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Dhan Singh Thapa: मौत को मात देकर चीन से लौटे थे मेजर धन सिंह थापा, बहादुरी के लिए मिला था परमवीर चक्र

Major Dhan Singh Thapa शिमला में पैदा हुए मेजर धन सिंह थापा को बहादुरी के लिए परवीर चक्र से नवाजा गया है। उनके शौर्य के किस्से आज भी सेना के जवानों को बताए जाते हैं। धन सिंह थापा का बचपन से ही थापा सेना का हिस्सा बनना चाहते थे।

By Richa RanaEdited By: Updated: Tue, 06 Sep 2022 07:42 AM (IST)
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शिमला में पैदा हुए मेजर धन सिंह थापा को बहादुरी के लिए परवीर चक्र से नवाजा गया है।

शिमला,जागरण संवाददाता। Major Dhan Singh Thapa, शिमला में पैदा हुए मेजर धन सिंह थापा को बहादुरी के लिए परमवीर चक्र से नवाजा गया है। उनके शौर्य के किस्से आज भी सेना के जवानों को बताए जाते हैं। शिमला के एक नेपाली परिवार में 04 जून 1928 को पैदा हुए धन सिंह थापा का बचपन से ही थापा सेना का हिस्सा बनना चाहते थे। बड़े होकर 28 अगस्त 1949 को उन्होंने अपनी इस इच्छा को पूरा किया। यह वह तारीख थी, जब थापा 8 गोरखा राइफ़ल्स की पहली बटालियन का हिस्सा बनाए गए। 20 अक्टूबर 1962 चीनी सैनिकों ने चुशुल एयरफील्ड पर कब्जे के इरादे से लद्दाख की एक पोस्ट पर तोप और मोर्टार से बम दागने शुरू कर दिए।

चीन की इस घुसपैठ का सामना करने के लिए पैंगांग झील के उत्तरी तट पर मौजूद श्रीजप-1 पोस्ट पर गोरखा राइफल्स के कुछ जवान मौजूद थे। जिन्होंने अपने शौर्य से दुश्मन को एक बार नहीं, बल्कि तीन बार पीछे हटने पर मजबूर किया। दुर्भाग्य से वह इस पोस्ट को नहीं बचा पाए और बंदी बना लिए गए। हालांकि, भारतीय सेना को इसकी खबर नहीं थी। इस पोस्ट पर चीनी हमले के साथ ही उसने मान लिया था कि उनके गोरखा जवान शहीद हो गए होंगे। यहां तक कि इस टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे मेजर धन सिंह थापा के परिवार ने उनका अंतिम संस्कार भी कर दिया था। मगर भारत-चीन युद्ध के बाद मेजर थापा चीन से मौत को मात देकर वापस लौटे और गोरखा रायफल्स की शान बने।

1962 के भारत-चीन युद्ध में दुश्मन से दो-दो हाथ

अपनी नियुक्ति के दिन से ही थापा ने सभी को प्रभावित किया। शौर्य के किस्से उनके साथियों के बीच खू़ब मशहूर थे। सीनियर अधिकारियों द्वारा दी गई हर जिम्‍मेदारी को उन्होंने बखूबी निभाया। यही कारण रहा कि हिमालय क्षेत्र में विवादित सीमाओं पर चीनी सेना की घुसपैठ बढ़ी और भारतीय सेना को इसे रोकने के लिए कहा गया, तो थापा इस अभियान का हिस्सा बने। 1962 में फ़ारवर्ड पालिसी के तहत भारतीय सेना द्वारा विवादित क्षेत्रों पर कई छोटी-छोटी पोस्ट तैयार की गई। ऐसी उम्मीद थी कि भारत के इस कदम के बाद चीनी सेना हमला नहीं करेगी। मगर चीन के दिमाग में कुछ और चल रहा था। चीनी सेना ने भौगोलिक परिस्तिथियों का लाभ उठाया और युद्ध की शुरुआत कर दी, जो इतिहास के पन्नों में काले अक्षरों में दर्ज हुआ।

1962 के भारत-चीन युद्ध में दुश्मन से दो-दो हाथ

इस युद्ध के दौरान धन सिंह थापा 8 गोरखा राइफ़ल्स की पहली बटालियन के 27 अन्य साथियों के साथ पैंगांग झील के उत्तरी तट पर स्थित सृजप पोस्ट पर तैनात थे। उन्हें अपने आसपास के करीब 48 वर्ग किमी के क्षेत्र को चीनी सैनिकों से सुरक्षित रखना था। वह अपनी पोस्ट पर मुस्तैद थे।

तभी 20 अक्टूबर, 1962 को चीनी सेना के करीब 600 सैनिकों ने तोपों और मोर्टारों की मदद से थापा की पोस्ट पर धावा बोल दिया. गोरखा दुश्मन के साथ पूरी ताकत से लड़े और बड़ी संख्या में चीनी सैनिकों को मार गिराया. साथ ही चीनी सैनिकों की पहली कोशिश को नाकाम कर दिया। दुश्मन गोरखा के जवाब को देखकर हैरान था। उसके समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें। मसलन गुस्से में आकर वह तेजी से थापा की पोस्ट के करीब पहुंचे और और उसे आग के हवाले कर दिया।