Manimahesh Yatra 2022 : मणिमहेश कैलाश में चौथे पहर दिव्य ज्योति के रूप में दर्शन देते हैं महादेव
Manimahesh Yatra 2022 महादेव मणिमहेश कैलाश पर्वत पर जन्माष्टमी और राधा अष्टमी के दिन चौथे पहर दिव्य ज्योति (मणि) के रूप में दर्शन देते हैं। कैलाश पर्वत पर मणि चमकती है तो पूरी डल झील व साथ का क्षेत्र भगवान भोले नाथ के जयकारों और उद्घोष से गूंज उठता है।
चंबा, मान ङ्क्षसह वर्मा।
Manimahesh Yatra 2022, महादेव मणिमहेश कैलाश पर्वत पर जन्माष्टमी और राधा अष्टमी के दिन, चौथे पहर दिव्य ज्योति (मणि) के रूप में दर्शन देते हैं। इस स्वर्णिम लम्हे के इंतजार में कई शिवभक्त रातभर जागते रहते हैं। चौथे पहर कैलाश पर्वत पर मणि चमकती है तो पूरी डल झील व साथ का क्षेत्र भगवान भोले नाथ के जयकारों और उद्घोष से गूंज उठता है।
मान्यता है कि कैलाश पर्वत पर भगवान भोले नाथ शेषमणि के रूप में विराजमान हैं। भगवान शिव लोगों को दर्शन भी मणि के रूप में देते है। इसलिए इस धार्मिक स्थल का नाम मणिमहेश पड़ा है। हिमालय की धौलाधार, पीर पंजाल व जास्कर पर्वत शृंखलाओं से घिरा कैलाश पर्वत मणिमहेश-कैलाश के नाम से जाना जाता है।
टरकोइज माउंटेन भी कहा जाता है कैलाश पर्वत को
जन श्रुती के अनुसार भगवान शंकर ने पार्वती के साथ रहने के लिए मणिमहेश पर्वत की रचना की थी। कैलाश पर्वत को टरकोइज माउंटेन (turquoise mountain) भी कहा जाता है। टरकोइज का अर्थ है नीलमणि। सूर्योदय के समय क्षितिज में लालिमा छा जाती है। लेकिन मणिमहेश में कैलाश पर्वत के पीछे से जब सूर्य उदय होता है, तो सारे आकाश मंडल में नीलिमा छा जाती है। सूर्य के प्रकाश की किरणें नीले रंग में निकलती है। माना जाता है कि कैलाश पर्वत पर नीलमणि के गुण-धर्म मौजूद है। जिनसे टकराकर प्रकाश की किरणें नीली हो जाती है।
पर्वत पर चढऩे से अदृश्य शक्तियां रोक लेती हैं कदम
कहा जाता है कि कैलाश पर्वत पर चढ़ाई करने के लिए कई बार प्रयास हो चुके हैं, लेकिन यहां अदृश्य शक्तियां है, जो कदम रोक देती हैं। वर्ष 1968 में इंडो-जापान की एक टीम ने एक महिला के नेतृत्व में पर्वत पर चढऩे का प्रयास किया था, लेकिन सफलता नहीं मिली। जन श्रुति के मुताबिक एक गडरिए ने अपनी भेड़ों के साथ पर्वत पर चढने की कोशिश की थी, लेकिन वह पर्वत की चोटी तक पहुंचने से पहले ही पत्थर के रूप में तब्दील हो गया था। जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण भी कैलाश पर्वत पर छोटे-छोटे पत्थरों के रूप में देखने को मिलता है।
मणिमहेश डल झील की खोज
समुद्र तल से करीब 13746 फीट की ऊंचाई पर स्थित मणिमहेश झील की खोज सबसे पहले बाबा चरपट नाथ ने की थी। किवदंती है कि बाबा चरपट नाथ ने ही छठी शताब्दी में मणिमहेश की पवित्र डल झील के किनारे शिवलिंग की स्थापना की थी। बताया जाता है कि यह शिवलिंग भरमौर रियासत के तत्कालीन राजा मेरू वर्मन को राजस्थान रियासत के एक राजा ने भेंट किया था। इसके बाद राजा मेरू वर्मन ने इस शिवलिंग को बाबा चरपट नाथ को दिया और उन्होंने इसे राधाष्टमी के दिन मणिमहेश झील के किनारे विधिवत पूजा-अर्चना के बाद स्थापित कर दिया। यही कारण है जिला मुख्यालय स्थित चरपट से राधा अष्टमी के शाही स्नान के लिए हर वर्ष छड़ी मणिमहेश के लिए निकलती है। वहीं मणिमहेश पहुंचने पर वहां स्थापित शिवलिंग पर जल चढ़ाकर पूजा-अर्चना करते हैं
ब्रह्माणी नहाए बिना यात्रा अधूरी
किंवदंतियों के अनुसार ब्रह्म्पुर के नाम से विख्यात भरमौर में ब्रह्मा की पुत्री ब्रह्माणी का वास हुआ करता था। भगवान भोले नाथ ने माता ब्रह्माणी को यह वरदान दिया था कि जो भी व्यक्ति मेरे दर्शन के लिए मणिमहेश आएगा, वह पहले माता ब्रह्माणी के दर्शन करेगा, तभी उसकी यात्रा सफल होगी। यही कारण है कि यात्रा पर आने वाले श्रद्धालु पहले ब्रह्माणी में नहाते हैं फिर मणिमहेश के लिए रवाना होते हैं। वहीं मार्ग में पडऩे वाले गौरीकुंड में महिलाएं ही स्नान करती हैं। जबकि भरमौर में स्थित चौरासी मंदिरों का समूह चौरासी सिद्धों की तपस्थली होने के चलते इसे चौरासी कहा जाता है।