Dalai Lama: धर्मगुरु दलाईलामा ने विदेशी अनुयायियों को दी शिक्षा, कहा- लोगों के प्रति रखें करुणा
Dalai Lama तिब्बती धर्मगुरु दलाईलामा ने कहा कि भवचक्र स्वभाव से सिद्ध नहीं है जिसे भी हम देख रहे हैं जिस चीज को ग्रहण करते हैं एक प्रकार से हम उसमें खो जाते हैं। जो स्वभाव से सिद्ध नहीं है तो बहुत ज्यादा उससे लगाव रखने की आवश्यकता नहीं है।
By Virender KumarEdited By: Updated: Fri, 25 Nov 2022 02:15 PM (IST)
धर्मशाला, जागरण संवाददाता। Dalai Lama, तिब्बती धर्मगुरु दलाईलामा ने कहा कि भवचक्र स्वभाव से सिद्ध नहीं है, जिसे भी हम देख रहे हैं जिस चीज को ग्रहण करते हैं एक प्रकार से हम उसमें खो जाते हैं। जो स्वभाव से सिद्ध नहीं है तो बहुत ज्यादा उससे लगाव रखने की आवश्यकता नहीं है। सभी लोग अच्छे व्यक्ति बनें। लोगों का हित करें। लोगों के प्रति करुणा रखें। शून्यता व बौद्धचित का अभ्यास करना चाहिए।
शुक्रवार को शांतिमय विश्व स्थापित करने के लिए दलाईलामा ने कोरियन समुदाय के अनुयायियों के आग्रह पर मुख्य बौद्ध मठ चुगलाखंग में उन्हें यह शिक्षा दी। दो दिवसीय टीचिंग द फंडामेंटल विस्डम आफ मिडल अप्रोच विषय पर दी जा रही है। टीचिंग के लिए कोरिया सहित विदेशी व स्थानीय तिब्बती समुदाय के लोग भी मैक्लोडंगज में मौजदू रहे।
जो हमें दिखाई देते हैं व स्वभाव से सिद्ध नहीं
बौद्ध धर्म के दर्शन में कहा जाता है जो हमें दिखाई देते हैं व स्वभाव से सिद्ध नहीं है। जिन चीजों को हम सत्य मान बैठते हैं तो उसमें कोई चीज हमें अच्छी लगती है तो आशक्ति उत्पन्न होती है जो अच्छी नहीं लगती तो क्रोध उत्पन्न होता है। एक तरह से इन सभी चीजों में हम जकड़ जाते हैं। भवचक्र स्वभाव से सिद्ध नहीं हैं। वस्तुएं स्वभाव से सिद्ध है तो इसको समझना चाहिए। ग्रंथ व धर्मों में जो कहा गया है वह स्वभाव से सिद्ध नहीं है। शून्यता के बारे में जो व्याख्या की गई है और जो जीवधारी अज्ञानता में जी रहे हैं, कलेश में जी रहे हैं, उन्हें अज्ञानता से निकालने के लिए सत्यग्रहता के साथ निकालना चाहिए।सुख के लिए करुणा जरूरी
दुनिया में सभी लोग सुख चाहते हैं। इसके लिए करुणा जरूरी है। करुणा बुद्धचित व शून्य का अध्ययन करेंगे तो इस बात को समझ सकेंगे तो दुख से निकल सकते हैं। बाहरी चीजों को नहीं देखता है अपने चित को समझना है कि हमारे भीतर के कलेश स्वभाव से सिद्ध नहीं है। इसके लिए करुणा बहुत जरूरी है।सर्वहित का मन होना चाहिए
सभी धर्म परंपराए हमें संदेश देती हैं कि दूसरों का हित करना चाहिए। बौद्ध धर्म में बताया गया है कि हमारे भीतर मन में क्लेश होने के कारण हम दूसरों की मदद नहीं कर पाते। क्लेश की उत्पत्ति वस्तुओं को देखने से होती है, लेकिन यह स्वभाव से सिद्ध नहीं होती है। इसे सिर्फ महसूस कर पाते हैं। बौद्ध चित का अभ्यास व शून्यता का अभ्यास मैं हर रोज करता हूं। हर किसी को यह अभ्यास नियमित करना चाहिए। हमें सर्वहित का विचार होना चाहिए ऐसा मन होना चाहिए। स्वार्थी मन नहीं होना चाहिए। सर्वहित चाहने से मन अच्छा होगा शरीर अच्छा होगा। शांति पैदा होने के साथ-साथ दिल से एक खुशी की प्राप्ति होगी।
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