Saurabh Kalia Birth Anniversary: माता-पिता ने संभाल कर रखा है बेटे का ब्लैंक चेक, किया था यह वादा
Saurabh Kalia Birth Anniversary सौरभ कालिया का जन्म पालमपुर में 29 जुलाई 1976 को नरेंद्र कुमार कालिया और विजया कालिया के घर पर हुआ।
By Rajesh SharmaEdited By: Updated: Mon, 29 Jun 2020 04:55 PM (IST)
धर्मशाला, ऋचा राणा। वहां गोलियां चल रही थीं, सीमा पर देश के दुश्मनों ने हमला कर दिया था, बात देश को बचाने की थी ऐसे में भारतीय सेना के एक वीर सपूत ने अपने प्राणों की परवाह किए बिना दुश्मनों से लोहा लिया। भारत माता का यह वीर सपूत दुश्मनों से लोहा लेते हुए उनके हाथ लग गया। दुश्मन ने उसे बहुत यातनाएं दीं, पर उसने मुंह से उफ तक नहीं की। यह वीरगाथा है भारतीय सेना के जांबाज कैप्टन सौरभ कालिया की, जिन्होंने कारगिल युद्ध में प्राण तक न्यौछावर कर दिए, ताकि देश में घी के दीये जलते रहें।
कैप्टन सौरभ कालिया कारगिल युद्ध में देश के लिए प्राण देने वाले पहले योद्धा हैं। कुछ लोग कभी नहीं मरते वो अमर हो जाते हैं और आने वाली नस्लों के लिए भी प्रेरणा बन जाते हैं, ऐसे ही एक हैं कैप्टन सौरभ कालिया।
गौरवान्वित हैं सौरभ जैसा सपूत पाकर
सौरभ कालिया का जन्म पालमपुर में 29 जुलाई 1976 को नरेंद्र कुमार कालिया और विजया कालिया के घर पर हुआ। सौरभ के माता-पिता कहते हैं कि वे हर जन्म में उसे ही अपने बेटे के रूप में पाना चाहते हैं, ऐसा बेटा पाकर वो गौरवान्वित महसूस करते हैं।
बचपन से ही था सेना में जाने का जुनून
कैप्टन कालिया बचपन से ही भारतीय सेना में जाना चाहते थे। कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर में पढ़ाई करने के बाद सौरभ कालिया की नियुक्ति भारतीय सेना में बतौर लेफ्टिनेंट हो गई। कैप्टन कालिया चाहते तो किसी और क्षेत्र में भी जा सकते थे, लेकिन उनके अंदर देश की रक्षा करने का जज्बा था, जिस कारण वह भारतीय सेना में शामिल हुए।
ब्लैंक चेक को आज भी रखा है संभालकरकैप्टन कालिया के माता-पिता आज भी उन्हें नम आंखों से याद करते हैं, अपने बेटे के बारे में बात करते ही उनकी आंखों से आंसू छलकने लगते है। उनकी मां कहती हैं कारिगल लड़ाई में जाने से पहले बेटे ने मेरे हाथों में ब्लैंक चेक साइन करके दिया था और कहा था जल्द लौटूंगा। कैप्टन कालिया द्वारा साइन किए हुए ब्लैंक चेक को उनके माता-पिता ने आज भी सहेज कर रखा है।
तिरंगे में लिपटकर आई बेटे की लाशकैप्टन कालिया लड़ते लड़ते दुश्मन देश के हाथ आ गए और दुश्मनों ने दरिंदगी की सारी हदें पार करते हुए सौरभ के शरीर को क्षत-विक्षत कर दिया। आज भी उनके माता-पिता सरकार से बेटे के लिए न्याय मांग रहे हैं।
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