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Raksha Bandhan 2022: भाई-बहन के पर्व पर प्रकृति को भी उपहार, हिमाचल में महिलाओं ने घास और गोबर से बनाई राखियां

Raksha Bandhan 2022 इस बार रक्षाबंधन पर्व पर प्रकृति को भी उपहार मिलेगा। गोबर और कुशा घास से बनी राखियां खास हैं। इन राखियों का बंधन पर्यावरण रक्षण के लिए भी प्रेरित करेगा। प्रदेश की महिलाओं ने इस दिशा में प्रयास किया है।

By Rajesh Kumar SharmaEdited By: Updated: Sat, 06 Aug 2022 11:12 AM (IST)
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गोबर और कुशा घास से बनी राखियां खास हैं।

मंडी/सोलन, मुकेश/भूपेंद्र। Raksha Bandhan 2022, इस बार रक्षाबंधन पर्व पर प्रकृति को भी उपहार मिलेगा। कहीं हवा के बीच मधुर संगीत सुनाने वाली चीड़ की पत्तियां भाई की कलाई पर सजेंगी तो कहीं गोबर से बनी राखियां। इन राखियों का बंधन पर्यावरण रक्षण के लिए भी प्रेरित करेगा। कुशा घास की बनी राखियां भी कई संदेश देंगी। प्रदेश की महिलाओं ने इस दिशा में प्रयास किया है। अगर हम इनकी बनाई राखियां खरीदें तो यह रक्षाबंधन स्वावलंबन और पर्यावरण संरक्षण के लिए भी किसी त्योहार से कम नहीं होगा।

बहन की रक्षा के साथ पर्यावरण सहेजेगी यह राखी

रक्षा बंधन पर इस बार भाई की कलाई पर गोबर से बनी राखी सजेगी। यह राखी पर्यावरण भी सहेजेगी। मंडी के एकता सहायता समूह ने ये राखियां तैयार की हैं। ये राखियां टूटकर गिर जाएं तो मिट्टी में मिल जाएंगी। राखी पर्व के बाद इन्हें गमले में डाल दें तो ये पौधे के लिए खाद का काम करेंगी। एकता सहायता समूह मंडी ने ऐसी 800 राखियां बनाई हैं। समूह की सचिव चंचल ने बताया कि गोबर से धूप व अगरबत्ती भी बनाई जा रही हैं। गोबर से राखियों को दो आकार में बनाया गया है। इनकी कीमत 20 व 30 रुपये है। समूह से जुड़ी 11 महिलाओं ने 25 से 30 किलोग्राम गोबर से राखियां तैयार की हैं।

गोबर को सुखाने के बाद उसका पीसकर चूरा किया गया। उसमें लसूड़े की गोंद मिलाकर सांचों के जरिये डिजाइन बनाए गए। इस काम में करीब दो महीने लगे। अन्य राखियां टूटने के बाद कचरे की तरह पड़ी रहती हैं। वहीं, गोबर से बनी राखी टूट भी जाए तो पूजा में इस्तेमाल होने वाले धागे से बनाई गई डोर गल जाएगी।

मंजू की बनाई कुशा घास की राखियां बनीं पसंद

कंडाघाट उपमंडल के तहत कल्होग गांव की मंजू देवी की बनाईं कुशा घास की राखियां हाथों हाथ बिक रही हैं। मंजू ने 20 दिन में 600 राखियां बनाकर बेची हैं, जिससे करीब आठ हजार रुपये की कमाई हुई है। मंजू के साथ इस काम में बेटी भावना भी सहायता करती है। मंजू देवी बेहद गरीब परिवार से है। पति ट्रक चालक है। चार वर्ष पहले उसने इसका प्रशिक्षण लिया था। अब मंजू की कल्होग में एक छोटी दुकान है। प्रतिदिन 35 से 40 राखियां बनाती है। राखी बनाने की लागत बेहद कम है।

कुशा घास को पास के वन से लाती है। राखी बनाने से पहले इसे सुखाया जाता है। एक राखी की कीमत 30 से 40 रुपये है। मंजू का कहना है कि कुशा घास को पवित्र माना जाता है। इस घास का प्रयोग सभी धार्मिक अनुष्ठानों में किया जाता है। यही वजह है कि इस घास से बनने वाली राखियों को लोग काफी पसंद भी कर रहे हैं।

राखियों के अलावा मंजू घास से ही अन्य कई प्रकार के घरेलू उत्पाद भी बनाती हैं। चपाती बाक्स, पैन स्टैंड, पूजा की टोकरी, प्लेट व फ्रूट बास्केट आदि उत्पाद मंजू तैयार करती हैं। इनकी मांग भी काफी रहती है।