हिमाचल में बढ़ता तापमान और रसायन का प्रयोग बिगाड़ेंगे सेब का स्वाद, शोध में सामने आए चौंकाने वाले तथ्य
Himachal Apple रसायन का प्रयोग व बढ़ता तापमान सेब का स्वाद बिगाड़ेगा। हिमालयी क्षेत्र की बागवानी के लिए जलवायु परिवर्तन के साथ कीटनाशक व अन्य स्प्रे घातक हैं। इससे भविष्य में हिमाचल प्रदेश में भी सेब का उत्पादन बहुत अधिक प्रभावित होगा।
By Rajesh Kumar SharmaEdited By: Updated: Sat, 04 Sep 2021 01:48 PM (IST)
शिमला, यादवेन्द्र शर्मा। Himachal Apple, रसायन का प्रयोग व बढ़ता तापमान सेब का स्वाद बिगाड़ेगा। हिमालयी क्षेत्र की बागवानी के लिए जलवायु परिवर्तन के साथ कीटनाशक व अन्य स्प्रे घातक हैं। इससे भविष्य में हिमाचल प्रदेश में भी सेब का उत्पादन बहुत अधिक प्रभावित होगा। क्षेत्र में 10 से 12 वर्ष के बाद स्थित बहुत खराब हो सकती है। यह अंदेशा राज्य पर्यावरण विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के जलवायु परिवर्तन केंद्र शिमला के तहत शोध कर रही नेशनल पोस्ट डाक्टरेट फेलो डा. मीना ने जताया है। उनके शोध में सामने आया कि जिला शिमला में 70 फीसद बागवान केमिकल और अन्य कलर स्प्रे का प्रयोग कर रहा है। वहीं, किन्नौर में दस फीसद बागवान ऐसा कर रहे हैं, जो बहुत नुकसानदायक है।
हिमाचल के हिमालय क्षेत्र में बर्फबारी व हिमनदों का पीछे हटाना और समशीतोष्ण फलों की बेल्ट ऊपर की ओर ले जाना, सेब की उत्पादकता को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर रहा है। गर्मी और सर्दी के बदलते मौसम और उसके स्वरूप का प्रभाव आने वाले समय में साफ दिखाई देगा। सेब के उत्पादन में वैश्विक जलवायु परिवर्तन का प्रभाव भी देखा गया है।
कम हो रहे चिलिंग आवर नुकसानदायक
सेब की मानक किस्म के लिए 800 से 1100 चिलिंग आवर की जरूरत है। सेब और स्टोन फ्रूट के पेड़ तब तक निष्क्रिय रहते हैं, जब तक कि वह इसे पूरा नहीं कर लेते। जब तक पौधे को पर्याप्त चिलिग यूनिट प्राप्त होता है तब तक फूल और पत्ती की कलियां सामान्य रूप से विकसित होती हैं। इस कारण देरी से फल लगेंगे और फलों की सेटिंग भी अच्छी नहीं होगी। साथ ही फलों की गुणवत्ता भी कम होगी।
शोध में दो जिलों के छह ब्लाक का डाटा
शोध के लिए सैंपल सर्वे के तहत जिला शिमला व किन्नौर के छह ब्लाक की दस फीसद पंचायतों के दस फीसद गांव का डाटा लिया गया है। जिला शिमला में 12 विकास खंड के तहत 412 पंचायतें हैं, जबकि किन्नौर में तीन विकास खंडों के तहत कुल 73 पंचायतें हैं।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ नेशनल पोस्ट डाक्टरेट फेलो, जलवायु परिवर्तन केंद्र, राज्य पर्यावरण विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद डा. मीना का कहना है सेब का उत्पादन बढ़ा है, लेकिन उत्पादकता में सालाना 0.016 टन प्रति हेक्टेयर की दर से गिरावट आई है। इसका कारण जलवायु परिवर्तनशीलता, मिट्टी व फसल सुधार आदि हैं। साथ ही अनियमित वर्षा, घटता चिलिंग टाइम और जलवायु परिवर्तन है। शिमला में 70 फीसद तक और किन्नौर में 10 फीसद बागवान कलर व अन्य स्प्रे कर रहे हैं, जो नुकसानदायक है।
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