहां एक तो बार बार बर्फबारी होती है और पर्यटन बर्फबारी का आनंद ले पाते हैं, बल्कि यहां से बर्फ से ढके धौलाधार के खूबसूरत पहाड़ भी बेहद नजदीक से दिखते हैं।
त्रियुंड ट्रैकिंग स्थल का बेस भी माना जाता है धर्मकोट
ट्रैकिंग स्थल त्रियुंड के लिए जाने से पूर्व पर्यटकों को धर्मकोट में ही अपनी जरूरत की सारी सामग्री लेनी पड़ती है। यहां से त्रियुंड 10 किलोमीटर दूर है। हालांकि धर्मकोट से करीब डेढ़ से दो किलोमीटर ऊपर गलू क्षेत्र है, जहां तक बाइक पहुंच जाती है, लेकिन गलू में सिर्फ एक दो छोटी दुकानें हैं। इसी कारण धर्मकोट को त्रियुंड का बेस कैंप भी कहा जाता है।
ग्लोबल विलेज की संज्ञा भी पा चुका है धर्मकोट
धर्मकोट को मिनी इजरायल, ग्लोबल विलेज व ग्लोबल स्ट्रीट का नाम भी दिया जा चुका है। यहां अलग अलग सोच का संगम है। पर्यटकों की जीवन शैली, खानपान अलग है। विकसित देशों का पर्यटक यहां सभ्यता के हिसाब से पाषाण सभ्यता में चला जाता है। यहां पहुंचने वाले पर्यटक चिंतन व मनन में लीन रहते हैं। कुछ लोग इसे नशे का गढ़ भी कहते हैं, लेकिन ऐसा अब बहुत कम नजर आता है।
यहां है कबाद हाउस, सिर्फ इजरायली को ही मिलता है प्रवेश
धर्मकोट में इजरायली मूल के लोगों का ही अधिक आवागमन है। यहां इन लोगों का कबाद हाउस यानी पूजा स्थल है। कबाद हाउस में केवल इजरायल से आने वाले लोग ही भीतर प्रवेश कर सकते हैं, जबकि भारतीयों के भीतर जाने पर पूर्ण प्रतिबंध है। यह गांव वैसे तो भारतीय है, लेकिन यहां के हर घर में विदेशी दिखना आम है। यहां आपको इजरायली मूल के ही लोग देखने को मिलेंगे। कोई रेस्तरां में खाना खाते हुए तो कोई यहां मौजूद आभूषणों की दुकानों में आभूषण खरीदते हुए तो कोई यहां के पहाड़ी शैली में निर्मित घरों से झांकते हुए। इसके अलावा योग, ध्यान व रेकी के कई केंद्रों में भी इजरायल के पर्यटक ही दिखते हैं। धर्मकोट के पूर्व मनोनीत पार्षद अशोक पठानिया बताते हैं कि 1990 में यहां पर्यटक आना शुरू हुए थे और अब हर साल यहां आते रहते हैं। यह लोग भीड़ भाड़ से दूर शांति में रहना पसंद करते हैं इसलिए यहां देवदार से घिरे इलाके में रहते हैं।
कैसे पहुंचे
यहां पहुंचने के लिए सड़क व वायु मार्ग की सुविधा है। धर्मशाला व मैक्लोडगंज के लिए दिल्ली, पठानकोट, चंडीगढ़, गंगानगर व जम्मू से सीधी बस सेवा है। इसके अलावा धर्मशाला से 15 किलोमीटर दूरी पर गगल नामक स्थान पर कांगड़ा एयरपोर्ट भी है। यहां रोजाना दिल्ली से फ्लाइट आती हैं। रेल मार्ग के लिए धर्मशाला से ब्राडगेज का सबसे बड़ा रेलवे स्टेशन 86 किलोमीटर दूर पठानकोट में है। पठानकोट से जोगेंद्रनगर के बीच नैरोगेज रेलमार्ग के जरिये भी पर्यटक टॉय ट्रेन का आनंद लेते हुए चामुंडा मार्ग या कांगड़ा रेलवे स्टेशन से धर्मशाला तक पहुंच सकते हैं।
कहां ठहरें
धर्मशाला, मैक्लोडगंज, भागसूनाग, नड्डी व धर्मकोट में कई होटल, गेस्ट हाउस मौजूद हैं। यहां आराम से ठहरा जा सकता है। लेकिन पर्यटन सीजन में यहां पहले से बुकिंग करवाकर आना ही बेहतर होता है।