हिमाचल प्रदेश के सोलन के डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विवि के वैज्ञानिकों ने कांगड़ा चाय को स्वास्थ्यवर्धक अचार का रूप दे दिया है। यह किण्वित (फरमेंटिड) कांगड़ा चाय अचार आपके भोजन के स्वाद बढ़ाने के साथ-साथ कई प्रकार के स्वास्थ्य लाभ भी प्रदान करेगा। इस अनुसंधान से आधुनिक स्वास्थ्य लाभों के साथ जोड़ते हुए कांगड़ा चाय के लिए नए रास्ते भी खुलेंगे।
मनमोहन वशिष्ठ, सोलन। कांगड़ा की हरी पत्तीदार चाय की चुस्कियां लोग बहुत ही आनंद के साथ लेते हैं लेकिन अब इसको अचार के रूप में खाया भी जा सकेगा। आमतौर पर चाय का आनंद अक्सर एक ताजा पेय के रूप में लिया जाता है, लेकिन नौणी स्थित डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विवि के वैज्ञानिकों द्वार कांगड़ा चाय को स्वास्थ्यवर्धक अचार का रूप देने में कामयाब हुए है।
यह किण्वित (फरमेंटिड) कांगड़ा चाय अचार आपके भोजन के स्वाद बढ़ाने के साथ-साथ कई प्रकार के स्वास्थ्य लाभ भी प्रदान करेगा। इस अनुसंधान से आधुनिक स्वास्थ्य लाभों के साथ जोड़ते हुए कांगड़ा चाय के लिए नए रास्ते भी खुलेंगे। भारत का चाय उद्योग देश के सबसे पुराने व संगठित कृषि आधारित क्षेत्रों में से एक है और 180 वर्षों से अधिक समय से वैश्विक चाय बाजार में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी रहा है।
भारत चाय का अग्रणी उत्पादक और उपभोक्ता है। हमारा देश वैश्विक स्तर पर दूसरा सबसे बड़ा चाय उत्पादक है, जिसका 563.98 हजार हेक्टेयर से सालाना उत्पादन लगभग 1.23 मिलियन टन है। हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा घाटी में लगभग 2,300 हेक्टेयर में चाय की खेती की जाती है, जिससे हर साल 650 से 700 मिलियन टन की पैदावार होती है। यह उत्पादन मुख्यतः 90 प्रतिशत काली चाय जबकि शेष ग्रीन-टी है।
कई तरह की बीमारियों को कम करने में होगा सहायक
थाईलैंड में मियांग और म्यांमार में लाफेट जैसे पारंपरिक किण्वित चाय उत्पादों से प्रेरणा लेते हुए विवि के खाद्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के वैज्ञानिकों और विवि के माइक्रोलोजिस्ट ने म्यांमार की इन सर्विस एमएससी छात्रा हटेट म्याज हटवे ने कांगड़ा चाय की पत्तियों का उपयोग करके सफलतापूर्वक एक अनूठा अचार बनाया है।
आमतौर पर भारत में चाय की पत्तियों को सुखाकर केवल चाय बनाने के लिए उपयोग किया जाता है। हालांकि हाल के अध्ययनों से पता चलता है कि किण्वित रूप में चाय का सेवन इसकी उच्च पॉलीफेनोल कंटेंट, जिसमें शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट गुण होने के कारण कई स्वास्थ्य लाभ प्रदान कर सकता है। ये एंटीऑक्सीडेंट संभावित रूप से त्वचा, लिवर, फेफड़े, गैस्ट्रोइंटेस्टिनल ट्रैक्ट, ब्लैडर और स्तन कैंसर के खतरे को कम कर सकते हैं।
ये भी पढ़ें: Himachal Accident News: मणिमहेश यात्रा पर जा रहे श्रद्धालुओं की कार खाई में गिरी, पंजाब के व्यक्ति की मौतशोधकर्ताओं ने पाया कि कांगड़ा चाय की पत्तियों से बने लाफेट और लाफेट हनाट में उनके म्यांमार समकक्ष की तुलना में उल्लेखनीय एंटीऑक्सीडेंट गतिविधि 18.24 प्रतिशत, उच्च पॉलीफेनोल सामग्री (107.84 मिलीग्राम/100 ग्राम), महत्वपूर्ण टैनिन नौ प्रतिशत और कम कैफीन 8.78 प्रतिशत प्रदर्शित हुई। इस किण्वित अचार या लाफेट हनाट ने एम्बिएंट तापमान पर 30 दिनों की तुलना में 60 दिनों के रेफ्रिजरेटर लाइफ के साथ बेहतर माइक्रोबियल स्थिरता का प्रदर्शन किया।
ऐसे तैयार होता है पत्तियों से अचार
विवि के अनुसंधान निदेशक डॉ. संजीव चौहान ने बताया कि कांगड़ा चाय एक ज्योग्राफिकल इंडिकेटर चाय है, जो अपने बायोएक्टिव कंपाउण्ड के साथ अपनी विशिष्ट सुगंध व स्वाद के लिए जानी जाती है। इसका उपयोग मुख्य रूप से पेय के रूप में किया जाता है। विवि की टीम ने कांगड़ा चाय की पत्तियों का उपयोग करके पारंपरिक म्यांमार व्यंजनों लाफेट और लाफेट हनाट के लिए को संशोधित किया।
लाफेट बनाने के लिए ताजा चाय की टहनियों (दो पत्तियां और एक कली) को खाद्य-ग्रेड नमक के साथ प्राकृतिक और प्रेरित किण्वन से पहले धोया जाता है। भाप में पका कर रोल किया जाता है। यह प्रक्रिया ऑस्मोसिस के माध्यम से पत्तियों से रस निकालती है, जिसे बाद में निष्फल ग्लास जार में पैक किया जाता है और 60 दिनों के लिए एम्बिएंट तापमान पर रखा जाता है। वहीं लाफेट हनाट, किण्वित अचार, किण्वित लाफेट को विभिन्न खाद्य पदार्थों के साथ मिलाकर बनाया जाता है। फिर इस मिश्रण को निष्फल जार में संग्रहित किया जाता है और दो दिनों के लिए कमरे के तापमान पर किण्वित होने दिया जाता है।
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विवि कांगड़ा चाय के उत्पादों की श्रृंखला का विस्तार करने के लिए प्रतिबद्ध है। विकसित किए गए नए उत्पाद हमारी मानकीकृत तकनीक का उपयोग करके स्थानीय किसानों द्वारा निर्मित किए जा सकते हैं। यह पहल न केवल उद्यमियों के लिए मुनाफा बढ़ाएगी बल्कि उपभोक्ताओं के लिए स्वस्थ विकल्प भी प्रदान करेगी। विवि इस उत्पाद की बेहतर शेल्फ लाइफ प्राप्त करने के लिए तकनीक पर कार्य कर रहा है। किसान व उद्यमी इस तकनीक को नोमिनल फीस पर विवि से हासिल कर सकते हैं।
- प्रो. राजेश्वर चंदेल, कुलपति नौणी विवि।
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