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Kugti Temple: 136 दिन बाद खुल गए कार्तिक स्‍वामी मंदिर के कपाट, जयकारों से गूंज उठा कुगती

Kugti Kartik Swami Temple भरमौर के कुगती में कार्तिक स्वामी मंदिर के कपाट 136 दिन बाद आज 14 अप्रैल को बैसाखी के दिन खुल गए। मंदिर के कपाट 30 नवंबर को बंद कर दिए थे। बैसाखी के दिन लोगों को भगवान कार्तिक के दर्शन किए।

By Rajesh Kumar SharmaEdited By: Updated: Thu, 14 Apr 2022 12:49 PM (IST)
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भरमौर के कुगती में कार्तिक स्वामी मंदिर के कपाट 136 दिन बाद आज खुल गए।

भरमौर, संवाद सहयोगी। Kugti Kartik Swami Temple, भरमौर के कुगती में कार्तिक स्वामी मंदिर के कपाट 136 दिन बाद आज 14 अप्रैल को बैसाखी के दिन खुल गए। मंदिर के कपाट 30 नवंबर को बंद कर दिए थे। बैसाखी के दिन लोगों को भगवान कार्तिक के दर्शन किए। भगवान कार्तिक स्‍वामी के जयकारों से कुगती क्षेत्र गूंज उठा। सैकड़ों श्रद्धालु कुगती पहुंचे हैं। कार्तिक स्‍वामी गद्दी समुदाय के लोगों के अराध्‍य देवता हैं। मंदिर के कपाट खुलने का लोगों को अरसे से इंतजार रहता है।

हिमाचल के जिला चंबा के जनजातीय इलाके भरमौर में आज भी लोग विज्ञान पर भरोसा करने के बजाय देवताओं की शरण में जाते हैं। देवता सालभर के मौसम की भविष्यवाणी करते हैं। लोग भी इसे मानते हैं और उसी अनुरूप फसलों की देखरेख और जीवनयापन करते हैं। ऐसा सदियों से चला आ रहा है। कबायली क्षेत्र भरमौर के कुगती में उत्तर भारत का प्रसिद्ध शिव पुत्र कार्तिक देव का मंदिर है। हर साल 30 नवंबर को कार्तिक स्वामी मंदिर के कपाट बंद हो जाते हैं। कपाट बंद करने से पहले मंदिर के गर्भगृह में मूर्ति के सामने पानी से भरी एक गड़वी (कलश) को रखा जाता है। इस बार भी ऐसा ही किया गया।

अगर कलश आधा भरा मिला तो कम बारिश की संभावना रहती है और कलश में पानी पूरा सूख गया हो तो अकाल जैसी स्थिति इलाके में आने की संभावना रहती है। सदियों से यह परंपरा चली आ रही है। कई बार ऐसा हुआ कि कलश में एक बूंद पानी की कम नहीं हुई है। कुछेक बार पानी खत्म भी मिला तो ज्यादातर सामान्य रहता है। कार्तिक स्वामी के प्रति लोगों की गहरी आस्था है। लोग अपना जीवन यापन उसी अनुरूप करते हैं।

बर्फबारी पर स्वर्ग लोक चले जाते हैं देवता

मंदिर के पुजारी ने बताया मान्यता है कि देवभूमि पर प्रकृति बर्फ की चादर ओढ़कर सुप्त अवस्था में चली जाती है। देवता भी स्वर्गलोक की ओर प्रस्थान कर जाते हैं। इस अवधि के बीच मंदिर की तरफ रुख करने वालों के साथ अनहोनी की भी आशंका बनी रहती है। इसलिए मंदिर में न दर्शन होते हैं और न ही पूजा-पाठ। मंदिर में रखे कलश के प्रति लोगों की गहरी आस्था है।

सात किलोमीटर पैदल सफर कर पहुंचते हैं मंदिर तक

जिला मुख्यालय चंबा से बस के माध्यम से 76 किलोमीटर सफर कर कुगती पहुंचा जा सकता है। कुगती से आगे सात किलोमीटर पैदल चल कर मंदिर आता है। कई श्रद्धालु पैदल लाहुल-स्पीति से कुगती जोत पार कर मंदिर तक पहुंचते हैं।

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