बिहार के दशरथ मांझी की तर्ज पर, लद्दाख के 70 वर्षीय लामा ने दुर्गम पहाड़ काट बनाई 38 किमी सड़क; मिला पद्मश्री
Dashrath Manjhi of Ladakh हिमालयी क्षेत्र के दशरथ मांझी लामा त्सुलटिम छोंजोर ने सड़क निर्णाम के लिए जब संपत्ति बेची तो लोगों ने उन्हें पागल समझा लेकिन उनकी जिद्द ने सबकी सोच बदल दी। गुमनाम सितारे की चौथी कड़ी में पहाड़ काट सड़क बनाने वाले लद्दाख के ‘दादा’ की कहानी।
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Sat, 06 Feb 2021 02:40 PM (IST)
जसवंत ठाकुर, मनाली। बिहार के 'माउंटन मैन' कहे जाने वाले दशरथ मांझी को आप जरूर जानते होंगे, जिन्होंने एक छेनी-हथौड़े से 22 वर्षों में गहलौर पहाड़ को काटकर रास्ता बना दिया था। अब लद्दाख के ऐसे ही एक माउंटमैन चर्चा में हैं, जिन्होंने सबकुछ बेचकर हिमालयी क्षेत्र के दुर्गम पहाड़ों को काट, 38 किमी लंबी सड़क बना दी। उन्हें लद्दाख का दशरथ मांझी कहा जा रहा है। इसके लिए 70 वर्षीय लामा त्सुलटिम छोंजोर को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। लामा त्सुलटिम छोंजोर के इस कारनामे ने लोगों के जहन में दशरथ मांझी की यादें ताजा कर दी हैं।
सामान्य सड़क के मुकाबले पहाड़ पर सड़क बनाना बेहद मुश्किल होता है। यह कारनामा करने वाले लामा त्सुलटिम छोंजोर लद्दाख की जंस्कार घाटी के स्तोंग्दे गांव के रहने वाले हैं। जंस्कार घाटी के लिए वह 'मेमे छोंजोर' हैं। इसका अर्थ है दादा छोंजोर। 38 किलोमीटर लंबी इस सड़क में केवल श्रमदान नहीं हुआ, बल्कि यह मार्ग लामा की चल-अचल संपत्ति से भी बना है। जब वह इस सड़क पर पहली बार जीप लेकर करग्या गांव पहुंचे थे, तो ग्रामीणों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा था।
लद्दाख के जनजातीय क्षेत्र के बुजुर्ग लामा त्सुलटिम छोंजोर
लद्दाख व हिमाचल दोनों राज्यों को मिलेगा लाभहिमालयी क्षेत्र के दशरथ मांझी कहलाए जाने वाले लद्दाख के जनजातीय क्षेत्र के बुजुर्ग लामा त्सुलटिम छोंजोर को पद्मश्री मिलने से जंस्कार घाटी में खुशी की लहर है। साथ ही हिमाचल के जनजातीय जिला लाहुल-स्पीति में भी जश्न का माहौल है। दारचा से शिंकुला दर्रा होकर गुजरने वाली इस सड़क को लेह लद्दाख के कारगिल जिला के उपमंडल जंस्कार के पहले गांव करग्या तक बनाया गया है। अटल टनल रोहतांग के बाद केंद्र सरकार की प्राथमिकता शिंकुला दर्रा के नीचे सुरंग निर्माण की है। लामा त्सुलटिम छोंजोर द्वारा पहाड़ काट बनाई गई सड़क का लाभ हिमाचल को भी मिलेगा, क्योंकि सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) अब दारचा-शिंकुला दर्रा सड़क परियोजना पर कार्य कर रहा है।
38 किलोमीटर सड़क बनाकर आसान कर दी दारचा से शिंकुला दर्रा व करग्या गांव तक का सफरलामा की जिद्द ने बदल दी लोगों की सोचआजादी के कई साल बाद तक जब जंस्कार घाटी सड़क से वंचित रह गई तो लामा त्सुलटिम छोंजोर ने वर्ष 2014 में खुद ही इसके लिए पहल की। इसके लिए उन्हें अपनी जमीन और संपत्ति तक बेचनी पड़ी। शुरुआती दिनों में लोग लामा के कार्य को मजाक में लेने लगे, लेकिन जब लामा त्सुलटिम छोंजोर ने अपने सीमित संसाधनों से दारचा से शिंकुला की ओर ट्रैक तैयार कर लिया तो सभी हैरान रह गए। लामा त्सुलटिम छोंजोर बिना किसी की मदद के अपने सपनों को साकार करने में जुटे रहे। बीआरओ ने भी जंस्कार घाटी को लाहुल से जोड़ने के लिए शिंकुला र्दे से सड़क बनाने का कार्य शुरू कर दिया।बॉर्डर रोड टास्क फोर्स (बीआरटीएफ) के तत्कालीन कमांडर एसके दून ने लामा त्सुलटिम छोंजोर के कार्य को सराहा और सड़क निर्माण शुरू किया। लाहुल की ओर जब बीआरओ शिंकुला पहुंच गया तब भी लामा त्सुलटिम छोंजोर ने जंस्कार की तरफ से सड़क निर्माण का कार्य जारी रखा।
लाहुल-स्पीति प्रशासन ने वर्ष 2016 में लामा को किया था सम्मानितलाहुल स्पीति प्रशासन ने 15 अगस्त 2016 को केलंग में लामा त्सुलटिम छोंजोर को सम्मानित किया था। वर्ष 2016 में बीआरओ के कमांडर कर्नल केपी राजेंद्रा ने भी लामा को शिंकुला में सम्मानित किया था। इस सिद्ध कर्मयोगी को पद्मश्री मिलना जनजातीय जिला लाहुल स्पीति और जांस्कर व लद्दाख के लिए गौरव का विषय है।
57 लाख की मशीनरी खरीदी थीलामा ने अपनी संपत्ति बेचकर सड़क बनाने के लिए 57 लाख की मशीनरी खरीदी थी। इसके बाद उन्होंने कारगिल जिले के जंस्कार के करग्या गांव से हिमाचल प्रदेश की सीमा तक सड़क बनाने की मुहिम छेड़ दी। लामा का कहना है कि जंस्कार में सड़क संपर्क स्थापित होना ही उनके लिए सही इनाम होगा।
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