Move to Jagran APP

Himachal Statehood Day: एक राज्य की कहानी, जिसने भाषा की लड़ाई लड़कर अपनी पहचान पाई

Himachal Statehood Day 25 जनवरी 1971 को रिज मैदान शिमला में बर्फ के गिरते फाहों के बीच हिमाचल के पूर्ण राज्य बनने की घोषणा हुई थी। इस ऐतिहासिक मौके को यादगार बनाने के लिए यहां तैयारियां चल रही हैं। एक राज्य की कहानी जिसने भाषा की लड़ाई लड़कर पहचान पाई।

By Rajesh Kumar SharmaEdited By: Updated: Mon, 25 Jan 2021 08:39 AM (IST)
Hero Image
25 जनवरी 1971 को शिमला के रिज मैदान में हिमाचल के पूर्ण राज्य बनने की घोषणा हुई थी।
धर्मशाला, नवनीत शर्मा।  मैं हिमाचल प्रदेश हूं। वही जिसे आप देश के पहले परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा की बहादुरी के कारण जानते हैं। मैं वही हिमाचल हूं जिसे आप हरी-भरी वादियों और बर्फ से ढके पहाड़ों, सेब, नाशपाती, पन बिजली या कुछ धरोहरों के लिए जानते हैं। मुझे गर्व है कि मुझे आप अब अटल रोहतांग सुरंग के कारण भी जानते हैं।

लीजिए...मैंने आपके साथ अपनी भाषा में सीधे ही बात शुरू कर दी... कोई कारण नहीं बताया कि मैं आपके रूबरू क्यों हूं आज? दरअसल, आज मैं पूर्ण राज्य के रूप में अपनी यात्रा के 50 वर्ष पूरे कर रहा हूं। स्वर्ण जयंती है न!!! 25 जनवरी, 1971 को मैं पूर्ण राज्य बना था। नक्शा देखिए ध्यान से देश का। कंठ हूं मैं देश का। और यह कंठ कतई कंठ न होता अगर मेरी भाषा मेरा तर्क न होती।

मेरी आयु का गणित कई प्रकार से लगाया जा सकता है। जब आजादी के बाद 15 अप्रैल, 1948 को 30 रियासतों ने मिल कर मेरे आंगन को आकार दिया, मैं अस्तित्व में आया था। उस कोण से मेरी उम्र 73 वर्ष है। पार्ट सी राज्य के रूप में मेरी आयु 70 वर्ष है। लेकिन एक और महत्वपूर्ण दिन है 1 नवंबर, 1966 का। जब मेरे पुरखों की भाषा का संघर्ष रंग लाया था और पंजाब के कई पहाड़ी क्षेत्र मुझे मिल गए थे। इसीलिए एक नवंबर मेरा पहाड़ी भाषा दिवस है। डॉ. गौतम व्यथित तो कहते हैं कि भाषायी आधार पर ही हिमाचल को अलग पहचान मिली थी। वह न हुआ होता तो मैं आधा-अधूरा होता और पूर्ण राज्य कैसे बनता?

आप तो जानते ही हैं, भाषा केवल भाषा नहीं होती, उसके साथ परिवेश, संस्कृति, संस्कार और मिट्टी की महक भी होती है। जब पंजाब के लोग पंजाबी सूबे के लिए संघर्ष कर रहे थे और हिंदी भाषी क्षेत्र अलग प्रदेश मांग रहे थे। पंजाब की मंशा थी कि एक बड़ा पंजाब बनाया जाए, उसमें हरियाणा के गैर पंजाबी क्षेत्र भी आएं और हिमाचल तो विलीन ही हो जाए पंजाब में। पंजाब में रला राम एमएलए थे तलवाड़ा के रहने वाले, हिसार में बलवंत राय थे। एक पंजाबी का पैरोकार, दूसरा हिंदी का। इसी तरह एक फतेह सिंह थे जिन्होंने पंजाबी सूबे के पक्ष में दो तीन बार 35-40 दिन का अनशन किया। दूसरे योगीराज सूर्यदेव थे हरियाण वाले, जब-जब फतेह सिंह अनशन पर बैठते, उतने ही दिन योगीराज सूर्यदेव हिंदी भाषी क्षेत्र के लिए अनशन पर बैठते। एक राज्य पुनर्गठन आयोग भी था। आयोग चाहता था कि एक बड़ा पंजाब बने, प्रशासन में आसानी रहेगी। भला हो एक सदस्य जस्टिस फजल अली का जिन्होंने बड़े पंजाब के तर्क को नकारा और हिमाचल के पक्ष में बात की। यह 1956 की बात है। लेकिन तब मुझे बनाया गया केंद्र शासित प्रदेश।

