National Mango Day:नाम बेशक है आम लेकिन स्वाद और खूबियां बनाती हैं खास
ठीक कहते थे लोग… क्या रखा है नाम में। नाम नहीं खूबियां देखिए जनाब। किसकी? उसी आम की जो होता है खास। बेहद खास। आम लगभग सब जगह होते हैं किंतु एक बार राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर 154 यानी पठानकोट -मंडी पर सफर करके देखें।
कांगड़ा, अश्विनी शर्मा। ठीक कहते थे लोग… क्या रखा है नाम में। नाम नहीं खूबियां देखिए जनाब। किसकी? उसी आम की जो होता है खास। बेहद खास। आम लगभग सब जगह होते हैं किंतु एक बार राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर 154 यानी पठानकोट -मंडी पर सफर करके देखें। दोनों तरफ आमों के पेड़ हैं। जिन अनाम बुजुर्गों ने ये पौधे लगाए...वे इन्हें पेड़ बनता देखने के लिए मौजूद नहीं हैं किंतु अगली पीढि़यां इन्हें खाती हैं...इनकी छाया में रुकती हैं। यही राजमार्ग क्यों, कांगड़ा और आसपास के जिलों में लगभग हर सड़क के किनारे छोटे छोटे आम… कोई लाल, कोई हल्के पीलेतो कोई सिंदूरी रंग बिखेर रहे होते हैं। भारत में करीब 5000 वर्ष पहुंचा आम अब इतना खास बन चुका है कि इसके बिना बरसात अधूरी लगती है।
इस बार फसल कम, दाम अधिक
कांगड़ा जिले में मौसम की बेरुखी से भले ही इस बार आम की फसल कम हुई है, लेकिन मंडियों में बेहतर दाम मिलने से नुकसान की कुछ हद तक भरपाई हो गई है। आम की अगेती किस्म दशहरी का तुड़ान जून के दूसरे सप्ताह से शुरू हो गया था। जिले की प्रमुख सब्जी मंडी जसूर में शुरुआती दौर में कच्चे दशहरी आम का मूल्य 15 से लेकर 40 रुपये प्रति किलो था लेकिन पिछले सप्ताह से दाम 55 से 65 रुपये प्रति किलो पहुंच गया है। वर्तमान में मंडी में पिछेती किस्में लंगड़ा, चौसा, आम्रपाली, फजली, मलका व राम केला आ रही हैं और 40 से 50 रुपये प्रति किलो बिक रहा है। वर्तमान में पिछेती किस्मों का तुड़ान जारी है और फसल के समाप्त होने के बाद ही यह पता चलेगा कि कितनी पैदावार होगी। जिलेभर की मंडियों में अब तक 13, 541 क्विंटल आम पहुंच चुका है। उद्यान विभाग ने इस बार 20,500 टन पैदावार का लक्ष्य रखा है। कांगड़ा जिले में 20 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में आम की पैदावार होती है।
इन क्षेत्रों में होती है आम की फसल
नूरपुर क्षेत्र के जौंटा, खज्जियां, नागनी, भडवार, रिन्ना, जसूर, बासा बजीरा, गनोह, पंजाड़ा, आगार, भरमोली, काथल, कमनाला, छतरोली, ग्योरा, रिट, राजा का बाग, इंदपुर, डाहकुलाड़ा, गंगथ, रप्पड़ व गरोह। यहां आम की दशहरी, आम्रपाली, रामकेला, लंगड़ा, चौसा, तोता, अल्फेंजो, ग्रीन व फजली किस्मों की पैदावार होती है।
बौर की सेटिंग के बाद भी सिंचाई जरूरी
आम के पौधों में फरवरी-मार्च में बौर आता है। बौर की सेटिंग के बाद आम के पौधों के लिए ङ्क्षसचाई की जरूरत होती है। कांगड़ा जिले के अधिकांश क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधा नहीं है। ऐसे में बागवान फल के आकार की सेङ्क्षटग के लिए बारिश पर ही निर्भर होते हैं। अगर उचित ङ्क्षसचाई न हो तो फल का सही आकार नहीं बन पाता है।
कब होता है तुड़ान
आम की अगेती किस्म दशहरी का तुड़ान जून के मध्य में शुरू हो जाता है और जुलाई के पहले सप्ताह में जोरों पर होता है। पछेती प्रजातियों का तुड़ान जुलाई के अंतिम में सप्ताह शुरू होता है और अगस्त तक चलता है। उपमंडल नूरपुर के अधिकतर बागवानों ने दशहरी किस्म ही ज्यादा लगाई है।
आम में आन व आफ ईयर
जिस साल आम की पैदावार ज्यादा होती है उसे आन ईयर कहते हैं। जिस साल पैदावार कम होती है उसे आफ ईयर कहा जाता है। इस दफा आफ ईयर है। यह बात स्पष्ट है कि एक साल आम की फसल आन ईयर होती है, जबकि दूसरे वर्ष आफ ईयर होती है। उपनिदेशक उद्यान विभाग कांगड़ा, डा कमलशील कहते हैं कि प्रतिकूल मौसम के कारण इस बार साढ़े बीस हजार टन पैदावार हो सकती है। पिछेती किस्मों की तुड़ाई हो रही है। मंडियों में इस बार दशहरी और अन्य किस्मों के बहुत ही बढिय़ा मूल्य रहे हैं।