यह भी पढ़ें: Himachal Statehood Day: राज्‍यपाल ने ध्‍वजारोहण कर किया परेड का निरीक्षण, अटल बिहारी की प्रतिमा पर पुष्‍पांजलि

एक प्रो. चंद्रवर्कर थे, धर्मशाला के विधायक भी रहे। वह पहले डीएवी कॉलेज होशियारपुर में अंग्रेजी पढ़ाते थे। उन्होंने एक किताब लिखी, 'हम पहाड़ी लोगÓ इसमें जिक्र था कि पंजाब सरकार पहाड़ी क्षेत्रों में विकास के लिए उदासीन है। खुल कर नहीं कहा लेकिन कुछ ऐसा संकेत दिया कि हिमाचल अलग भी हो सकता है। मुख्यमंत्री थे प्रताप सिंह कैरों। उन्हेंं लगा कि पंजाब से अलग होने के संदर्भ में यह लड़का समस्या बन सकता है। चंद्रवर्कर को कैरों ने सहायक लोक संपर्क अधिकारी बना दिया ताकि वह कुछ बोल न सके। बाद में वह जिला लोक संपर्क अधिकारी बने। मेरी बातों की पुष्टि पूर्व राज्य निर्वाचन आयुक्त केसी शर्मा भी कर सकते हैं। ऐसी कई आवाजें थी जो हिंदी, पहाड़ी भाषा और संस्कृत-परिवेश के आधार पर हिमाचल को साकार होता देखना चाहती थीं। मेरे निर्माता के रूप में प्रसिद्ध डॉ यशवंत सिंह परमार की आवाज तो बेहद मुखर थी।

अंतत: 1971 में मुझे महान भारत के 18वें पूर्ण राज्य के रूप में सम्मान मिला, पहचान मिली। इस बीच कितने ही मुख्यमंत्री देखे, कितनी ही सरकारें आईं। एक बात का गर्व है कि मेरे सारे मुख्यमंत्री शिक्षित रहे हैं। मेरे कई सितारे राजनीति, खेल, स्वास्थ्य, शिक्षा, प्रशासन, न्यायपालिका, सिनेमा, पर्यटन और सिनेमा के क्षेत्र में चमक रहे हैं। कुछ तो विदेश में भी हैं। मैं वतन पर कई जवान देवदार न्योछावर करता आया हूं। श्रीनगर के बडग़ाम से लेकर कारगिल की चोटियों पर 'यह दिल मांगे मोरÓ मेरे ही परमवीरों का जज्बा है। मैं शांति के नोबल पुरस्कार विजेता दलाईलामा का मेजबान भी हूं। मैं देवभूमि हूं, मैं वीरभूमि हूं। आप आइए, आपका स्वागत है, बस मेरे हरा भरा हिमाचल बने रहने में मदद कीजिएगा।

यह भी पढ़ें: Himachal Statehood Day: 651 रुपये से दो लाख प्रति व्‍यक्‍त‍ि आय तक पहुंचा हिमाचल, पर्यटन राज्‍य की ओर अग्रसर

यह भी पढ़ें:  Himachal Statehood Day: प्रदेश का सवा लाख युवा सेना में सेवारत, चार से 83 फीसद हुई साक्षरता दर

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।